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प्रतिदिन स्मरण करने वाले मंत्र

#प्रात: हाथ(कर)-दर्शनम्*

कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती।
करमूले तू गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम्॥

#पृथ्वी क्षमा प्रार्थना*

समुद्र वसने देवी पर्वत स्तन मंडिते।
विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यं पाद स्पर्शं क्षमश्वमेव॥

#त्रिदेवों के साथ नवग्रह स्मरण*

ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानु: शशी भूमिसुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्र: शनिराहुकेतव: कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्॥

#स्नान मन्त्र *

गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।
नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु॥

#सूर्यनमस्कार*

ॐ सूर्य आत्मा जगतस्तस्युषश्च
आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने।
दीर्घमायुर्बलं वीर्यं व्याधि शोक विनाशनम्
सूर्य पादोदकं तीर्थ जठरे धारयाम्यहम्॥

ॐ मित्राय नम:
ॐ रवये नम:
ॐ सूर्याय नम:
ॐ भानवे नम:
ॐ खगाय नम:
ॐ पूष्णे नम:
ॐ हिरण्यगर्भाय नम:
ॐ मरीचये नम:
ॐ आदित्याय नम:
ॐ सवित्रे नम:
ॐ अर्काय नम:
ॐ भास्कराय नम:
ॐ श्री सवितृ सूर्यनारायणाय नम:

#आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीदमम् भास्कर।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते॥

#दीप दर्शन*

#शुभं करोति कल्याणम् आरोग्यम् धनसंपदा।
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपकाय नमोऽस्तु ते॥

#दीपो ज्योति परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दनः।
दीपो हरतु मे पापं संध्यादीप नमोऽस्तु ते॥

#गणपति स्तोत्र *

#गणपति: विघ्नराजो लम्बतुन्ड़ो गजानन:।
द्वै मातुरश्च हेरम्ब एकदंतो गणाधिप:॥
विनायक: चारूकर्ण: पशुपालो भवात्मज:।
द्वादश एतानि नामानि प्रात: उत्थाय य: पठेत्॥
विश्वम तस्य भवेद् वश्यम् न च विघ्नम् भवेत् क्वचित्।

#विघ्नेश्वराय वरदाय शुभप्रियाय।
लम्बोदराय विकटाय गजाननाय॥
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय।
गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥

#शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजं।
प्रसन्नवदनं ध्यायेतसर्वविघ्नोपशान्तये॥

#आदिशक्तिवंदना *

#सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥

#शिवस्तुति *

#कर्पूर गौरम करुणावतारं,
संसार सारं भुजगेन्द्र हारं।
सदा वसंतं हृदयार विन्दे,
भवं भवानी सहितं नमामि॥

#विष्णुस्तुति *

#शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥

#श्री #कृष्णस्तुति *

#कस्तुरी तिलकम ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम।
नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले, वेणु करे कंकणम॥
सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम, कंठे च मुक्तावलि।
गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते, गोपाल चूडामणी॥

#मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम्‌।
यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम्‌॥

#श्रीराम वंदना *

#लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये॥

#श्रीरामाष्टक*

#हे रामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायणा केशवा।
गोविन्दा गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा॥
हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते।
बैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम्॥

#एक #श्लोकी #रामायण *

#आदौ रामतपोवनादि गमनं हत्वा मृगं कांचनम्।
वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीवसम्भाषणम्॥
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं लंकापुरीदाहनम्।
पश्चाद्रावण कुम्भकर्णहननं एतद्घि श्री रामायणम्॥

#सरस्वतीवंदना*

#या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वींणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपदमासना॥
या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा माम पातु सरस्वती भगवती
निःशेषजाड्याऽपहा॥

#हनुमानवंदना

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहम्‌।
दनुजवनकृषानुम् ज्ञानिनांग्रगणयम्‌।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम्‌।
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥

मनोजवं मारुततुल्यवेगम जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणम् प्रपद्ये॥

#स्वस्तिवाचन

ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवाः
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्ट्टनेमिः
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥

#शांतिपाठ

ऊँ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्‌ पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥

ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्ष (गुँ) शान्ति:,
पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,
सर्व (गुँ) शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥

*॥ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥*

#Sanskritkauday
#Sanskrit
@ancientindia1
भगवान् नृसिंहदेव
वैष्णव सम्प्रदाय में भगवान् नृसिंह देव का बहुत महत्त्व है। भगवान विष्णु के प्रमुख अवतारों में से एक अवतार नृसिंह देव का है। नृसिंह अवतार में भगवान विष्णु ने आधा मनुष्य व आधा शेर का शरीर धारण करके दैत्यों के राजा हिरण्यकशिपु का वध किया था। हिरण्यकशिपु का बड़ा ही दुष्ट असुर था जो निर्दोषो को, संतो को यहाँ तक की स्वम अपने पुत्र को भी समेत करने के लिए तत्पर रहता था क्योकि उसका पुत्र भगवन विष्णु को ही सर्वत्र देखा करता, उन्ही के नामो का हरिनाम किया करता था। जिसकी वजह से दैत्यों राज हिरण्यकशिपु अपने पुत्र को मरना चाहता था। लेकिन अपने अंत समय तक वो भगवान् विष्णु के भक्त प्रह्लाद का बाल भी बांका नही कर पाया और भगवान् के हाथो भगवत धाम को पधारा।
हिरण्यकशिपु का वध
भगवान-भक्ति से प्रह्लाद का मन हटाने और उसमें अपने जैसे दुर्गुण भरने के लिए हिरण्यकशिपु ने बहुत प्रयास किए। नीति-अनीति सभी का प्रयोग किया, किंतु प्रह्लाद अपने मार्ग से विचलित न हुआ। तब उसने प्रह्लाद को मारने के लिए षड्यंत्र रचे, किंतु वह सभी में असफल रहा। भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद हर संकट से उबर आता और बच जाता था। अपने सभी प्रयासों में असफल होने पर क्षुब्ध हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को अपनी बहन होलिका की गोद में बैठाकर जिन्दा ही जलाने का प्रयास किया। होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि अग्नि उसे नहीं जला सकती, परंतु जब प्रह्लाद को होलिका की गोद में बिठा कर अग्नि में डाला गया तो उसमें होलिका तो जलकर राख हो गई, किंतु प्रह्लाद का बाल भी बाँका नहीं हुआ। इस घटना को देखकर हिरण्यकशिपु क्रोध से भर गया। उसकी प्रजा भी अब भगवान विष्णु की पूजा करने लगी थी। तब एक दिन हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद से पूछा कि बता- "तेरा भगवान कहाँ है?" इस पर प्रह्लाद ने विनम्र भाव से कहा कि "प्रभु तो सर्वत्र हैं, हर जगह व्याप्त हैं।" क्रोधित हिरण्यकशिपु ने कहा कि "क्या तेरा भगवान इस स्तम्भ (खंभे) में भी है?" प्रह्लाद ने हाँ में उत्तर दिया। यह सुनकर क्रोधांध हिरण्यकशिपु ने खंभे पर प्रहार कर दिया। तभी खंभे को चीरकर श्रीनृसिंह भगवान प्रकट हो गए और हिरण्यकशिपु को पकड़कर अपनी जाँघों पर रखकर उसकी छाती को नखों से फाड़ डाला और उसका वध कर दिया। श्रीनृसिंह ने प्रह्लाद की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि आज के दिन जो भी मेरा व्रत करेगा, वह समस्त सुखों का भागी होगा एवं पापों से मुक्त होकर परमधाम को प्राप्त होगा। अत: इस कारण से इस दिन को "नृसिंह जयंती-उत्सव" के रूप में मनाया जाता है।
@ancientindia1
*🌹पंचांग 18 मार्च 2025: हनुमान चालीसा की सात प्रमुख चौपाइयां, ये हैं अत्यंत प्रभावशाली🌹*
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*भगवान हनुमान की पूजा के लिए मंगलवार को विशेष माना जाता है। हनुमान चालीसा का पाठ करने से भक्तों के सभी कष्ट दूर होते हैं। हनुमान चालीसा की कुछ चौपाइयां अत्यंत प्रभावशाली हैं, जिनका नियमित जाप विशेष लाभ देता है।*

*⚜️ये हैं प्रभावशाली चौपाइयां*
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*📿भय और कष्ट दूर करने के लिए*
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सब सुख लहे तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहू को डरना

*📿नकारात्मक ऊर्जा दूर करने के लिए*
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आपन तेज सम्हारो आपे, तीनो लोक हांक ते कांपे

*📿बुरी शक्तियों से सुरक्षा के लिए*
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भूत पिशाच निकट नहि आवे, महावीर जब नाम सुनावे

*📿रोग मुक्ति के लिए*
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नाशे रोग हरे सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत वीरा

*📿संकट में सहायता के लिए*
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संकट ते हनुमान छुड़ावै, मन क्रम वचन ध्यान जो लावे

*📿सज्जनों की रक्षा के लिए*
*ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ*
साधु संत के तुम रखवारे, असुर निकंदन राम दुलारे

*📿सिद्धियां प्राप्त करने के लिए*
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अष्टसिद्धि नवनिधि के दाता, अस बर दीन जानकी माता

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*🚩#राम_राम_जी🚩*
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@ancientindia1
आर्य समाज 150 वर्ष महासम्मेलन – क्या है इस ऐतिहासिक आयोजन में

वेदों पर गहन चर्चा
यज्ञ और अनुष्ठान
कला प्रस्तुति
प्रेरणादायक भाषण

संस्कृति, अध्यात्म और ज्ञान का यह संगम आपके लिए है! अपने परिवार के साथ इसे अनुभव करें!

📍 स्थान: CIDCO Exhibition & Convention Centre, वाशी, मुंबई
📅 तारीख: 29-30 मार्च 2025
🔗 पंजीकरण लिंक: https://aryasamajmumbai150years.com/registration/
📞 हेल्पलाइन नंबर:
Call or WhatsApp: 8422891578 / 9152137937 / 8657017952
International: +91 7498773339

📧 ईमेल: [email protected]
🌐 वेबसाइट: https://aryasamajmumbai150years.com/
धन्यवाद 🙏
@ancientindia1
---------: देवी पुराण में श्रीकृष्ण :---------
हमारे सर्वश्रेष्ठ पवित्र गर्न्थो में से एक है ' देवी पुराण ', यह परम् पवित्र पुराण, अपने अंदर अखिल शास्त्रों के रहस्यो को समेटे हुए है और आगमो में अपना पवित्र स्थान रखता है। इस पुराण में, 18000 श्लोक है। इस पवित्र ग्रन्थ के रचियता महृषि वेदव्यास जी है।
1 . देवी पुराण में, यह उल्लेखित है कि, श्री कृष्ण भगवान विष्णु के नहीं बल्कि माँ काली के अवतार है। तथा यही नहीं , भगवान श्री कृष्ण की प्रेमिका, देवी लक्ष्मी नहीं है। बल्कि , भगवान शिव की अवतार बताई गई है।
देवी पुराण में यह वर्णित है कि, भगवान शिव ने इस धरती में फैलते पाप का विनाश करने के लिए, द्वापर युग के अंत में, माँ काली को आदेश दिया था कि, वे मायापुरुष के रूप में, देवकी के गर्भ से अवतरित हो व पापियो का नाश करे.
2 . देवी पुराण में यह भी वर्णित है कि, स्वयं महादेव शिव, वृषभानु की पुत्री रूप में जन्मे थे। तथा उनका नाम राधा था व भगवान श्रीकृष्ण की आठ प्रमुख पटरानियाँ भी, महादेव शिव की ही अंश थी।
देवी पार्वती की जया - विजया नामक दो सखिया श्री दाम एवं वासुदाम नामक गोप के रूप में अवतरित हुए थे।
3 . देवी पुराण के अनुसार, बलराम भगवान विष्णु के अवतार थे तथा जब पांडव अपने वनवास में भटक रहे थे , तो वे कामख्या पीठ पहुचे थे , वहां पांडवो ने देवी की तपस्या करी थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर, देवी प्रकट हुई तथा उन्होंने पांडवो को वरदान दिया था कि, वे श्री कृष्ण के रूप में, उनकी सहायता करेंगी तथा कौरवों का नाश करेंगी।
4 . जब महाभारत युद्ध समाप्त हुआ, तो माँ काली के रूप में अवतरित भगवान श्री कृष्ण ने , वापस अपने धाम में जाने की इच्छा जताई। इसके लिए स्वयं नन्दी महाराज, देवी माँ काली को वापस लेने के लिए रत्नजड़ित रथ, जिसे सिंह घसीट रह था, धरती में लेकर आये ।
5 . भगवान श्री कृष्ण रूपी देवी काली जब अपने धाम कैलाश पर्वत को वापस लौटने के लिए, रत्नजड़ित उस रथ पर बैठी, तो उनके साथ उनकी आठ पटरानियां भी भगवान शिव में मिलकर, कैलाश धाम को देवी काली के साथ वापस लौट चली।
@ancientindia1
*Sheetla Ashtami: A Unique Festival of India*

*Date: 22.3.25, Day: Saturday*

Sheetla Ashtami or Basuda Ashtami, is celebrated mainly in the Northern states of India. This auspicious day falls on the 8th day after Holi, marking an important transition in the seasonal calendar.
Beyond the religious and cultural significance, Sheetla Ashtami also carries deep scientific wisdom and a clear understanding of the seasonal changes, making it an extraordinary occasion.

*What’s So Unique About #Sheetla Ashtami?*

On this day, devotees worship Goddess Sheetla, a deity who is believed to protect people from diseases, especially those related to the heat and transition of seasons. The word 'Sheetla' is derived from the Sanskrit word “Sheetal,” which translates to 'cool' or 'calm.' The prayers and rituals performed during this day are centered around invoking the goddess’s energy to bring calmness and relief from the scorching heat.

*The Scientific Significance of the Festival:*

Sheetla Ashtami occurs at a time when the weather is transitioning from the cooler months into the scorching summer. This period is often marked by a rise in various heat-borne diseases like chickenpox, measles, viral and bacterial infections, and other epidemics that are exacerbated by the increasing temperatures.
In ancient times, this was a period of heightened awareness around hygiene and public health. To combat the potential health risks linked to this seasonal shift, the festival was created to align with the divine energy of ‘Goddess Sheetla’—who represents coolness and calmness.

*Rituals and Practices on Sheetla Ashtami:*

One of the main ritual of this day involves eating food that has been cooked the previous day and left to cool overnight. The significance of this ritual lies in its practical wisdom.
By consuming food that has been prepared a day before, the festival encourages 2 very important practices:
1) *Cleanliness and hygiene* of cooking spaces & food storage spaces
2) *Storage of food at a lower temperature* to avoid any infestation by microorganisms

The key objectives behind these rituals were to inculcate preventive health measure during the change of seasons, a time when people were most vulnerable to heat-related diseases.

Indeed a Wise Design for Health and Hygiene!
The ancient observances around Sheetla Ashtami with community-driven effort to ensure that people were prepared to face the extremes of summer. The festival emphasized proactive care of food, hygiene, and health, ensuring that families were ready for the challenges posed by the heat without any technological interference!

Jai ho Sheetla Mata Ki!
@ancientindia1
☀️Although there are these three modes of material nature, if one is determined he can be blessed by the mode of goodness, and by transcending the mode of goodness he can be situated in pure goodness, which is called the vasudeva state, a state in which one can understand the science of God.

(BG 14.10)
@ancientindia1
नाड़ी शोधन प्राणायाम का सही तरीका और लाभ
🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸
नाड़ी शोधन प्राणायम से सूर्य स्वर और चंद्र स्वर में संतुलन बनता है।

आपने नाड़ी शोधन प्राणायाम के बारे में जरूर सुना होगा। आज हम आपको इस प्राणायाम को करने का सही तरीका और इससे होने वाले फायदों के बारे में बतायेंगे।

योग विज्ञान के मुताबिक, हमारे शरीर में 72 हजार से ज्‍यादा नाड़ियां हैं। हर एक का अलग अलग काम है। आधुनिक विज्ञान इन्‍हें नहीं खोज पाया मगर पुराने ग्रंथ इसकी गवाही देते हैं।

बहरहाल हम अभी दो नाडि़यों की बात करते हैं सूर्य नाड़ी और च्रंद नाड़ी। हमारी नाक के बायें छेद से जुड़ी है चंद्र नाड़ी और दायें से सूर्य नाड़ी। हम नाक के दोनों छेदों – नसिकाओं से सांस नहीं लेते। जब हम बाईं नसिका से सांस ले रहे होते हैं तो योग की भाषा में हम कहते हैं कि हमारा चंद्र स्‍वर चल रहा है। जब हम दाईं नसिका से सांस ले रहे होते हैं तो हम कहते हैं कि हमारा सूर्य स्‍वर चल रहा है।

चंद्र स्‍वर से हमारे शरीर में ठंडक पहुंचती है और मन शांत होता है वहीं सूर्य स्‍वर गर्मी देने वाला होता है और इससे हमारा तेज बढ़ता है। नाड़ी शोधन का मकसद इन दोनों में संतुलन करना होता है। इससे हमारे सिंपेथेटिक और पैरा सिंपेथेटिक नर्वस सिस्‍टम पर असर पड़ता है।

नाड़ी शोधन करने का सही तरीका
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अपनी कमर को सीधा रखते हुए पदमासन, अर्ध पदमासन या सुखासन में खड़ी कमर से जिसमें भी आप सुविधा के हिसाब से बैठ पायें उसमें बैठ जायें।फिर दाहिने हाथ के अंगूठे से दाईं नसिका को बंद करें, मध्‍यमा यानी मिडिल फिंगर से बाईं नसिका को बंद करें। चाहें तो तर्जनी उंगली यानी फोर फिंगर को अपनी आई ब्रो, भौं के बीच में रख लें। वैसे फोर फिंगर को बीच में रखना जरूरी नहीं।आपका दायां हाथ जितना हो सके उतना बॉडी से सटा रहे। उसे उठायें नहीं क्‍योंकि अगर आपने उसे उठा लिया तो थोड़ी ही देर में आपका हाथ दुखने लगेगा।योग में सांस लेने को पूरक, सांस छोड़ने को रेचक और सांस रोकने को कुंभक कहते हैं। जब सांस लेकर रोकी जाये तो उसे आतंरिक कुंभक और जब सांस छोड़कर रोकी जाये तो उसे बाहरी कुंभक कहते हैं।आंखें कोमलता से बंद कर लें। गर्मी के मौसम में चंद्र स्‍वर या यानी बाईं नसिका से सांस भरते हुए इसे शुरू करें और सर्दी के मौसम में सूर्य स्‍वर यानी दाईं नसिका से सांस लेते हुए शुरू करें।मान लें अभी गर्मी चल रही है तो अपने अंगूठे से दाईं नसिका को दबा लें और बाईं नसिका से सांस भरें दाईं नसिका से छोड़ें फिर दाईं नसिका से सांस लें और बाईं से छोड़ें। यही क्रम चलता रहेगा। सांस लंबा और गहरा लें, जबरदस्‍ती न करें। कोशिश करें कि आपकी सांस लेने की आवाज न आये।अगर कर सकते हैं तो पूरक और रेचक का अनुपात 1: 2 रखें यानी अगर सांस लेने में 5 सेकेंड का वक्‍त लगता है तो सांस छोड़ने में 10 सेकेंड का वक्‍त लगे।अब अगर कर सकते हैं तो धीरे धीरे कुंभक करें यानी सांस भरने के बाद जितना आसानी से रुका जा सके रुकें और सांस छोड़ने के बाद जितना आसानी से रुक सकते हैं रुकें। ध्‍यान रखें जबरदस्‍ती नहीं करनी है। वरना प्राणायाम का अर्थ ही खत्‍म हो जायेगा। सबकुछ सहज भाव से चलने दें।इसके आगे जा सकते हैं तो फिर कुंभक में भी पूरक से दोगुना समय लगायें यानी सांस लेने में अगर 5 सेंकेंड लगे तो कुंभक (आंतरिक) में 10 सेकेंड, फिर रेचक (सांस छोड़ना) में 10 सेकेंड फिर कुंभक (बाहरी) में 10 सेकेंड। आपको एक एक करके आगे बढ़ना है।पहले केवल सांस लें और छोड़ें। फिर सांस लेने और छोड़ने में 1 और 2 का रेशो रखें। फिर 1, 2 और 2 के रेशो में सांस लें, सांस रोकें और सांस छोड़ें। इसके बाद 1, 2, 2 और 2 के रेशो में सांस लें, सांस रोकें, सांस छोड़ें, फिर सांस रोकें।
बाईं नसिका से सांस लेना, दाईं से छोड़ना और फिर दाईं नसिका से सांस लेना और बाईं से छोड़ने को एक आवृति माना जाता है। आप नौ बार यानी नौ आवृति करें।इस प्राणायाम को आप दिन में तीन बार सुबह, दोपहर और शाम को कर सकते हैं। वैसे सुबह का वक्‍त सबसे अच्‍छा होता है।

नाड़ी शोधन के लाभ
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इससे दोनों नाड़ियों में बैलेंस बनता है। बॉडी का तापमान सही बना रहता है।नर्वस सिस्‍टम ताकतवर बनता है।मन का झुकाव अच्‍छे व्‍यवहार और सादगी की ओर बढ़ता है।इसमें कुंभक करने से ऑक्‍सीजन फेफड़ों के आखिरी हिस्‍सों तक पहुंचती है। इससे खून में मौजूद गंदगी बाहर निकलती है।फेफड़ों की ताकत बढ़ती है और उनके काम करने की ताकत बढ़ती है।

डॉ0 विजय शंकर मिश्र:!
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@ancientindia1
*Increase in sorrows a blessing?!*

While 99.99% of the world considers happiness, prosperity, success to be standard or definition of happiness, a devotee considers these material achievements to be poison. He knows that if there is material prosperity, happiness, etc. it is Maya's trap to keep one grounded on the material plane. Whereas, sorrows show us the real face of the material world, which is dukkhalayam. Sorrows keep us humble & bring us closer to Krishna because only in difficult times do people turn to God. So, increase in sorrows are actually, a blessing in devotee's eyes as he considers this as a good omen that Krishna wants His devotee to come closer to Him. Therefore, a devotee never asks for anything from Krishna, but asks Krishna, what he can do to serve Him best. Let us develop this attitude & then the doors to Vaikuntha will open up for all of us where there wil be no more sorrows but eternal, genuine bliss. Hare Krishna.🙏🙏
@ancientindia1
Jai Shree Krishna 🙏❤️💐
@ancientindia1
🌹❤️Sweet Story🌹🙏

In a village, there lived an old woman named Krishna Bai. She was a great devotee of Lord Krishna. She lived in a hut. Krishna Bai's real name was Sukhiya, but due to her devotion to Krishna, the villagers named her Krishna Bai.

Her work was to sweep, mop, wash utensils, and cook food in every house. Krishna Bai used to make a garland of flowers every day and offer it to Shri Krishna Ji twice a day, and she would talk to Kanha for hours. The people of the village thought that the old woman was crazy. One night, Shri Krishna Ji told his devotee Krishna Bai that a very big earthquake was going to come tomorrow and she should leave the village and go to another village. Following the master's order, Krishna Bai started collecting her things and told the villagers that Krishna had come in her dream and said there would be a great disaster, so she should go to the nearby village. Now, people were not going to listen to that crazy old woman; whoever heard her would laugh loudly. Meanwhile, Bai called for a bullock cart, took the idol of her Krishna, tied the bundle of things, and sat in the cart. People kept laughing at her foolishness.

Bai started going and was just about to cross the border of her village and enter the next village when she heard Krishna's voice - "Hey, crazy girl, go and bring that needle from your hut with which you make garlands and offer them to me." Hearing this, Bai became restless and worried that she had made a huge mistake. How could she make a garland for Krishna without the needle? She stopped the cart driver there and ran towards her hut in a panic. The villagers saw her madness and made fun of her. Bai took out the needle stuck in the straws in the hut and then ran towards the cart like a mad person. The cart driver said, "Mother, why are you worried? Nothing will happen." Bai said, "Okay, now cross the border of the village." The cart driver did exactly that. What is this? As soon as the border was crossed, the whole village got submerged in the earth. Everything was submerged. The cart driver was also an ardent devotee of Krishna. God did not delay in protecting him by any means.

We learn from this story that when God is so concerned about a needle of his devotee, imagine how concerned he would be for the protection of his devotee. As long as that devotee's needle was in the village, the whole village was saved.

That's why it is said that:

The clouds are full of sins and embers are raining,

If there were no saints in the world, the world would have burned.

🙏🏻🌹🙏🏻🍀🙏🏻Jai Shri Krishna🙏🏻🍀🙏🏻🌹🙏🏻
@ancientindia1
2025/04/07 07:25:08
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