*आत्मबोध🕉️🦁*
*श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय*
*दिवस : ५१/३५० (51/350)*
*।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।*
*द्वितीयऽध्याय : सांख्ययोग*
*अध्याय ०२ : श्लोक ५५ (02:55)*
*श्रीभगवानुवाच :*
*प्रजहाति यदा कामान्सर्वान्पार्थ मनोगतान् ।*
*आत्मन्येवात्मना तुष्ट: स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते ॥*
*शब्दार्थ—*
(पार्थ) हे अर्जुन! (यदा) जिस कालमें यह पुरुष (मनोगतान्) मनमें स्थित (सर्वान्) सम्पूर्ण (कामान्) कामनाओंको (प्रजहाति) भलीभाँति त्याग देता है और (आत्मना) आत्मासे अर्थात् समर्पण भाव से (आत्मनि) आत्मा के साथ अभेद रूप में रहने वाले परमात्मा में (एव) ही (तुष्टः) संतुष्ट रहता है, (तदा) उस कालमें वह (स्थितप्रज्ञः) स्थितप्रज्ञ अर्थात् स्थिर बुद्धि वाला (उच्यते) कहा जाता है अर्थात् फिर वह विचलित नहीं होता, केवल तत्वदर्शी संत के तत्वज्ञान पर पूर्ण रूप से आधारित रहता है। वह योगी है।
*अनुवाद—*
श्री भगवान् बोले- हे अर्जुन! जिस काल में यह पुरुष मन में स्थित सम्पूर्ण कामनाओं को भलीभाँति त्याग देता है और आत्मा से आत्मा में ही संतुष्ट रहता है, उस काल में वह स्थितप्रज्ञ कहा जाता है।
*अध्याय ०२ : श्लोक ५६ (02:56)*
*दु:खेष्वनुद्विग्नमना: सुखेषु विगतस्पृह: ।*
*वीतरागभयक्रोध: स्थितधीर्मुनिरुच्यते ॥*
*शब्दार्थ—*
(दुःखेषु) दुःखोंकी प्राप्ति होनेपर (अनुद्विग्नमनाः) जिसके मनमें उद्वेग नहीं होता (सुखेषु) सुखोंकी प्राप्तिमें (विगतस्पृहः) जो सर्वथा इच्छा रहित है तथा (वीतरागभयक्रोधः) जिसके राग, भय और क्रोध नष्ट हो गये हैं ऐसा (मुनिः) मुनि अर्थात् साधक (स्थितधीः) स्थिरबुद्धि (उच्यते) कहा जाता है।
*अनुवाद—*
दुःखों की प्राप्ति होने पर जिसके मन में उद्वेग नहीं होता, सुखों की प्राप्ति में सर्वथा निःस्पृह है तथा जिसके राग, भय और क्रोध नष्ट हो गए हैं, ऐसा मुनि स्थिरबुद्धि कहा जाता है।
शेष क्रमश: कल
*अधिकांश हिन्दू तथाकथित व्यस्तता व तथाकथित समयाभाव के कारण हम सभी सनातनियों के लिए आदरणीय पठनीय एवं अनुकरणीय श्रीमद्भगवद्गीता का स्वाध्याय करना छोड़ चुके हैं, इसलिए प्रतिदिन गीता जी के दो श्लोकों को उनके हिन्दी अर्थ सहित भेजकर लगभग एक वर्ष के अन्तराल (350 दिन × 2 श्लोक/दिन = 700 श्लोक) में एक बार समूह से हजारों हिन्दुओं को सम्पूर्ण गीताजी का स्वाध्याय कराने का प्रण लिया गया है। आप सभी भी ये दो श्लोक प्रतिदिन पढ़ने व पढ़वाने का संकल्प लें।*
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*श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय*
*दिवस : ५१/३५० (51/350)*
*।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।*
*द्वितीयऽध्याय : सांख्ययोग*
*अध्याय ०२ : श्लोक ५५ (02:55)*
*श्रीभगवानुवाच :*
*प्रजहाति यदा कामान्सर्वान्पार्थ मनोगतान् ।*
*आत्मन्येवात्मना तुष्ट: स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते ॥*
*शब्दार्थ—*
(पार्थ) हे अर्जुन! (यदा) जिस कालमें यह पुरुष (मनोगतान्) मनमें स्थित (सर्वान्) सम्पूर्ण (कामान्) कामनाओंको (प्रजहाति) भलीभाँति त्याग देता है और (आत्मना) आत्मासे अर्थात् समर्पण भाव से (आत्मनि) आत्मा के साथ अभेद रूप में रहने वाले परमात्मा में (एव) ही (तुष्टः) संतुष्ट रहता है, (तदा) उस कालमें वह (स्थितप्रज्ञः) स्थितप्रज्ञ अर्थात् स्थिर बुद्धि वाला (उच्यते) कहा जाता है अर्थात् फिर वह विचलित नहीं होता, केवल तत्वदर्शी संत के तत्वज्ञान पर पूर्ण रूप से आधारित रहता है। वह योगी है।
*अनुवाद—*
श्री भगवान् बोले- हे अर्जुन! जिस काल में यह पुरुष मन में स्थित सम्पूर्ण कामनाओं को भलीभाँति त्याग देता है और आत्मा से आत्मा में ही संतुष्ट रहता है, उस काल में वह स्थितप्रज्ञ कहा जाता है।
*अध्याय ०२ : श्लोक ५६ (02:56)*
*दु:खेष्वनुद्विग्नमना: सुखेषु विगतस्पृह: ।*
*वीतरागभयक्रोध: स्थितधीर्मुनिरुच्यते ॥*
*शब्दार्थ—*
(दुःखेषु) दुःखोंकी प्राप्ति होनेपर (अनुद्विग्नमनाः) जिसके मनमें उद्वेग नहीं होता (सुखेषु) सुखोंकी प्राप्तिमें (विगतस्पृहः) जो सर्वथा इच्छा रहित है तथा (वीतरागभयक्रोधः) जिसके राग, भय और क्रोध नष्ट हो गये हैं ऐसा (मुनिः) मुनि अर्थात् साधक (स्थितधीः) स्थिरबुद्धि (उच्यते) कहा जाता है।
*अनुवाद—*
दुःखों की प्राप्ति होने पर जिसके मन में उद्वेग नहीं होता, सुखों की प्राप्ति में सर्वथा निःस्पृह है तथा जिसके राग, भय और क्रोध नष्ट हो गए हैं, ऐसा मुनि स्थिरबुद्धि कहा जाता है।
शेष क्रमश: कल
*अधिकांश हिन्दू तथाकथित व्यस्तता व तथाकथित समयाभाव के कारण हम सभी सनातनियों के लिए आदरणीय पठनीय एवं अनुकरणीय श्रीमद्भगवद्गीता का स्वाध्याय करना छोड़ चुके हैं, इसलिए प्रतिदिन गीता जी के दो श्लोकों को उनके हिन्दी अर्थ सहित भेजकर लगभग एक वर्ष के अन्तराल (350 दिन × 2 श्लोक/दिन = 700 श्लोक) में एक बार समूह से हजारों हिन्दुओं को सम्पूर्ण गीताजी का स्वाध्याय कराने का प्रण लिया गया है। आप सभी भी ये दो श्लोक प्रतिदिन पढ़ने व पढ़वाने का संकल्प लें।*
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*दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : वेद में, समस्त गुणों के स्रोत ईश्वर के उत्तम गुणों को अपने जीवन में अपनाने का उपदेश*
*उत्त्वा मन्दन्तु स्तोमा: कृणुष्व राधो अद्रिवः। अव ब्रह्मद्विषो जहि॥*
*(ऋग्वेद— मण्डल ८, सूक्त ६४, मन्त्र १)*
*मन्त्रार्थ—*
हे मनुष्यों! हम सब (युष्माभिः) आप लोगों के साथ मिलकर (मरुत्वतः) प्राणप्रद परमात्मा के गुणों और यशों को बढ़ाने के लिये ही (स्याम) जीवन धारण करें तथा (तत्+दधानाः) सदा उसको अपने-अपने सर्व कर्म में धारण करें और उसी से (अवस्यवः) रक्षा की इच्छा करें और (दक्षपितरः) बलों के स्वामी होवें।
*व्याख्या—*
हे मनुष्यों! ईश्वर हमारा पिता है, हम उसके पुत्र हैं, अतः हमारा जीवन उसके गुणों और यशों को सदा बढ़ावे अर्थात् हम उसके समान पवित्र, सत्य आदि होवें। हम उसको कदापि न त्यागें।
*हिन्दू एकता संघ द्वारा सनातन धर्म के मूल ग्रन्थ वेदों के कल्याणकारी मन्त्रों के प्रचार हेतु बनाए गए नए इंस्टाग्राम पेज @vedicdarshan से जुड़ें 👇🏻🕉️*
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*उत्त्वा मन्दन्तु स्तोमा: कृणुष्व राधो अद्रिवः। अव ब्रह्मद्विषो जहि॥*
*(ऋग्वेद— मण्डल ८, सूक्त ६४, मन्त्र १)*
*मन्त्रार्थ—*
हे मनुष्यों! हम सब (युष्माभिः) आप लोगों के साथ मिलकर (मरुत्वतः) प्राणप्रद परमात्मा के गुणों और यशों को बढ़ाने के लिये ही (स्याम) जीवन धारण करें तथा (तत्+दधानाः) सदा उसको अपने-अपने सर्व कर्म में धारण करें और उसी से (अवस्यवः) रक्षा की इच्छा करें और (दक्षपितरः) बलों के स्वामी होवें।
*व्याख्या—*
हे मनुष्यों! ईश्वर हमारा पिता है, हम उसके पुत्र हैं, अतः हमारा जीवन उसके गुणों और यशों को सदा बढ़ावे अर्थात् हम उसके समान पवित्र, सत्य आदि होवें। हम उसको कदापि न त्यागें।
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*आत्मबोध🕉️🦁*
*श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय*
*दिवस : ५२/३५० (52/350)*
*।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।*
*द्वितीयऽध्याय : सांख्ययोग*
*अध्याय ०२ : श्लोक ५७ (02:57)*
*य: सर्वत्रानभिस्नेहस्तत्तत्प्राप्य शुभाशुभम्।*
*नाभिनन्दति न द्वेष्टि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥*
*शब्दार्थ—*
(यः) जो (सर्वत्रा) सर्वत्र (अनभिस्नेहः) स्नेहरहित हुआ (तत् तत्) उस-उस (शुभाशुभम्) शुभ या अशुभ वस्तु को (प्राप्य) प्राप्त होकर (न) न (अभिनन्दति) प्रसन्न होता है और (न) न (द्वेष्टि) द्वेष करता है (तस्य) उसकी (प्रज्ञा) बुद्धि (प्रतिष्ठिता) स्थिर है।
*अनुवाद—*
जो पुरुष सर्वत्र स्नेहरहित हुआ उस-उस शुभ या अशुभ वस्तु को प्राप्त होकर न प्रसन्न होता है और न द्वेष करता है, उसकी बुद्धि स्थिर है।
*अध्याय ०२ : श्लोक ५८ (02:58)*
*यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गानीव सर्वश:।*
*इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥*
*शब्दार्थ—*
(च) और जिस प्रकार (कूर्मः) कछुआ (सर्वशः) सब ओरसे अपने (अंगानि) अंगोंको (इव) जैसे समेट लेता है वैसे ही (यदा) जब (अयम्) यह पुरुष (इन्द्रियार्थेभ्यः) इन्द्रियोंके विषयोंसे (इन्द्रियाणि) इन्द्रियोंको (संहरते) सब प्रकारसे हटा लेता है तब (तस्य) उसकी (प्रज्ञा) बुद्धि (प्रतिष्ठिता) स्थिर है ऐसा समझना चाहिए।
*अनुवाद—*
और कछुआ सब ओर से अपने अंगों को जैसे समेट लेता है, वैसे ही जब यह पुरुष इन्द्रियों के विषयों से इन्द्रियों को सब प्रकार से हटा लेता है, तब उसकी बुद्धि स्थिर है (ऐसा समझना चाहिए)।
शेष क्रमश: कल
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*।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।*
*द्वितीयऽध्याय : सांख्ययोग*
*अध्याय ०२ : श्लोक ५७ (02:57)*
*य: सर्वत्रानभिस्नेहस्तत्तत्प्राप्य शुभाशुभम्।*
*नाभिनन्दति न द्वेष्टि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥*
*शब्दार्थ—*
(यः) जो (सर्वत्रा) सर्वत्र (अनभिस्नेहः) स्नेहरहित हुआ (तत् तत्) उस-उस (शुभाशुभम्) शुभ या अशुभ वस्तु को (प्राप्य) प्राप्त होकर (न) न (अभिनन्दति) प्रसन्न होता है और (न) न (द्वेष्टि) द्वेष करता है (तस्य) उसकी (प्रज्ञा) बुद्धि (प्रतिष्ठिता) स्थिर है।
*अनुवाद—*
जो पुरुष सर्वत्र स्नेहरहित हुआ उस-उस शुभ या अशुभ वस्तु को प्राप्त होकर न प्रसन्न होता है और न द्वेष करता है, उसकी बुद्धि स्थिर है।
*अध्याय ०२ : श्लोक ५८ (02:58)*
*यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गानीव सर्वश:।*
*इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥*
*शब्दार्थ—*
(च) और जिस प्रकार (कूर्मः) कछुआ (सर्वशः) सब ओरसे अपने (अंगानि) अंगोंको (इव) जैसे समेट लेता है वैसे ही (यदा) जब (अयम्) यह पुरुष (इन्द्रियार्थेभ्यः) इन्द्रियोंके विषयोंसे (इन्द्रियाणि) इन्द्रियोंको (संहरते) सब प्रकारसे हटा लेता है तब (तस्य) उसकी (प्रज्ञा) बुद्धि (प्रतिष्ठिता) स्थिर है ऐसा समझना चाहिए।
*अनुवाद—*
और कछुआ सब ओर से अपने अंगों को जैसे समेट लेता है, वैसे ही जब यह पुरुष इन्द्रियों के विषयों से इन्द्रियों को सब प्रकार से हटा लेता है, तब उसकी बुद्धि स्थिर है (ऐसा समझना चाहिए)।
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*दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : वेद में परमात्मा से सर्व प्रकार के भयों से निर्भयता प्रदान करने की सुन्दर प्रार्थना*
*यतोयतः समीहसे ततो नोऽअभयं कुरु। शं नः कुरु प्रजाभ्योऽभयं नः पशुभ्यः॥*
*(यजुर्वेद अध्याय 36 मन्त्र 22)*
*मन्त्रार्थ—*
हे भगवन् ईश्वर! आप अपने कृपादृष्टि से (यतोयतः) जिस-जिस स्थान से (समीहसे) सम्यक् चेष्टा करते हो (ततः) उस उससे (नः) हमको (अभयम्) भयरहित (कुरु) कीजिये (नः) हमारी (प्रजाभ्यः) प्रजाओं से और (नः) हमारे (पशुभ्यः) गौ आदि पशुओं से (शम्) सुख और (अभयम्) निर्भय (कुरु) कीजिये।
*व्याख्या—*
हे दयालु परमेश्वर! जिस-जिस देश/स्थान से आप सम्यक् चेष्टा करते हो उस-उस देश से हमको अभय करो, अर्थात् जहाँ-जहाँ से हमको भय प्राप्त होने लगे, वहाँ-वहाँ से सर्वथा हम लोगों को अभय (भयरहित) करो तथा प्रजा से हमको सुख करो, हमारी प्रजा सब दिन सुखी रहे, भय देनेवाली कभी न हो तथा पशुओं से भी हमको अभय करो, किंच किसी से किसी प्रकार का भय हम लोगों को आपकी कृपा से कभी न हो, जिससे हम लोग निर्भय होके सदैव परमानन्द को भोगें और निरन्तर आपका राज्य तथा आपकी भक्ति करें।
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*यतोयतः समीहसे ततो नोऽअभयं कुरु। शं नः कुरु प्रजाभ्योऽभयं नः पशुभ्यः॥*
*(यजुर्वेद अध्याय 36 मन्त्र 22)*
*मन्त्रार्थ—*
हे भगवन् ईश्वर! आप अपने कृपादृष्टि से (यतोयतः) जिस-जिस स्थान से (समीहसे) सम्यक् चेष्टा करते हो (ततः) उस उससे (नः) हमको (अभयम्) भयरहित (कुरु) कीजिये (नः) हमारी (प्रजाभ्यः) प्रजाओं से और (नः) हमारे (पशुभ्यः) गौ आदि पशुओं से (शम्) सुख और (अभयम्) निर्भय (कुरु) कीजिये।
*व्याख्या—*
हे दयालु परमेश्वर! जिस-जिस देश/स्थान से आप सम्यक् चेष्टा करते हो उस-उस देश से हमको अभय करो, अर्थात् जहाँ-जहाँ से हमको भय प्राप्त होने लगे, वहाँ-वहाँ से सर्वथा हम लोगों को अभय (भयरहित) करो तथा प्रजा से हमको सुख करो, हमारी प्रजा सब दिन सुखी रहे, भय देनेवाली कभी न हो तथा पशुओं से भी हमको अभय करो, किंच किसी से किसी प्रकार का भय हम लोगों को आपकी कृपा से कभी न हो, जिससे हम लोग निर्भय होके सदैव परमानन्द को भोगें और निरन्तर आपका राज्य तथा आपकी भक्ति करें।
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*लव जिहाद, रेप जिहाद एवं धर्मान्तरण जिहाद : मध्य प्रदेश, बिहार और छत्तीसगढ़ में मिले नवीन जिहादी प्रकरण*
*मध्य प्रदेश* के सतना में आदिल खान नाम के मुस्लिम युवक ने आदित्य यादव बनकर एक हिंदू लड़की को अपने जाल में फँसाकर लिव इन रिलेशन में रहने का शपथ पत्र (एफिडेविट) बनवा लिया। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि यह एफिडेविट छात्रा के इस्लाम अपनाने को लेकर है। आदिल युवती के माता-पिता पर धर्मांतरण करके मुस्लिम बनने के लिए भी धमकाने लगा। इस घटना की जानकारी जब बजरंग दल के कार्यकर्ताओं को हुई तो वे छात्रा के परिजन से मिले और उन्हें शुक्रवार (12 जुलाई 2024) को लेकर सिटी कोतवाली थाने पहुँचे। शिकायत के बाद पुलिस ने आदिल और उसके परिजनों के विरुद्ध भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 3 (5) तथा धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2021 की धारा 3 एवं 4 के अंतर्गत प्रकरण दर्ज कर लिया है।
*बिहार* के मिथिलांचल क्षेत्र के दरभंगा में मोहम्मद इबनैन आर्यन यादव बन मंदिर जाने का दिखावा करता था साथ ही हाथ में कलावा बांध तथा माथे पर तिलक लगाकर हिंदू बनने का ढोंग करते हुए एक हिंदू परिवार के यहां किराए पर रहता था। उसी परिवार की लड़की को लव जिहाद में फंसाकर आर्य समाज मंदिर में उससे शादी कर ली। कुछ समय बाद इबनैन ने मुस्लिम लड़की से निकाह करके पीड़िता को घर से निकाल दिया।
उत्तर प्रदेश का रहने वाले इश्तियाक कुरैशी ने सोशल मीडिया पर अजय समरथ बनकर *छत्तीसगढ़* की युवती से दोस्ती की। इसके बाद उसे अपने प्रेमजाल में फँसा लिया और शादी का झाँसा देकर उसके साथ रेप किया। पुलिस ने आरोपित को गिरफ्तार कर लिया है।
स्रोत :
https://hindi.opindia.com/national/in-satna-adil-trapped-a-hindu-girl-by-posing-as-aditya-and-then-got-an-affidavit-made-for-live-in-relationship/
https://hindi.opindia.com/national/darbhanga-bihar-mohammad-ibnain-love-jihad-poses-as-aryan-yadav-thrown-out-of-house/
https://hindi.opindia.com/national/uttar-pradesh-kanpur-ishtiaq-qureshi-trapped-chhttisgarh-hindu-girl-by-posing-as-ajay-and-fled-after-raping-her/
*मध्य प्रदेश* के सतना में आदिल खान नाम के मुस्लिम युवक ने आदित्य यादव बनकर एक हिंदू लड़की को अपने जाल में फँसाकर लिव इन रिलेशन में रहने का शपथ पत्र (एफिडेविट) बनवा लिया। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि यह एफिडेविट छात्रा के इस्लाम अपनाने को लेकर है। आदिल युवती के माता-पिता पर धर्मांतरण करके मुस्लिम बनने के लिए भी धमकाने लगा। इस घटना की जानकारी जब बजरंग दल के कार्यकर्ताओं को हुई तो वे छात्रा के परिजन से मिले और उन्हें शुक्रवार (12 जुलाई 2024) को लेकर सिटी कोतवाली थाने पहुँचे। शिकायत के बाद पुलिस ने आदिल और उसके परिजनों के विरुद्ध भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 3 (5) तथा धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2021 की धारा 3 एवं 4 के अंतर्गत प्रकरण दर्ज कर लिया है।
*बिहार* के मिथिलांचल क्षेत्र के दरभंगा में मोहम्मद इबनैन आर्यन यादव बन मंदिर जाने का दिखावा करता था साथ ही हाथ में कलावा बांध तथा माथे पर तिलक लगाकर हिंदू बनने का ढोंग करते हुए एक हिंदू परिवार के यहां किराए पर रहता था। उसी परिवार की लड़की को लव जिहाद में फंसाकर आर्य समाज मंदिर में उससे शादी कर ली। कुछ समय बाद इबनैन ने मुस्लिम लड़की से निकाह करके पीड़िता को घर से निकाल दिया।
उत्तर प्रदेश का रहने वाले इश्तियाक कुरैशी ने सोशल मीडिया पर अजय समरथ बनकर *छत्तीसगढ़* की युवती से दोस्ती की। इसके बाद उसे अपने प्रेमजाल में फँसा लिया और शादी का झाँसा देकर उसके साथ रेप किया। पुलिस ने आरोपित को गिरफ्तार कर लिया है।
स्रोत :
https://hindi.opindia.com/national/in-satna-adil-trapped-a-hindu-girl-by-posing-as-aditya-and-then-got-an-affidavit-made-for-live-in-relationship/
https://hindi.opindia.com/national/darbhanga-bihar-mohammad-ibnain-love-jihad-poses-as-aryan-yadav-thrown-out-of-house/
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ऑपइंडिया
आदिल ने आदित्य बनकर हिंदू छात्रा को फँसाया, फिर लिव इन में रहने का बनवाया एफिडेविट: युवती के माता-पिता को भी मुस्लिम बनने के लिए…
मध्य प्रदेश के सतना में आदिल खान ने आदित्य यादव बनकर हिंदू लड़की को जाल में फँसा लिया। इसके बाद लिव इन रिलेशन में रहने का एफिडेविट बनवा लिया।
*लैंड जिहाद की जिस ‘मासूमियत’ को देख आगे बढ़ जाते हैं हम, उससे रोज लड़ते हैं प्रीत सिंह सिरोही : दिल्ली को 2000+ मजार-मस्जिद जैसी अवैध इस्लामी निर्माणों से मुक्त करवाना है इनका संकल्प*
2014 में सिरोही ने एक गाय को कटने से बचाया और उसके बाद इसे ही अपने जीवन का मिशन बना लिया।
आज वे दिल्ली को अवैध मस्जिद, दरगाह, कब्रिस्तानों से मुक्त कराने की लड़ाई लड़ रहे हैं। दिल्ली में अब तक ऐसे 2000 से अधिक अवैध निर्माणों की पहचान करने वाले सिरोही को कुछेक मोर्चों पर सफलता भी मिली है, लेकिन उससे अधिक रफ्तार से उनके खिलाफ साजिशों का सिलसिला भी चल रहा है। सिरोही का दावा है कि ऐसी ही एक साजिश के तहत उन पर, उनके पिता और उनके भाई तक पर केस दर्ज करवाए गए।
उनका कहना है कि इन साजिशों/धमकियों से उनका यह विश्वास और भी दृढ़ हो रहा है कि वे ‘धर्म’ के रास्ते पर हैं। इससे उन्हें दिल्ली को जल्द से जल्द अवैध निर्माण से मुक्त कराने की ऊर्जा मिलती है।
स्रोत :
https://hindi.opindia.com/national/who-is-preet-singh-sirohi-taking-on-illegal-islamic-mosques-dargahs-in-delhi-ncr/
2014 में सिरोही ने एक गाय को कटने से बचाया और उसके बाद इसे ही अपने जीवन का मिशन बना लिया।
आज वे दिल्ली को अवैध मस्जिद, दरगाह, कब्रिस्तानों से मुक्त कराने की लड़ाई लड़ रहे हैं। दिल्ली में अब तक ऐसे 2000 से अधिक अवैध निर्माणों की पहचान करने वाले सिरोही को कुछेक मोर्चों पर सफलता भी मिली है, लेकिन उससे अधिक रफ्तार से उनके खिलाफ साजिशों का सिलसिला भी चल रहा है। सिरोही का दावा है कि ऐसी ही एक साजिश के तहत उन पर, उनके पिता और उनके भाई तक पर केस दर्ज करवाए गए।
उनका कहना है कि इन साजिशों/धमकियों से उनका यह विश्वास और भी दृढ़ हो रहा है कि वे ‘धर्म’ के रास्ते पर हैं। इससे उन्हें दिल्ली को जल्द से जल्द अवैध निर्माण से मुक्त कराने की ऊर्जा मिलती है।
स्रोत :
https://hindi.opindia.com/national/who-is-preet-singh-sirohi-taking-on-illegal-islamic-mosques-dargahs-in-delhi-ncr/
ऑपइंडिया
लैंड जिहाद की जिस ‘मासूमियत’ को देख आगे बढ़ जाते हैं हम, उससे रोज लड़ते हैं प्रीत सिंह सिरोही: दिल्ली को 2000+ मजार-मस्जिद जैसी…
प्रीत सिरोही इन दिनों दिल्ली में अवैध रूप से बनाई गई मस्जिदों, दरगाहों, कब्रिस्तानों और उनके अतिक्रमण के विरुद्ध काम कर रहे है।
*‘आपातकाल तो उत्तर भारत का मुद्दा है, दक्षिण में तो इंदिरा गाँधी जीत गई थीं’: राजदीप सरदेसाई ने ‘संविधान की हत्या’ को ठहराया जायज*
इंडिया टुडे के ‘पत्रकार’ और अखिल भारतीय तृणमूल कॉन्ग्रेस (एआईटीसी या टीएमसी) की राज्यसभा सांसद सागरिका घोष के पति राजदीप सरदेसाई ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी द्वारा देश पर लगाए गए आपातकाल को जायज ठहराने की कोशिश की है। द लल्लनटॉप के ‘नेता नगरी’ शो में बोलते हुए सरदेसाई ने कहा कि वर्तमान में आपातकाल का मुद्दा उठाने से मौजूदा समस्याओं से ध्यान हट जाएगा।
स्रोत :
https://hindi.opindia.com/reports/media/rajdeep-sardesai-downplays-emergency-after-centre-announces-samvidhan-hatya-diwas-says-emergency-was-a-north-india-issue-indira-won-in-south/
इंडिया टुडे के ‘पत्रकार’ और अखिल भारतीय तृणमूल कॉन्ग्रेस (एआईटीसी या टीएमसी) की राज्यसभा सांसद सागरिका घोष के पति राजदीप सरदेसाई ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी द्वारा देश पर लगाए गए आपातकाल को जायज ठहराने की कोशिश की है। द लल्लनटॉप के ‘नेता नगरी’ शो में बोलते हुए सरदेसाई ने कहा कि वर्तमान में आपातकाल का मुद्दा उठाने से मौजूदा समस्याओं से ध्यान हट जाएगा।
स्रोत :
https://hindi.opindia.com/reports/media/rajdeep-sardesai-downplays-emergency-after-centre-announces-samvidhan-hatya-diwas-says-emergency-was-a-north-india-issue-indira-won-in-south/
ऑपइंडिया
‘आपातकाल तो उत्तर भारत का मुद्दा है, दक्षिण में तो इंदिरा गाँधी जीत गई थीं’: राजदीप सरदेसाई ने ‘संविधान की हत्या’ को ठहराया जायज
टीएमसी की राज्यसभा सांसद सागरिका घोष के पति राजदीप सरदेसाई ने देश पर थोपे गए आपातकाल को जायज ठहराने की कोशिश की है।
*छात्र समझेंगे ‘बहन’ और ‘गुरु’ शब्द का महत्व, ‘नमस्ते’ और ‘जय हिन्द’ से करेंगे अभिवादन : उत्तर प्रदेश के विद्यालयों में अब आधुनिक शिक्षा के साथ भारतीय संस्कार भी*
उत्तर प्रदेश के संबल जिले में प्राथमिक शिक्षा अधिकारी ने नए निर्देश जारी किए हैं, जिसमें महिला शिक्षकों को ‘मैडम’ की जगह ‘दीदी या बहन जी’ कहना होगा, तो पुरुष शिक्षकों को ‘गुरुजी’। बच्चे स्कूलों में शिक्षकों से ‘नमस्ते’ या ‘जय हिंद’ कहकर अभिवादन करेंगे। ये आदेश इसलिए जारी किया गया है, ताकि बच्चे भारतीय संस्कृति को अपनाएँ।
बीएसए अलका शर्मा ने कहा है कि विद्यालय के समय में कोई भी शिक्षक पान ,सिगरेट, तंबाकू आदि का उपयोग नहीं करेगा। यदि कोई भी शिक्षक इनका उपयोग करते पाया गया, तो संबंधित शिक्षकों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाएगी। साथ ही विद्यालय में प्लास्टिक की बोतलों का उपयोग पूर्णतया निशुद्ध कर दिया गया है, यदि कोई भी इनका उपयोग करता है तो उस पर अर्थदंड की कार्रवाई की जाएगी।
विद्यालय में आने वाले पुरुष और महिला शिक्षक जींस शर्ट आदि के स्थान पर भारतीय परिधान पहनकर ही स्कूल में आएँगे।
स्रोत :
https://hindi.opindia.com/national/sambhal-government-school-gets-new-order-for-didi-ji-behenji-not-allow-jeans-in-premises/
उत्तर प्रदेश के संबल जिले में प्राथमिक शिक्षा अधिकारी ने नए निर्देश जारी किए हैं, जिसमें महिला शिक्षकों को ‘मैडम’ की जगह ‘दीदी या बहन जी’ कहना होगा, तो पुरुष शिक्षकों को ‘गुरुजी’। बच्चे स्कूलों में शिक्षकों से ‘नमस्ते’ या ‘जय हिंद’ कहकर अभिवादन करेंगे। ये आदेश इसलिए जारी किया गया है, ताकि बच्चे भारतीय संस्कृति को अपनाएँ।
बीएसए अलका शर्मा ने कहा है कि विद्यालय के समय में कोई भी शिक्षक पान ,सिगरेट, तंबाकू आदि का उपयोग नहीं करेगा। यदि कोई भी शिक्षक इनका उपयोग करते पाया गया, तो संबंधित शिक्षकों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाएगी। साथ ही विद्यालय में प्लास्टिक की बोतलों का उपयोग पूर्णतया निशुद्ध कर दिया गया है, यदि कोई भी इनका उपयोग करता है तो उस पर अर्थदंड की कार्रवाई की जाएगी।
विद्यालय में आने वाले पुरुष और महिला शिक्षक जींस शर्ट आदि के स्थान पर भारतीय परिधान पहनकर ही स्कूल में आएँगे।
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ऑपइंडिया
छात्र समझेंगे ‘बहन’ और ‘गुरु’ शब्द का महत्व, ‘नमस्ते’ और ‘जय हिन्द’ से करेंगे अभिवादन: यूपी के स्कूलों में अब आधुनिक शिक्षा के…
संभल में सरकारी स्कूल के बच्चों को महिला शिक्षकों को 'मैडम' की जगह 'दीदी या बहन जी' कहना होगा, तो पुरुष शिक्षकों को 'गुरुजी'।
*जलगाँव में बार-बार चेन खींचकर पैसेंजर ट्रेन रोकी, फिर उतरकर यात्रियों पर करने लगे पथराव : उपद्रवी भीड़ में बुर्के वाली महिलाएँ भी दिखीं, वीडियो वायरल*
महाराष्ट्र के जलगाँव जिले में कुछ अज्ञात उपद्रवियों द्वारा भुसावल-नंदुरबार पैसेंजर ट्रेन पर पथराव किया गया है। इसको लेकर इलाके में तनाव की स्थिति बन गई है। इसका एक वीडियो भी सामने आया है, जिसमें बुर्का और नमाजी टोपी पहने लोग ट्रेन पर पथराव कर रहे हैं। इससे यात्रियों में दहशत का माहौल बन गया। इस घटना में अमलनेर के आरपीएफ प्रभारी ने रेलवे अधिनियम 154 के अन्तर्गत अज्ञात व्यक्ति के विरुद्ध एएन सीआर 473/2024 दर्ज कर जाँच आरंभ कर दी है। रिपोर्ट के अनुसार, सैकड़ों हिंदू श्रद्धालु अमलनेर तालुका के धार में एक पहाड़ी पर जात्रा/उरुस उत्सव के लिए एकत्र हुए थे।
स्रोत :
https://hindi.opindia.com/national/stone-pelting-on-passenger-train-in-jalgaon-maharashtra-case-registered-against-unknown/
महाराष्ट्र के जलगाँव जिले में कुछ अज्ञात उपद्रवियों द्वारा भुसावल-नंदुरबार पैसेंजर ट्रेन पर पथराव किया गया है। इसको लेकर इलाके में तनाव की स्थिति बन गई है। इसका एक वीडियो भी सामने आया है, जिसमें बुर्का और नमाजी टोपी पहने लोग ट्रेन पर पथराव कर रहे हैं। इससे यात्रियों में दहशत का माहौल बन गया। इस घटना में अमलनेर के आरपीएफ प्रभारी ने रेलवे अधिनियम 154 के अन्तर्गत अज्ञात व्यक्ति के विरुद्ध एएन सीआर 473/2024 दर्ज कर जाँच आरंभ कर दी है। रिपोर्ट के अनुसार, सैकड़ों हिंदू श्रद्धालु अमलनेर तालुका के धार में एक पहाड़ी पर जात्रा/उरुस उत्सव के लिए एकत्र हुए थे।
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ऑपइंडिया
जलगाँव में बार-बार चेन खींचकर पैसेंजर ट्रेन रोकी, फिर उतरकर यात्रियों पर करने लगे पथराव: उपद्रवी भीड़ में बुर्के वाली महिलाएँ भी…
जलगाँव में उपद्रवियों ने चेन पुलिंग करके पैसेंजर ट्रेन रोका और उतरकर ट्रेन पर पथराव करने लगे। वीडियो में बुर्का में महिलाएँ भी दिख रही हैं।
*आत्मबोध🕉️🦁*
*श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय*
*दिवस : ५३/३५० (53/350)*
*।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।*
*द्वितीयऽध्याय : सांख्ययोग*
*अध्याय ०२ : श्लोक ५९ (02:59)*
*विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिन:।*
*रसवर्जं रसोऽप्यस्य परं दृष्ट्वा निवर्तते ॥*
*शब्दार्थ—*
(निराहारस्य) इन्द्रियोंके द्वारा विषयोंको ग्रहण न करनेवाले (देहिनः) पुरुषके भी केवल (विषयाः) विकार (विनिवर्तन्ते) निवृत्त हो जाते हैं (रसवर्जम्) आसक्ति निवृत्त नहीं होती। (अस्य) इस स्थिर बुद्धि वालेके (परम्) उत्तम (दृष्टवा) देखने अर्थात् विकारों से होने वाली हानि को जानने के कारण (रसः) आसक्ति (अपि) भी (निवर्तते) निवृत्त हो जाती है।
*अनुवाद—*
इन्द्रियों द्वारा विषयों को ग्रहण न करने वाले पुरुष के भी केवल विषय तो निवृत्त हो जाते हैं, परन्तु उनमें रहने वाली आसक्ति निवृत्त नहीं होती। इस स्थितप्रज्ञ पुरुष की तो आसक्ति भी परमात्मा का साक्षात्कार करके निवृत्त हो जाती है।
*अध्याय ०२ : श्लोक ६० (02:60)*
*यततो ह्यपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चित:।*
*इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मन:॥*
*शब्दार्थ—*
(कौन्तेय) हे अर्जुन! (हि) क्योंकि (प्रमाथीनि) ये प्रमथन स्वभाववाली (इन्द्रियाणि) इन्द्रियाँ (यततः) यत्न करते हुए (विपिश्चितः) बुद्धिमान् (पुरुषस्य) पुरुषके (मनः) मनको (अपि) भी (प्रसभम्) बलात् (हरन्ति) हर लेती हैं।
*अनुवाद—*
हे अर्जुन! आसक्ति का नाश न होने के कारण ये प्रमथन स्वभाव वाली इन्द्रियाँ यत्न करते हुए बुद्धिमान पुरुष के मन को भी बलात् हर लेती हैं।
शेष क्रमश: कल
*अधिकांश हिन्दू तथाकथित व्यस्तता व तथाकथित समयाभाव के कारण हम सभी सनातनियों के लिए आदरणीय पठनीय एवं अनुकरणीय श्रीमद्भगवद्गीता का स्वाध्याय करना छोड़ चुके हैं, इसलिए प्रतिदिन गीता जी के दो श्लोकों को उनके हिन्दी अर्थ सहित भेजकर लगभग एक वर्ष के अन्तराल (350 दिन × 2 श्लोक/दिन = 700 श्लोक) में एक बार समूह से हजारों हिन्दुओं को सम्पूर्ण गीताजी का स्वाध्याय कराने का प्रण लिया गया है। आप सभी भी ये दो श्लोक प्रतिदिन पढ़ने व पढ़वाने का संकल्प लें।*
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(निराहारस्य) इन्द्रियोंके द्वारा विषयोंको ग्रहण न करनेवाले (देहिनः) पुरुषके भी केवल (विषयाः) विकार (विनिवर्तन्ते) निवृत्त हो जाते हैं (रसवर्जम्) आसक्ति निवृत्त नहीं होती। (अस्य) इस स्थिर बुद्धि वालेके (परम्) उत्तम (दृष्टवा) देखने अर्थात् विकारों से होने वाली हानि को जानने के कारण (रसः) आसक्ति (अपि) भी (निवर्तते) निवृत्त हो जाती है।
*अनुवाद—*
इन्द्रियों द्वारा विषयों को ग्रहण न करने वाले पुरुष के भी केवल विषय तो निवृत्त हो जाते हैं, परन्तु उनमें रहने वाली आसक्ति निवृत्त नहीं होती। इस स्थितप्रज्ञ पुरुष की तो आसक्ति भी परमात्मा का साक्षात्कार करके निवृत्त हो जाती है।
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*अनुवाद—*
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*आत्मबोध* 🕉️🚩
*दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : वेद में 'परमात्मा हमारी किससे रक्षा करें?' यह वर्णन*
*त्वं नो अग्ने महोभिः पाहि विश्वस्या अरातेः। उत द्विषो मर्त्यस्य*
*( सामवेद - मन्त्र संख्या : ६ (6) )*
*मन्त्रार्थ—*
हे (अग्ने) सबके नायक तेजःस्वरूप परमात्मन्! (त्वम्) जगदीश्वर आप (महोभिः) अपने तेजों से (विश्वस्याः) सब (अ-रातेः) अदान-भावना और शत्रुता से, (उत) और (मर्त्यस्य) मनुष्य के (द्विषः) द्वेष से (नः) हमारी (पाहि) रक्षा कीजिए।
इस मन्त्र की श्लेष द्वारा राजा तथा विद्वान् के पक्ष में भी अर्थ-योजना करनी चाहिए ।
*व्याख्या -*
अदानवृत्ति से ग्रस्त मनुष्य अपने पेट की ही पूर्ति करने वाला होकर सदा स्वार्थ ही के लिए यत्न करता है। उससे कभी सामाजिक और आध्यात्मिक उन्नति नहीं हो सकती। दान और परोपकार की तथा मैत्री की भावना से ही पारस्परिक सहयोग द्वारा लक्ष्यपूर्ति हो सकती है। अतः हे जगदीश्वर! हे राजन्! और हे विद्वन्! आप अपने तेजों से, अपने क्षत्रियत्व के प्रतापों से और अपने विद्या-प्रतापों से सम्पूर्ण अदान-भावना तथा शत्रुता से हमारी रक्षा कीजिए और जो मनुष्य हमसे द्वेष करता है तथा द्वेषबुद्धि से हमारी प्रगति में विघ्न उत्पन्न करता है, उसके द्वेष से भी हमारी रक्षा कीजिए, जिससे सूत्र में मणियों के समान परस्पर सामञ्जस्य(समरसता/एकता) में पिरोये रहते हुए हम उन्नत होवें।
*हिन्दू एकता संघ द्वारा सनातन धर्म के मूल ग्रन्थ वेदों के कल्याणकारी मन्त्रों के प्रचार हेतु बनाए गए नए इंस्टाग्राम पेज @vedicdarshan से जुड़ें 👇🏻🕉️*
*वैदिक दर्शन - लिंक:*
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*व्याख्या -*
अदानवृत्ति से ग्रस्त मनुष्य अपने पेट की ही पूर्ति करने वाला होकर सदा स्वार्थ ही के लिए यत्न करता है। उससे कभी सामाजिक और आध्यात्मिक उन्नति नहीं हो सकती। दान और परोपकार की तथा मैत्री की भावना से ही पारस्परिक सहयोग द्वारा लक्ष्यपूर्ति हो सकती है। अतः हे जगदीश्वर! हे राजन्! और हे विद्वन्! आप अपने तेजों से, अपने क्षत्रियत्व के प्रतापों से और अपने विद्या-प्रतापों से सम्पूर्ण अदान-भावना तथा शत्रुता से हमारी रक्षा कीजिए और जो मनुष्य हमसे द्वेष करता है तथा द्वेषबुद्धि से हमारी प्रगति में विघ्न उत्पन्न करता है, उसके द्वेष से भी हमारी रक्षा कीजिए, जिससे सूत्र में मणियों के समान परस्पर सामञ्जस्य(समरसता/एकता) में पिरोये रहते हुए हम उन्नत होवें।
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*आत्मबोध🕉️🦁*
*श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय*
*दिवस : ५४/३५० (54/350)*
*।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।*
*द्वितीयऽध्याय : सांख्ययोग*
*अध्याय ०२ : श्लोक ६१ (02:61)*
*तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीत मत्पर:।*
*वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।।*
*शब्दार्थ—*
(तानि) उन (सर्वाणि) सम्पूर्ण इन्द्रियोंको (संयम्य) वशमें करके (युक्तः) समाहित चित हुआ (मत्परः) शास्त्रानुसार साधना (आसीत) में दृढ़ता से लगे (हि) क्योंकि (यस्य) जिस पुरुषकी (इन्द्रियाणि) इन्द्रियाँ (वशे) वशमें होती हैं (तस्य) उसकी (प्रज्ञा) बुद्धि (प्रतिष्ठिता) स्थिर हो जाती है अर्थात् मन व इन्द्रियों के ऊपर बुद्धि की प्रभुत्ता रहती है।
*अनुवाद—*
इसलिए साधक को चाहिए कि वह उन सम्पूर्ण इन्द्रियों को वश में करके समाहित चित्त हुआ मेरे परायण होकर ध्यान में बैठे; क्योंकि जिस पुरुष की इन्द्रियाँ वश में होती हैं, उसी की बुद्धि स्थिर हो जाती है।
*अध्याय ०२ : श्लोक ६२ (02:62)*
*ध्यायतो विषयान्पुंस: सङ्गस्तेषूपजायते।*
*सङ्गात्सञ्जायते काम: कामात्क्रोधोऽभिजायते॥*
*शब्दार्थ—*
(विषयान्) विषयोंका (ध्यायतः) चिन्तन करनेवाले (पुंसः) पुरुषकी (तेषु) उन विषयोंमें (संग) आसक्ति (उपजायते) उत्पन्न हो जाती है (संगात्) आसक्तिसे (कामः) उन विषयोंकी कामना (सञ्जायते) उत्पन्न होती है और (कामात्) कामना में विघ्न पड़ने से (क्रोधः) क्रोध (अभिजायते) उत्पन्न होता है।
*अनुवाद—*
विषयों का चिन्तन करने वाले पुरुष की उन विषयों में आसक्ति हो जाती है, आसक्ति से उन विषयों की कामना उत्पन्न होती है और कामना में विघ्न पड़ने से क्रोध उत्पन्न होता है।
शेष क्रमश: कल
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*अध्याय ०२ : श्लोक ६१ (02:61)*
*तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीत मत्पर:।*
*वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।।*
*शब्दार्थ—*
(तानि) उन (सर्वाणि) सम्पूर्ण इन्द्रियोंको (संयम्य) वशमें करके (युक्तः) समाहित चित हुआ (मत्परः) शास्त्रानुसार साधना (आसीत) में दृढ़ता से लगे (हि) क्योंकि (यस्य) जिस पुरुषकी (इन्द्रियाणि) इन्द्रियाँ (वशे) वशमें होती हैं (तस्य) उसकी (प्रज्ञा) बुद्धि (प्रतिष्ठिता) स्थिर हो जाती है अर्थात् मन व इन्द्रियों के ऊपर बुद्धि की प्रभुत्ता रहती है।
*अनुवाद—*
इसलिए साधक को चाहिए कि वह उन सम्पूर्ण इन्द्रियों को वश में करके समाहित चित्त हुआ मेरे परायण होकर ध्यान में बैठे; क्योंकि जिस पुरुष की इन्द्रियाँ वश में होती हैं, उसी की बुद्धि स्थिर हो जाती है।
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*ध्यायतो विषयान्पुंस: सङ्गस्तेषूपजायते।*
*सङ्गात्सञ्जायते काम: कामात्क्रोधोऽभिजायते॥*
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(विषयान्) विषयोंका (ध्यायतः) चिन्तन करनेवाले (पुंसः) पुरुषकी (तेषु) उन विषयोंमें (संग) आसक्ति (उपजायते) उत्पन्न हो जाती है (संगात्) आसक्तिसे (कामः) उन विषयोंकी कामना (सञ्जायते) उत्पन्न होती है और (कामात्) कामना में विघ्न पड़ने से (क्रोधः) क्रोध (अभिजायते) उत्पन्न होता है।
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*दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : नेत्रादि उत्तम इन्द्रियों को प्रदान करने वाले परमात्मा के प्रति कृतज्ञता का भाव रखने का उपदेश*
*ऋषीणांप्रस्तरोऽसि नमोऽस्तु दैवाय प्रस्तराय॥*
*(अथर्ववेद - काण्ड 16; सूक्त 2; मन्त्र 6)*
*मन्त्रार्थ—*
[हे परमेश्वर !] तू (ऋषीणाम्) इन्द्रियों का (प्रस्तरः) फैलानेवाला (असि) है, (दैवाय) दिव्य गुणवाले (प्रस्तराय) फैलाने [तुझ] को (नमः) नमस्कार [सत्कार] (अस्तु) होवे।
*व्याख्या -*
मनुष्य उस परमात्मा को सदा धन्यवाद दें कि उसने उन वेदादि शास्त्र पढ़ने, सुनने, विचारने और उपकार करने के लिये अमूल्य श्रवण आदि इन्द्रियाँ दी हैं।
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*दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : नेत्रादि उत्तम इन्द्रियों को प्रदान करने वाले परमात्मा के प्रति कृतज्ञता का भाव रखने का उपदेश*
*ऋषीणांप्रस्तरोऽसि नमोऽस्तु दैवाय प्रस्तराय॥*
*(अथर्ववेद - काण्ड 16; सूक्त 2; मन्त्र 6)*
*मन्त्रार्थ—*
[हे परमेश्वर !] तू (ऋषीणाम्) इन्द्रियों का (प्रस्तरः) फैलानेवाला (असि) है, (दैवाय) दिव्य गुणवाले (प्रस्तराय) फैलाने [तुझ] को (नमः) नमस्कार [सत्कार] (अस्तु) होवे।
*व्याख्या -*
मनुष्य उस परमात्मा को सदा धन्यवाद दें कि उसने उन वेदादि शास्त्र पढ़ने, सुनने, विचारने और उपकार करने के लिये अमूल्य श्रवण आदि इन्द्रियाँ दी हैं।
*हिन्दू एकता संघ द्वारा सनातन धर्म के मूल ग्रन्थ वेदों के कल्याणकारी मन्त्रों के प्रचार हेतु बनाए गए नए इंस्टाग्राम पेज @vedicdarshan से जुड़ें 👇🏻🕉️*
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*इतिहासबोध🕉️🇮🇳*
*16 जुलाई: जन्मदिवस संघर्ष की प्रतिमूर्ति, भारतीय हॉकी के महान खिलाड़ी धनराज पिल्ले🏑*
_"पारिवारिक निर्धनता के कारण कभी टूटी हॉकी से खेल का अभ्यास करने से लेकर भारत के लिए 4 वर्ल्डकप, ओलंपिक और चैंपियंस ट्रॉफी में खेलने तक के अप्रतिम संघर्ष की गाथा"_
भारतीय हॉकी के इस महान सितारे का जन्म पुणे के निकट खिड़की में 16 जुलाई, 1968 को हुआ था। धनराज बहुत ही सामान्य परिवार से हैं, उनके माता-पिता मूलतः तमिलनाडू से थे लेकिन रोजी-रोटी की तलाश वे महाराष्ट्र के खिड़की नामक स्थान पर आ गए थे| माता-पिता ने पैसों के अभाव में जन्मे अपने चौथे पुत्र का नाम इस उम्मीद में “धनराज” रखा कि वो उनका भाग्य बदल सके…और पुरूषार्थी, धनराज ने यह सम्भव बनाया।
*संघर्षमयी आरंभिक जीवन*
धनराज का बचपन Ordinance Factory Staff Colony में बीता, जहां उनके पिता बतौर ग्राउंड्समैन काम करते थे। बड़ा परिवार और सीमित आय के कारण धनराज का परिवार सुख-सुविधाओं के अभाव में ही रहता था। खुद धनराज टूटी हुई हॉकी और फेंकी हुई बॉल से खेला करते थे और ऐसे करने की प्रेरणा उन्हें उनकी माँ से मिलती थी। तमाम तकलीफों के बीच भी उनकी माँ हमेशा अपने पाँचों बेटों को हुई खेलने के लिए प्रोत्साहित किया करती थीं। जब धनराज छोटे थे तब भारत में हॉकी ही सबसे लोकप्रिय खेल था और अक्सर बच्चे यही खेल खेला करते थे। भारतीय खेल जगत में हॉकी खिलाड़ी धनराज पिल्लै का नाम बहुत गर्व से लिया जाता है । हॉकी के इतिहास में सर्वश्रेष्ठ सेन्टर फारवर्ड खिलाड़ी समझे जाने वाले धनराज की तुलना क्रिकेट के सचिन तेंदुलकर से की जाती है। जैसे क्रिकेट में सचिन का कोई सानी नहीं है, इसी प्रकार धनराज पिल्लै भी हॉकी के खेल में सर्वश्रेष्ठ समझे जाते हैं ।
धनराज पिल्लै की कहानी एक ऐसे सामान्य परिवार के लड़के की कहानी है जो निर्धनता से निकलकर अपने पुरुषार्थ, परिश्रम से अपना लक्ष्य प्राप्त करता है । पुणे की हथियारों की फैक्टरियों की गलियों में खेल-खेलकर उनका बचपन बीता। पांच बहन-भाइयों के बीच धनराज के यहां धन की कमी होते हुए भी उन्हें खेल के लिए माँ का पूरा नैतिक समर्थन प्राप्त हुआ। धन की कमी के कारण धनराज व उसका भाई हॉकी खरीदने में पैसे खर्च करने में असमर्थ थे। अत: वे इसके स्थान पर दूसरों की टूटी हुई हॉकी को रस्सी से बांध कर, फेंकी गई बॉल के साथ अभ्यास करते थे।
धनराज को बचपन से आज तक अपनी माँ से बहुत लगाव है । धनराज का कहना है- ‘यह कल्पना करना कठिन है कि घर में इतने कम साधन होते हुए भी माँ ने हमें पाल-पोसकर बड़ा किया और हम सब को एक अच्छा इंसान बनाया ।
अपने लम्बे लहराते बालो की वजह से टीम में पहचाने जाने वाले धनराज पिल्लै Golden Boy ही नही है बल्कि अपने खेल के कौशल द्वारा ये विपक्षी रक्षा पंक्ति के खिलाडियों को चकमा देकर बॉल को गोल पोस्ट के भीतर पहुँचाकर ही दम लेते थे| धनराज (Dhanraj Pillay) को बॉल मिली नही कि इनका एकमात्र लक्ष्य उसे गोल पोस्ट तक पहचाना ही रहता था | विपक्षी खिलाड़ी धनराज को किसी तरह रोकने में सफल हो, यही कोशिश करते रह जाते थे ये अब तक विश्व कप , ओलम्पिक, एशिया कप ,एशो-अफ्रीका हॉकी खेल चुके हैं | अब तक सर्वाधिक गोल बनाने भारतीय टीम में इनका रिकॉर्ड रहा है | धनराज पिल्लै ने अंतराष्ट्रीय हॉकी में 1989 में कदम रखा जब उन्होंने नई दिल्ली में ऑलवेन एसिया कप खेला।
*अंतराष्ट्रीय करियर :*
धनराज पिल्लै जिनका करियर दिसंबर 1989 से अगस्त 2004 के बीच चला, ने कुल 339 अंतराष्ट्रीय मैचों में हिस्सा लिया। भारतीय हॉकी फेडरेशन ने उनके द्वारा किए गए गोल्स का रिकॉर्ड नहीं रखा यही वजह है कि धनराज पिल्लै द्वारा लगाए गए गोल्स की सही संख्या के विषय में नहीं कहा जा सकता। उन्होंने करीब 170 गोल्स किए हैं ऐसा अनुमान धनराज पिल्लै का है।
*उपलब्धियां :*
वह अकेले ऐसे हॉकी खिलाड़ी हैं जिन्होंने चार ओलंपिक में हिस्सा लिया है। 1992, 1996, 2000 और 2004 के ओलपिंक में धनराज पिल्लै खेले। 995, 1996, 2002, और 2003 में हुई चैंपियंस ट्रॉफी का भी हिस्सा रहे। 1990, 1994, 1998, और 2002 में हुए एशियन गेम्स में भी धनराज पिल्लै खेले। भारत ने 1998 में और 2003 में एशियन गेम्स और एशिया कप धनराज पिल्लै की कप्तानी में जीता। साथ ही वह बैंकाक एशियन गेम्स में सबसे अधिक गोल करने वाले खिलाड़ी बने।
*पुरस्कार :*
वर्ष 1999-2000 में उन्हें भारत के सर्वोच्च खेल पुरस्कार राजीव गांधी खेल रत्न से सम्मानित किया गया। वर्ष 2000 में उन्हें नागरिक सम्मान पद्म श्री प्रदान किया गया। छोटी कद-काठी और लहराते बालों वाले धनराज अपने युग के सबसे प्रतिभाशाली फॉरवर्ड खिलाड़ी रहे हैं जो विरोधियों के गढ़ में कहर बरपाने की क्षमता रखते थे। वे 2002 एशियाई खेलों की विजेता हॉफ़की टीम के सफल कप्तान थे। कोलोन, जर्मनी में आयोजित 2002 चैंपियंस ट्रॉफी में उन्हें टूर्नामेंट का
*16 जुलाई: जन्मदिवस संघर्ष की प्रतिमूर्ति, भारतीय हॉकी के महान खिलाड़ी धनराज पिल्ले🏑*
_"पारिवारिक निर्धनता के कारण कभी टूटी हॉकी से खेल का अभ्यास करने से लेकर भारत के लिए 4 वर्ल्डकप, ओलंपिक और चैंपियंस ट्रॉफी में खेलने तक के अप्रतिम संघर्ष की गाथा"_
भारतीय हॉकी के इस महान सितारे का जन्म पुणे के निकट खिड़की में 16 जुलाई, 1968 को हुआ था। धनराज बहुत ही सामान्य परिवार से हैं, उनके माता-पिता मूलतः तमिलनाडू से थे लेकिन रोजी-रोटी की तलाश वे महाराष्ट्र के खिड़की नामक स्थान पर आ गए थे| माता-पिता ने पैसों के अभाव में जन्मे अपने चौथे पुत्र का नाम इस उम्मीद में “धनराज” रखा कि वो उनका भाग्य बदल सके…और पुरूषार्थी, धनराज ने यह सम्भव बनाया।
*संघर्षमयी आरंभिक जीवन*
धनराज का बचपन Ordinance Factory Staff Colony में बीता, जहां उनके पिता बतौर ग्राउंड्समैन काम करते थे। बड़ा परिवार और सीमित आय के कारण धनराज का परिवार सुख-सुविधाओं के अभाव में ही रहता था। खुद धनराज टूटी हुई हॉकी और फेंकी हुई बॉल से खेला करते थे और ऐसे करने की प्रेरणा उन्हें उनकी माँ से मिलती थी। तमाम तकलीफों के बीच भी उनकी माँ हमेशा अपने पाँचों बेटों को हुई खेलने के लिए प्रोत्साहित किया करती थीं। जब धनराज छोटे थे तब भारत में हॉकी ही सबसे लोकप्रिय खेल था और अक्सर बच्चे यही खेल खेला करते थे। भारतीय खेल जगत में हॉकी खिलाड़ी धनराज पिल्लै का नाम बहुत गर्व से लिया जाता है । हॉकी के इतिहास में सर्वश्रेष्ठ सेन्टर फारवर्ड खिलाड़ी समझे जाने वाले धनराज की तुलना क्रिकेट के सचिन तेंदुलकर से की जाती है। जैसे क्रिकेट में सचिन का कोई सानी नहीं है, इसी प्रकार धनराज पिल्लै भी हॉकी के खेल में सर्वश्रेष्ठ समझे जाते हैं ।
धनराज पिल्लै की कहानी एक ऐसे सामान्य परिवार के लड़के की कहानी है जो निर्धनता से निकलकर अपने पुरुषार्थ, परिश्रम से अपना लक्ष्य प्राप्त करता है । पुणे की हथियारों की फैक्टरियों की गलियों में खेल-खेलकर उनका बचपन बीता। पांच बहन-भाइयों के बीच धनराज के यहां धन की कमी होते हुए भी उन्हें खेल के लिए माँ का पूरा नैतिक समर्थन प्राप्त हुआ। धन की कमी के कारण धनराज व उसका भाई हॉकी खरीदने में पैसे खर्च करने में असमर्थ थे। अत: वे इसके स्थान पर दूसरों की टूटी हुई हॉकी को रस्सी से बांध कर, फेंकी गई बॉल के साथ अभ्यास करते थे।
धनराज को बचपन से आज तक अपनी माँ से बहुत लगाव है । धनराज का कहना है- ‘यह कल्पना करना कठिन है कि घर में इतने कम साधन होते हुए भी माँ ने हमें पाल-पोसकर बड़ा किया और हम सब को एक अच्छा इंसान बनाया ।
अपने लम्बे लहराते बालो की वजह से टीम में पहचाने जाने वाले धनराज पिल्लै Golden Boy ही नही है बल्कि अपने खेल के कौशल द्वारा ये विपक्षी रक्षा पंक्ति के खिलाडियों को चकमा देकर बॉल को गोल पोस्ट के भीतर पहुँचाकर ही दम लेते थे| धनराज (Dhanraj Pillay) को बॉल मिली नही कि इनका एकमात्र लक्ष्य उसे गोल पोस्ट तक पहचाना ही रहता था | विपक्षी खिलाड़ी धनराज को किसी तरह रोकने में सफल हो, यही कोशिश करते रह जाते थे ये अब तक विश्व कप , ओलम्पिक, एशिया कप ,एशो-अफ्रीका हॉकी खेल चुके हैं | अब तक सर्वाधिक गोल बनाने भारतीय टीम में इनका रिकॉर्ड रहा है | धनराज पिल्लै ने अंतराष्ट्रीय हॉकी में 1989 में कदम रखा जब उन्होंने नई दिल्ली में ऑलवेन एसिया कप खेला।
*अंतराष्ट्रीय करियर :*
धनराज पिल्लै जिनका करियर दिसंबर 1989 से अगस्त 2004 के बीच चला, ने कुल 339 अंतराष्ट्रीय मैचों में हिस्सा लिया। भारतीय हॉकी फेडरेशन ने उनके द्वारा किए गए गोल्स का रिकॉर्ड नहीं रखा यही वजह है कि धनराज पिल्लै द्वारा लगाए गए गोल्स की सही संख्या के विषय में नहीं कहा जा सकता। उन्होंने करीब 170 गोल्स किए हैं ऐसा अनुमान धनराज पिल्लै का है।
*उपलब्धियां :*
वह अकेले ऐसे हॉकी खिलाड़ी हैं जिन्होंने चार ओलंपिक में हिस्सा लिया है। 1992, 1996, 2000 और 2004 के ओलपिंक में धनराज पिल्लै खेले। 995, 1996, 2002, और 2003 में हुई चैंपियंस ट्रॉफी का भी हिस्सा रहे। 1990, 1994, 1998, और 2002 में हुए एशियन गेम्स में भी धनराज पिल्लै खेले। भारत ने 1998 में और 2003 में एशियन गेम्स और एशिया कप धनराज पिल्लै की कप्तानी में जीता। साथ ही वह बैंकाक एशियन गेम्स में सबसे अधिक गोल करने वाले खिलाड़ी बने।
*पुरस्कार :*
वर्ष 1999-2000 में उन्हें भारत के सर्वोच्च खेल पुरस्कार राजीव गांधी खेल रत्न से सम्मानित किया गया। वर्ष 2000 में उन्हें नागरिक सम्मान पद्म श्री प्रदान किया गया। छोटी कद-काठी और लहराते बालों वाले धनराज अपने युग के सबसे प्रतिभाशाली फॉरवर्ड खिलाड़ी रहे हैं जो विरोधियों के गढ़ में कहर बरपाने की क्षमता रखते थे। वे 2002 एशियाई खेलों की विजेता हॉफ़की टीम के सफल कप्तान थे। कोलोन, जर्मनी में आयोजित 2002 चैंपियंस ट्रॉफी में उन्हें टूर्नामेंट का
*आत्मबोध🕉️🦁*
*श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय*
*दिवस : ६०/३५० (60/350)*
*।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।*
*अथ श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु कर्मयोगो नाम तृतीयोऽध्यायः*
*अध्याय ०३ : श्लोक ०१ (03:01)*
*अर्जुन उवाच—*
*ज्यायसी चेत्कर्मणस्ते मता बुद्धिर्जनार्दन।*
*तत्किं कर्मणि घोरे मां नियोजयसि केशव॥*
*शब्दार्थ—*
(जनार्दन) हे जनार्दन! (चेत्) यदि (ते) आपको (कर्मणः) कर्मकी अपेक्षा (बुद्धिः) तत्त्वदर्शी द्वारा दिया ज्ञान (ज्यायसी) श्रेष्ठ (मता) मान्य है (तत्) तो फिर (केशव) हे केशव! (माम्) मुझे एक स्थान पर बैठ कर इन्द्रियों को रोक कर, गर्दन व सिर को सीधा रख कर (घोरे) तथा युद्ध करने जैसे भयंकर (कर्मणि) कर्ममें (किम्) क्यों (नियोजयसि) लगाते हैं?
*अनुवाद—*
अर्जुन बोले -- हे जनार्दन! यदि आप कर्मसे बुद्धि (ज्ञान) को श्रेष्ठ मानते हैं, तो फिर हे केशव ! मुझे घोर कर्ममें क्यों लगाते हैं ?
*अध्याय ०३ : श्लोक ०२ (03:02)*
*व्यामिश्रेणेव वाक्येन बुद्धिं मोहयसीव मे।*
*तदेकं वद निश्चित्य येन श्रेयोऽहमाप्नुयाम् ॥*
*शब्दार्थ—*
(व्यामिश्रेण,इव) इस प्रकार आपके मिले हुए से/मिश्रित (वाक्येन) वचनोंसे (मे) मेरी (बुद्धिम्) बुद्धि (मोहयसि, इव) भ्रमित हो रही है इसलिए (तत्) उस (एकम्) एक बातको (निश्चित्य) निश्चित करके (वद) कहिये (येन) जिससे (अहम्) मैं (श्रेयः) कल्याणको (आप्नुयाम्) प्राप्त हो जाऊँ।
*अनुवाद—*
आप अपने मिश्रित हुए-से वचनोंसे मेरी बुद्धिको मोहित-सी कर रहे हैं। अतः आप निश्चय करके एक बात को कहिये, जिससे मैं कल्याणको प्राप्त हो जाऊँ।
(*विशेष:* पहले से ही मोहितमन अर्जुन में सामान्य मनुष्य होने के नाते वह सूक्ष्म बुद्धि नहीं थी, जिसके द्वारा विवेकपूर्वक भगवान् के सूक्ष्म तर्कों को समझ कर वह निश्चित कर सके कि परम श्रेय की प्राप्ति के लिए कर्म मार्ग सरल था अथवा ज्ञान मार्ग। इसलिए वह यहाँ भगवान् से नम्र निवेदन करता है आप उस मार्ग को निश्चित कर आदेश करिये, जिससे मैं परम श्रेय को प्राप्त कर सकूँ। अर्जुन को इसमें संदेह नहीं था कि जीवन केवल धन के उपार्जन परिग्रह और व्यय के लिए नहीं है। वह जानता था कि उसका जीवन श्रेष्ठ सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए था, जिसके लिए भौतिक उन्नति केवल साधन थी साध्य नहीं। अर्जुन मात्र यह जानना चाहता था कि वह उपलब्ध परिस्थितियों का जीवन की लक्ष्य प्राप्ति और भविष्य निर्माण में किस प्रकार सदुपयोग करे।)
शेष क्रमश: कल
*अधिकांश हिन्दू तथाकथित व्यस्तता व तथाकथित समयाभाव के कारण हम सभी सनातनियों के लिए आदरणीय पठनीय एवं अनुकरणीय श्रीमद्भगवद्गीता का स्वाध्याय करना छोड़ चुके हैं, इसलिए प्रतिदिन गीता जी के दो श्लोकों को उनके हिन्दी अर्थ सहित भेजकर लगभग एक वर्ष के अन्तराल (350 दिन × 2 श्लोक/दिन = 700 श्लोक) में एक बार समूह से हजारों हिन्दुओं को सम्पूर्ण गीताजी का स्वाध्याय कराने का प्रण लिया गया है। आप सभी भी ये दो श्लोक प्रतिदिन पढ़ने व पढ़वाने का संकल्प लें।*
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*अथ श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु कर्मयोगो नाम तृतीयोऽध्यायः*
*अध्याय ०३ : श्लोक ०१ (03:01)*
*अर्जुन उवाच—*
*ज्यायसी चेत्कर्मणस्ते मता बुद्धिर्जनार्दन।*
*तत्किं कर्मणि घोरे मां नियोजयसि केशव॥*
*शब्दार्थ—*
(जनार्दन) हे जनार्दन! (चेत्) यदि (ते) आपको (कर्मणः) कर्मकी अपेक्षा (बुद्धिः) तत्त्वदर्शी द्वारा दिया ज्ञान (ज्यायसी) श्रेष्ठ (मता) मान्य है (तत्) तो फिर (केशव) हे केशव! (माम्) मुझे एक स्थान पर बैठ कर इन्द्रियों को रोक कर, गर्दन व सिर को सीधा रख कर (घोरे) तथा युद्ध करने जैसे भयंकर (कर्मणि) कर्ममें (किम्) क्यों (नियोजयसि) लगाते हैं?
*अनुवाद—*
अर्जुन बोले -- हे जनार्दन! यदि आप कर्मसे बुद्धि (ज्ञान) को श्रेष्ठ मानते हैं, तो फिर हे केशव ! मुझे घोर कर्ममें क्यों लगाते हैं ?
*अध्याय ०३ : श्लोक ०२ (03:02)*
*व्यामिश्रेणेव वाक्येन बुद्धिं मोहयसीव मे।*
*तदेकं वद निश्चित्य येन श्रेयोऽहमाप्नुयाम् ॥*
*शब्दार्थ—*
(व्यामिश्रेण,इव) इस प्रकार आपके मिले हुए से/मिश्रित (वाक्येन) वचनोंसे (मे) मेरी (बुद्धिम्) बुद्धि (मोहयसि, इव) भ्रमित हो रही है इसलिए (तत्) उस (एकम्) एक बातको (निश्चित्य) निश्चित करके (वद) कहिये (येन) जिससे (अहम्) मैं (श्रेयः) कल्याणको (आप्नुयाम्) प्राप्त हो जाऊँ।
*अनुवाद—*
आप अपने मिश्रित हुए-से वचनोंसे मेरी बुद्धिको मोहित-सी कर रहे हैं। अतः आप निश्चय करके एक बात को कहिये, जिससे मैं कल्याणको प्राप्त हो जाऊँ।
(*विशेष:* पहले से ही मोहितमन अर्जुन में सामान्य मनुष्य होने के नाते वह सूक्ष्म बुद्धि नहीं थी, जिसके द्वारा विवेकपूर्वक भगवान् के सूक्ष्म तर्कों को समझ कर वह निश्चित कर सके कि परम श्रेय की प्राप्ति के लिए कर्म मार्ग सरल था अथवा ज्ञान मार्ग। इसलिए वह यहाँ भगवान् से नम्र निवेदन करता है आप उस मार्ग को निश्चित कर आदेश करिये, जिससे मैं परम श्रेय को प्राप्त कर सकूँ। अर्जुन को इसमें संदेह नहीं था कि जीवन केवल धन के उपार्जन परिग्रह और व्यय के लिए नहीं है। वह जानता था कि उसका जीवन श्रेष्ठ सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए था, जिसके लिए भौतिक उन्नति केवल साधन थी साध्य नहीं। अर्जुन मात्र यह जानना चाहता था कि वह उपलब्ध परिस्थितियों का जीवन की लक्ष्य प्राप्ति और भविष्य निर्माण में किस प्रकार सदुपयोग करे।)
शेष क्रमश: कल
*अधिकांश हिन्दू तथाकथित व्यस्तता व तथाकथित समयाभाव के कारण हम सभी सनातनियों के लिए आदरणीय पठनीय एवं अनुकरणीय श्रीमद्भगवद्गीता का स्वाध्याय करना छोड़ चुके हैं, इसलिए प्रतिदिन गीता जी के दो श्लोकों को उनके हिन्दी अर्थ सहित भेजकर लगभग एक वर्ष के अन्तराल (350 दिन × 2 श्लोक/दिन = 700 श्लोक) में एक बार समूह से हजारों हिन्दुओं को सम्पूर्ण गीताजी का स्वाध्याय कराने का प्रण लिया गया है। आप सभी भी ये दो श्लोक प्रतिदिन पढ़ने व पढ़वाने का संकल्प लें।*
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*आत्मबोध* 🕉️🚩
*दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : वेदानुसार मनुष्य की सर्वथा उन्नति का मार्ग।*
*अन्तकाय मृत्यवे नमः प्राणा अपाना इह ते रमन्ताम्। इहायमस्तु पुरुषः सहासुना सूर्यस्य भागे अमृतस्य लोके ॥*
*(अथर्ववेद - काण्ड 8, सूक्त 1, मन्त्र 1)*
*मन्त्रार्थ—*
(अन्तकाय) मनोहर करनेवाले [परमेश्वर] को (मृत्यवे) मृत्यु नाश करने के लिये (नमः) नमस्कार है, [हे मनुष्य !] (ते) तेरे (प्राणाः) प्राण और (अपानाः) अपान (इह) इस [परमेश्वर] में (रमन्ताम्) रमे रहें। (इह) इस [जगत्] में (अयम्) यह (पुरुषः) पुरुष (असुना सह) बुद्धि के साथ (सूर्यस्य) सब के चलानेवाले सूर्य [अर्थात् परमेश्वर] के (भागे) ऐश्वर्यसमूह के बीच (अमृतस्य लोके) अमरलोक [मोक्षपद] में (अस्तु) रहे।
*व्याख्या—*
चेतन और जड़ को चलाने वाला होने के कारण सूर्य परमेश्वर का एक नाम है, जो मनुष्य अपनी आत्मा को ऐसे अनन्त ऐश्वर्य वाले परमात्मा के गुणों में निरन्तर लगाते हैं, वे सर्वथा उन्नति करते हैं।
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(अन्तकाय) मनोहर करनेवाले [परमेश्वर] को (मृत्यवे) मृत्यु नाश करने के लिये (नमः) नमस्कार है, [हे मनुष्य !] (ते) तेरे (प्राणाः) प्राण और (अपानाः) अपान (इह) इस [परमेश्वर] में (रमन्ताम्) रमे रहें। (इह) इस [जगत्] में (अयम्) यह (पुरुषः) पुरुष (असुना सह) बुद्धि के साथ (सूर्यस्य) सब के चलानेवाले सूर्य [अर्थात् परमेश्वर] के (भागे) ऐश्वर्यसमूह के बीच (अमृतस्य लोके) अमरलोक [मोक्षपद] में (अस्तु) रहे।
*व्याख्या—*
चेतन और जड़ को चलाने वाला होने के कारण सूर्य परमेश्वर का एक नाम है, जो मनुष्य अपनी आत्मा को ऐसे अनन्त ऐश्वर्य वाले परमात्मा के गुणों में निरन्तर लगाते हैं, वे सर्वथा उन्नति करते हैं।
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🔱 पवित्र श्रावण मास के प्रथम सोमवार की आप सभी को अनन्त शुभकामनाएं एवं बधाई। महादेव की कृपा से आपके व परिवार के जीवन में प्रसन्नता एवं समृद्धि आये और जीवन की
प्रत्येक परिस्थिति का सामना करने हेतु आपको बल मिले।
बम बम भोले 🕉️
बोल बम
हर हर महादेव 🙌
प्रत्येक परिस्थिति का सामना करने हेतु आपको बल मिले।
बम बम भोले 🕉️
बोल बम
हर हर महादेव 🙌