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धर्म के मार्ग पर चल के जो अर्थ मिलता है उसका उपयोग और विनियोग अनर्थ में नहीँ होता।।
वक्ता : अनंतश्री जगतगुरु शंकराचार्य स्वामीश्री निश्चलानंद सरस्वती जी महाभाग।
जय गुरुदेव।।
हर हर महादेव। 💐💐
श्रीमज्जगद्गुरु-शङ्कराचार्य स्वामी निश्चलानन्दसरस्वती @govardhanmath महाराजके सान्निध्यमें १४ जुन से १८ जुन २०२० पर्यन्त सायं ६.३० से रात्रि ८.०० बजे तक विडिओ कान्फरेन्सके माध्यमसे वैज्ञानिक-संगोष्ठी समायोजित है।
जय जगन्नाथ 🚩
#पुरी_पीठाधीश्वर_जगतगुरु_शंकराचार्य_जी_का_७७वां_प्राकट्य_महोत्सव_राष्ट्रोत्कर्ष_दिवस_19_जून_2020_को

सनातन धर्म ध्वजा के परम संवाहक विश्व के महान विभूति अनंत श्री विभूषित गोवर्धन मठ पुरी पीठ के वे श्रीमद जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज के ७७वे प्राकट्य महोत्सव 19 जून को राष्ट्रोत्कर्ष दिवस के रूप में मंगलमय वातावरण में देशभर के विभिन्न प्रांतों में उत्सव पूर्वक मनाया जायेगा। कोरोनावायरस संकट की परिस्थिति में विशाल धर्मसभा सम्मेलन आदि कार्यक्रम संभव नहीं होने पर गोवर्धन पीठ पुरी में आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक संगोष्ठी का भव्यतम कार्यक्रम 14 से 19 जून को पूज्य पाद श्री शंकराचार्य महा भाग के पावन सानिध्य में निर्धारित किया गया है। सौभाग्य का विषय है। ऐसे महान विभूति के प्राकट्य महोत्सव के अवसर पर सोशल मीडिया गोवर्धन पीठ पुरी से संचालित यूट्यूब फेसबुक से आप सायंकाल 6:30 स 8:00 बजे रात्रि तक जगतगुरु शंकराचार्य जी का दर्शन एवं अद्भुत अमृतवाणी में मार्गदर्शन युक्त पावन संदेश आशीर्वचन श्रवण कर लॉकडाउन की स्थिति में अपने घर में ही सपरिवार सत्संग लाभ प्राप्त कर जीवन को धन्य बनाए।
ऐसे दिव्य पावन कार्यक्रम के माध्यम से सनातन धर्म संस्कृति का महत्व तथा रस रहस्य को दर्शन अध्यात्म एवं विज्ञान के दृष्टिकोण से समझने का महत्वपूर्ण संदेश विश्व हित की भावना से प्रसारित होगा। अतः आप सब सपरिवार ऐसे कल्याणकारी प्रवचनो को अवश्य श्रवण कर राष्ट्रोत्कर्ष अभियान से जोड़ने का प्रयास करें। आषाढ़ कृष्ण त्रयोदशी 19 जून को है। सर्वहित कल्याण की भावना से श्री रुद्राभिषेक शिव पूजन आराधना, सुंदरकांड पाठ, हनुमान चालीसा पाठ आदि के साथ गुरुदेव भगवान के द्वारा प्रदत संदेश के अनुसार पाठ जप वृक्षारोपण आदि के साथ विभिन्न सेवा प्रकल्प के माध्यम से कई कार्यक्रम सादगी पूर्ण वातावरण में अपने अपने घरों में सोशल डिस्टेंशिंग के नियमो का पालन करते हुए मनाए तथा सब मिलकर दिव्य आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त कर कोरोना वायरस संकट निवारण हेतु प्रार्थना प्रस्तुत करें।
*#पुरिपीठाधीश्वर_शंकराचार्य_स्वामी_निश्चलानन्द_सरस्वती_महाराज_जी#* का *#संक्षिप्त_परिचय#*
विश्वका हृदयस्वरूप इस देवभूमि भारत में श्रीमन्नारायण से प्रस्फुटित गुरुपरम्परा के दशवें स्थान पर ईसा पूर्व ५०७ यानी २५०७ वर्ष पहले एक ऐसे महान् विभूतिका प्राकट्य हुआ था जिन्होंने पूरे विश्वको अपने तेज ज्ञान के प्रकाशसे प्रकाशित किया तथा मूर्तिभञ्जकों द्वारा निरन्तर प्रहार झेल रही सनातन परम्पराको पुनर्जागृत किया । वह महान् विभूति कोई और नहीं बल्कि शिवावतार साक्षात् शंकर आद्य शङ्कराचार्य के रूप विख्यात साक्षात् शिवस्वरूप आचार्य शङ्कर थे । शिवावतार पूज्यपाद आद्य शङ्कराचार्य महाभाग ने अपने तेज ज्ञान-विज्ञान के प्रभावसे बौद्धगुरुओं तथा वैदिक कर्मकांड, विकृत तन्त्र शास्त्र और कापालिकों आदि विद्वानोंसे शास्त्रार्थ कर सनातन वैदिक आर्य धर्मकी दार्शनिक, वैज्ञानिक एवं व्यावहारिक धरातलपर सर्वोत्कृष्टता सिद्ध कर सनातन धर्म का विजय ध्वज फहराया । इसी सनातन धर्म व संस्कृति की रक्षा में चार वेदो के आधार पर सर्वोच्च आचार्य जगतगुरु पीठ स्थापित किया , उन्होंने पुरीमें ऋग्वेदसे सम्बद्ध पूर्वाम्नाय गोवर्द्धनमठ, दक्षिणमें यजुर्वेदसे सम्बद्ध दक्षिणाम्नाय शृङ्गेरी मठ, पश्चिममें सामवेदसे सम्बद्ध पश्चिमाम्नाय शारदामठ और उत्तरमें अथर्ववेदसे सम्बद्ध उत्तराम्नाय ज्योतिर्मठकी स्थापना की । उन्होंने चारों मठोंमें एक-एक शङ्कराचार्यको पदस्थापित किया ।

पूर्वाम्नाय गोबर्द्धनमठ पुरीके प्रथम शङ्कराचार्यके रूपमें आद्यशङ्कराचार्य महाभागने अपने प्रथम शिष्य पद्मपादाचार्य को अभिषिक्त किया । पुरी मठके वर्तमान श्रीमज्जगद्गुरु शङ्कराचार्य अनन्तश्री विभूषित स्वामी निश्चलानन्दसरस्वती महाभाग इस मठ की शङ्कराचार्य परम्परा के १४५ वें स्थान पर प्रतिष्ठित है । इस प्रकार वे श्रीमन्नारायण से प्रारम्भ गुरुपरम्परामें श्रीमन्नारायणके बाद १५५वें स्थान पर हैं ।

बिहारराज्यके मिथिलांचल स्थित तत्कालीन दरभङ्गा (वर्तमानमें मधुवनी) जिलान्तर्गत हरिपुर बक्सीटोल नामक ग्राममें आषाढ कृष्ण त्रयोदशी, बुधवार, रोहिणीनक्षत्र पाम सम्वत् २००० तदनुसार 30 जून 1943 ई.को श्रोत्रियकुलभूषण दरभङ्गा नरेशके राजपण्डित श्रीलालवंशी झा जी और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती गीता देवीको एक पुत्ररत्न प्राप्त हुआ जिनका नाम नीलाम्बर झा रखा गया । वही नीलाम्बर झा वर्तमान पुरीपीठाधीश्वर अनन्तश्रीविभूषित श्रीमज्जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी निश्चलानन्दसरस्वती महाभागके नामसे ख्यापित हैं ।

बालक नीलाम्बर में बाल्यकालसे ही अनेक विलक्षणताएँ दिखने लगीं । सोते हुए में विचित्र दृश्यका दर्शन होना, यह भाव उत्पन्न होना कि मैं मरनेव
ाला नहीं हूँ आदि आदि । मात्र ढाई वर्षकी आयुमें ही उन्हें भगवान् श्रीकृष्णके दर्शन प्राप्त हुए । वे पढ़ाईमें कुशाग्र बुद्धिके तो थे ही, साथ ही कबड्डी, कुश्ती, तैराकी तथा फुटबॉल आदि खेलोंमें भी वे अत्यन्त निपुण थे । १६ वर्षकी अवस्थामें आप संग्रहणी रोगसे ग्रसित हो गये । रोग निरन्तर बढ़ता गया । जीवनसे निराश होकर एक दिन वे अपने पिताके समाधिस्थल पर गये और विधिवत् दण्डवत किया । तत्पश्चात् वहाँ की मिट्टीका एक कण मुँहमें डाला और पिताजीसे प्रार्थना की कि या तो यह शरीर इसी समय स्वस्थ हो जाये या शव हो जाये । अचानक एक चमत्कार हुआ। किसी अदृश्य दिव्यशक्तिने आपको वेगपूर्वक उठा दिया । तत्काल आपका ध्यान नभोमंडलकी ओर गया जहाँ बड़ा ही विचित्र दृश्य दिखलायी पड़ा । नभोमण्डलमें पृथ्वीसे लगभग 10 किलोमिटरकी ऊँचाई पर वृत्ताकार पद्मासन पर बैठे, श्वेतवस्त्र और पगड़ी धारण किये दस हजार पितरोंने आपको दर्शन दिया और आपको उन सबोंकी अन्तर्निहित वाणी सुनाई दी कि संग्रहणी रोग दूर हो गया, अब घर लौट जाओ और निर्भय विचरण करो ।

आपकी प्रारम्भिक शिक्षा गांवमें हुई । उच्चविद्यालयकी शिक्षा अपने अग्रज श्री श्रीदेव झा के संरक्षणमें दिल्लीके तिबिया कॉलेजमें प्रारम्भ की । वहाँ आप कई सामाजिक, धार्मिक एवं शैक्षणिक संस्थाओंसे भी जुड़े । यह घटना उस समयकी जब आप दसवीं कक्षा विज्ञानके छात्र थे । जिस भवनमें आपका निवास था उसके पासमें ही दशहरेके अवसरपर रामलीलाका मंचन आयोजित था । एक रात्रि आप भवनकी छत पर टहलते हुए रामलीलाके मंचनका संवाद सुन रहे थे । प्रभु श्रीरामके वनवास जानेकी लीलाका प्रसङ्ग सूनते ही आपके मनमें यह प्रबल भाव उत्पन्न हुआ कि जब मेरे प्रभु भगवान् श्रीरामका वनवास हो गया तब मेरे यहाँ बने रहनेका कोई औचित्य नहीं है । मनमें प्रबल वैराग्य उत्पन्न हुआ और आप चुपचाप पैदल ही काशीके लिये प्रस्थान कर दिये ।

यात्राके ाढमसे आप नैमिषारण्य पहुँचे जहाँ परमपूज्य दंडीस्वामी श्रीनारदानन्द सरस्वतीजी महाराजके सम्पर्कमें आनेका संयोग सधा । पूज्य स्वामीजीने आपका नाम ध्रुवचैतन्य रखा । कालान्तरमें आप सर्वभूतहृदय धर्मसम्राट स्वामी करपात्रीजी महाभागके सम्पर्क आये । उनके द्वारा चलाये गये गोरक्षा अभियानमें भी आपने सािढय भूमिका निभायी । उस अभियानके अन्तर्गत 7 नवम्बर 1966 को दिल्लीमें आयोजित विशाल सम्मेलनमें भी आप शामिल हुए जिसमें पुलिसद्वारा छोड़े गये अश्रुगैसके कारण आप मूर्छित भी हो गये थे । 9 नवम्बर को आपको बन्दी वना कर 52 दिनों तक दिल्लीके तिहाड़ जेलमें रखा गया । वैशाख कृष्ण एकादशी, गुरुवार, पामसंवत् 2031 तदनुसार 18 अप्रेल 1974को हरिद्वारमें पूज्यपाद धर्मसम्राट स्वामी हरिहरानन्द सरस्वती जी महाराज (धर्मसम्राट् करपात्रीजी महाराज)के चिन्मय करकमलोंसे आपका सन्न्यास सम्पन्न हुआ । सन्यासके बाद उन्होंने आपका नाम निश्चलानन्द सरस्वती रखा और अब आप इसी नामसे पूरे विश्वमें जाने जाते हैं ।

पुरी मठके तत्कालीन पूर्वाचार्य पूज्यपाद श्रीमज्जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी निरञ्जनदेव तीर्थजी महाराजने माघ शुक्ल षष्ठी तदनुसार 9 फरवरी 1992को अपने करकमलोंसे आपको पुरीपीठके 1१४५वें श्री मज्जगद्गुरु शङ्कराचार्यके पदपर अभिषिक्त किया । इस महिमामय पद पर प्रतिष्ठित होनेके बाद आपने पदका उपभोक्ता न बनकर पदके उत्तरदायित्वका सम्यक् निर्वहन करनेका निर्णय लिया । सनातन धर्म तथा उसके प्रामाणिक मानबिन्दुओंकी रक्षा, राष्ट्रकी अखण्डता तथा विश्वकल्याणके लिये संघर्ष करनेका व्रत लिया ।

धर्मसम्राट श्रीकरपात्री महाराजके कृपापात्र शिष्य एवं पुरीमठके पूर्वाचार्य स्वामी श्रीनिरञ्जनदेवतीर्थजी महाराज द्वारा श्रीमज्जगद्गुरु शङ्कराचार्य पदपर अभिषिक्त स्वामी श्रीनिश्चलानन्दसरस्वतीजी महाराजने विश्वकल्याण एवं राष्ट्रप्रेमकी भावनासे भावित होकर व्यासपीठ एवं शासनतत्रका शोधन करने तथा कालान्तरसे विकृत एवं विलुप्त हो चुके ज्ञान-विज्ञानको परिमार्जित करने एवं पूर्ण शुद्धताके साथ पुन उद्भासित करनेका अपना लक्ष्य बनाया ।

अपने लक्ष्यकी सिद्धिके लिये महाराज श्रीने ‘पीठपरिषद'के अन्तर्गत ‘आदित्यवाहिनी', ‘आनन्दवाहिनी', ‘हिन्दुराष्ट्रसंघ', ‘राष्ट्रोत्कर्ष अभियान', ‘सनातन सन्तसमिति' जैसे संस्थाओंकी भी स्थापना की जिसका उद्देश्य है अन्योंके हितका ध्यान रखते हुए हिन्दुओंके अस्तित्व और आदर्शकी रक्षा, तथा देशकी सुरक्षा और अखण्डता । आपने समस्त प्रामाणिक एवं प्रमुख सनातन धर्माचार्योंको एक मंच पर लोनका भी अभियान चलाया । शिवावतार भगवत्पाद आदिशङ्कराचार्य महाभागके धर्मनियत्रित, पक्षपातविहीन, शोषणविनिर्मुक्त, सर्वहितप्रद सनातन शासनतत्रकी स्थापनाके लक्ष्यको साकार करनेके लिये पूज्यपाद द्वारा निरन्तर किये जा रहे प्रयासोंके अनेक उदाहरण भरे पड़े हैं । उनके जीवनका अनुशीलन करने पर स्वत स्पष्ट हो जाता
2024/09/24 06:34:55
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