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जगतगुरु शंकराचार्य श्री निश्चलानंद सरस्वती महाभाग के अमृत वचन » Telegram Web
श्रीरामभद्र के मन्दिर-निर्माण के प्रकल्प का पूर्ण स्वागत है; तथापि धार्मिक और आध्यात्मिक प्रकल्प का सेकुलरकरण सर्वथा अदूरदर्शितापूर्ण अवश्य है ।
- Puri Shankaracharya Swami Nischalanand Saraswati Maharaj
- Puri Shankaracharya Swami Nischalanand Saraswati Maharaj
(एक राजनेता के द्वारा जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज के श्री चरणों मे गंगा अस्थि विसर्जन प्रवाह को बन्द कराने को लेकर निवेदन और शंकराचार्य जी महाराज की प्रतिक्रिया)
.
प्रश्न- महाराज जी मैं साधु- संतो से आग्रह करता हूँ कि वे ऐसी प्रेरणा दें कि अस्थियों को गंगा में न प्रवाहित करें ताकि गंगा मैली न हों।
उत्तर- मैं जिन्होंने ऐसा वक्तव्य दिया है, उनसे अनुरोध करता हूँ कि वे गंगा जी की अभिव्यक्ति के प्रयोजन का ज्ञान प्राप्त करें।
केन्द्रीय और प्रांतीय शासनतंत्रो के द्वारा गोमुख , गंगोत्री से लेकर गंगा सागर तक जो विभिन्न दिशाहीन परियोजनाएं विकास के नाम पर क्रियान्वित की गई हैं, उनके कारण गंगा में जो विकृति आयी है, गंगा विलुप्त होने के कगार पर है
उसको समझने का प्रयास करके सबसे पहले टिहरी बांध की परियोजना जिस पर लाभ के स्थान पर हानि ही हानि है, और भविष्य में वह बांध तोड़ दिया गया या अकस्मात टूट गया तो विप्लव ही विप्लव है, उसको निरस्त करें।
केमिकल को लेकर विचार करें तो अस्थिविसर्जन को लेकर गंगा में प्रदूषण की प्राप्ति नहीं होती, लेकिन अस्थिविसर्जन को लेकर शास्त्रीय विधा है।
शास्त्रीय विधा कोई भी हो, वह अंधपरम्परा से रहित व दार्शनिक, वैज्ञानिक तथा व्यवहारिक धरातल पर उसकी उपयोगिता ही सिद्ध होती है।
मन्त्री महोदय को, राजनेता महोदय को , सांसद महोदय को यह विचार करना चाहिए कि शासनतंत्र के द्वारा गंगा जी पर जो कुछ भी विकास के नाम पर अत्याचार हुआ है, उसको शासनतंत्र दूर करने का प्रयास करे।
अंग्रेजों ने चेतावनियां दी थी, उन चेतावनियों की धज्जी उड़ाकर उत्तराखण्ड की सरकार चाहे भाजपा रही हो या कांग्रेस ने बांध परियोजना, नहर परियोजना, सुरंग परियोजना, विद्युत परियोजना को क्रियान्वित किया।
गंगा जी का शिरोभाग आज कल उत्तराखंड में सन्निहित है।गंगा जी अविरलता, निर्मलता वहीं ही कुंठित और विलुप्त है।
ऐसी स्थिति में सचमुच में कोई राजनीतिक दल या विशेषकर भाजपा गंगा के प्रति आस्थान्वित है
तो हम लोगों से सम्पर्क साध कर गंगा के मौलिक स्वरूप को यथासम्भव उद्भाषित करें।
धार्मिक कृत्यों पर जो कि शास्त्रसम्मत है कटाक्ष करने की अपेक्षा सबसे पहले शासनतंत्र के द्वारा गंगा जी पर जो अत्याचार हुआ है उसको निरस्त करने का प्रयास करें।
गंगा के प्रति अत्याचार का अर्थ होता है- मानवता के प्रति, प्राणिमात्र के प्रति व अपने प्रति अत्याचार।
ये समझना चाहिए कि सगर के पुत्रों के अस्थिउद्धार की भावना से ही गंगा जी का अवतरण हुआ था। गंगा जी के अवतरण का मुख्य प्रयोजन और राज पांडु आदि की अस्थियों का विसर्जन भी गंगा में हुआ था।
महाभारत पढ़िए।
दिव्य नदियों में , प्राची - सरस्वती आदि नदियों में अस्थि विसर्जन की सनातन परम्परा है।
मैं एक संकेत करना चाहता हूं, राजा पाण्डु के शरीर को देशज वस्त्र, स्वदेशी शब्द का प्रयोग है। देशज वस्त्र के द्वारा आच्छादित किया गया व गंगा में उसे विसर्जन किया गया।
आज भी विश्वविद्यालय में दर्शन विभाग के नाम पर कुछ विश्वविद्यालय की स्थापना हुई हो, उस विभाग में कम विद्यार्थी भी हों, उस विभाग को तोड़ा नहीं जाता।
तो गंगा के अभिव्यक्ति के प्रयोजन को पहले समझने का प्रयास करना चाहिए।
और वैज्ञानिक ढंग से शास्त्रसम्मत जो विधा है, उसको लेकर गंगा में कोई विकृति नहीं प्राप्त होती है।
और मैने भाजपा के अध्यक्ष शाह जी को, जब वो पहली बार मिलने पूरी में आये थे,
लगभग 75 मिनटों तक मेरे पास बैठे रहे। मैंने संकेत में कहा था -
' किसी के शरीर मे कैंसर हो, और तेल चुपड़ दें चमड़ी पर।
उससे कैंसर रोग दूर हो जाय सम्भव नहीं ।'
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प्रश्न- महाराज जी मैं साधु- संतो से आग्रह करता हूँ कि वे ऐसी प्रेरणा दें कि अस्थियों को गंगा में न प्रवाहित करें ताकि गंगा मैली न हों।
उत्तर- मैं जिन्होंने ऐसा वक्तव्य दिया है, उनसे अनुरोध करता हूँ कि वे गंगा जी की अभिव्यक्ति के प्रयोजन का ज्ञान प्राप्त करें।
केन्द्रीय और प्रांतीय शासनतंत्रो के द्वारा गोमुख , गंगोत्री से लेकर गंगा सागर तक जो विभिन्न दिशाहीन परियोजनाएं विकास के नाम पर क्रियान्वित की गई हैं, उनके कारण गंगा में जो विकृति आयी है, गंगा विलुप्त होने के कगार पर है
उसको समझने का प्रयास करके सबसे पहले टिहरी बांध की परियोजना जिस पर लाभ के स्थान पर हानि ही हानि है, और भविष्य में वह बांध तोड़ दिया गया या अकस्मात टूट गया तो विप्लव ही विप्लव है, उसको निरस्त करें।
केमिकल को लेकर विचार करें तो अस्थिविसर्जन को लेकर गंगा में प्रदूषण की प्राप्ति नहीं होती, लेकिन अस्थिविसर्जन को लेकर शास्त्रीय विधा है।
शास्त्रीय विधा कोई भी हो, वह अंधपरम्परा से रहित व दार्शनिक, वैज्ञानिक तथा व्यवहारिक धरातल पर उसकी उपयोगिता ही सिद्ध होती है।
मन्त्री महोदय को, राजनेता महोदय को , सांसद महोदय को यह विचार करना चाहिए कि शासनतंत्र के द्वारा गंगा जी पर जो कुछ भी विकास के नाम पर अत्याचार हुआ है, उसको शासनतंत्र दूर करने का प्रयास करे।
अंग्रेजों ने चेतावनियां दी थी, उन चेतावनियों की धज्जी उड़ाकर उत्तराखण्ड की सरकार चाहे भाजपा रही हो या कांग्रेस ने बांध परियोजना, नहर परियोजना, सुरंग परियोजना, विद्युत परियोजना को क्रियान्वित किया।
गंगा जी का शिरोभाग आज कल उत्तराखंड में सन्निहित है।गंगा जी अविरलता, निर्मलता वहीं ही कुंठित और विलुप्त है।
ऐसी स्थिति में सचमुच में कोई राजनीतिक दल या विशेषकर भाजपा गंगा के प्रति आस्थान्वित है
तो हम लोगों से सम्पर्क साध कर गंगा के मौलिक स्वरूप को यथासम्भव उद्भाषित करें।
धार्मिक कृत्यों पर जो कि शास्त्रसम्मत है कटाक्ष करने की अपेक्षा सबसे पहले शासनतंत्र के द्वारा गंगा जी पर जो अत्याचार हुआ है उसको निरस्त करने का प्रयास करें।
गंगा के प्रति अत्याचार का अर्थ होता है- मानवता के प्रति, प्राणिमात्र के प्रति व अपने प्रति अत्याचार।
ये समझना चाहिए कि सगर के पुत्रों के अस्थिउद्धार की भावना से ही गंगा जी का अवतरण हुआ था। गंगा जी के अवतरण का मुख्य प्रयोजन और राज पांडु आदि की अस्थियों का विसर्जन भी गंगा में हुआ था।
महाभारत पढ़िए।
दिव्य नदियों में , प्राची - सरस्वती आदि नदियों में अस्थि विसर्जन की सनातन परम्परा है।
मैं एक संकेत करना चाहता हूं, राजा पाण्डु के शरीर को देशज वस्त्र, स्वदेशी शब्द का प्रयोग है। देशज वस्त्र के द्वारा आच्छादित किया गया व गंगा में उसे विसर्जन किया गया।
आज भी विश्वविद्यालय में दर्शन विभाग के नाम पर कुछ विश्वविद्यालय की स्थापना हुई हो, उस विभाग में कम विद्यार्थी भी हों, उस विभाग को तोड़ा नहीं जाता।
तो गंगा के अभिव्यक्ति के प्रयोजन को पहले समझने का प्रयास करना चाहिए।
और वैज्ञानिक ढंग से शास्त्रसम्मत जो विधा है, उसको लेकर गंगा में कोई विकृति नहीं प्राप्त होती है।
और मैने भाजपा के अध्यक्ष शाह जी को, जब वो पहली बार मिलने पूरी में आये थे,
लगभग 75 मिनटों तक मेरे पास बैठे रहे। मैंने संकेत में कहा था -
' किसी के शरीर मे कैंसर हो, और तेल चुपड़ दें चमड़ी पर।
उससे कैंसर रोग दूर हो जाय सम्भव नहीं ।'
जगतगुरु शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती महाभाग की दुर्लभ वीडियो।। 26/09/1986
*श्री वैदिक ब्राह्मण टेलीग्राम प्रकल्प*
धर्मसम्राट श्री करपात्री जी महाराज
चैनल : https://www.tg-me.com/kapatriji
शंकराचार्य श्री निश्चलानंद सरस्वती जी
चैनल : https://www.tg-me.com/purimath
हर हर शंकर जय जय शंकर 💐
हर हर महादेव। 💐
- क्षेत्रज्ञ
(श्री वैदिक ब्राह्मण ग्रुप,गुजरात)
*श्री वैदिक ब्राह्मण टेलीग्राम प्रकल्प*
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- क्षेत्रज्ञ
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प्रश्न : गरीबों को दूध देने के बजाय शिवलिंग पर क्यों डाला जाता है ?
वक्ता : अनंतश्री जगतगुरु शंकराचार्य स्वामीश्री निश्चलानंद सरस्वती जी महाभाग।
जय गुरुदेव।।💐💐🙏🏼🙏🏼
श्री वैदिक ब्राह्मण टेलीग्राम प्रकल्प
धर्मसम्राट श्री करपात्री जी महाराज
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शंकराचार्य श्री निश्चलानंद सरस्वती जी
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हर हर शंकर जय जय शंकर 💐
हर हर महादेव। 💐
- क्षेत्रज्ञ
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वक्ता : अनंतश्री जगतगुरु शंकराचार्य स्वामीश्री निश्चलानंद सरस्वती जी महाभाग।
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- क्षेत्रज्ञ
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प्रतिदिन हजारों गौवंश को काटा जा रहा है यह देशद्रोह की पराकाष्ठा है, आन्तर्जातीय विवाह के नाम पर कुलीन बीजो को नष्ट करने का षड्यंत्र किया जा रहा है।
- अनंतश्री जगतगुरु शंकराचार्य स्वामीश्री निश्चलानंद सरस्वती जी महाभाग।
जय गुरुदेव।।💐💐🙏🏼🙏🏼
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हर हर शंकर जय जय शंकर 💐
हर हर महादेव। 💐
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- अनंतश्री जगतगुरु शंकराचार्य स्वामीश्री निश्चलानंद सरस्वती जी महाभाग।
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*मर्यादापुरुषोत्तम भगवान् श्रीरामको 'आधुनिककरण' (सेकुलरकरण) का पक्षधर कहनेका अभिप्राय अवश्य ही विचारणीय पहेली है। धार्मिक और आध्यात्मिक प्रकल्प लौकिक, पारलौकिक उत्कर्ष और परमात्माकी प्राप्ति कराने में सर्वथा समर्थ है।*
*श्रीरामके नामपर व्यक्ति तथा समाजको उससे विमुख कर देहात्मभावभावित विनाशोन्मुख विकासको क्रियान्वित करनेका प्रकल्प कहाँ तक उचित है?*
*श्रीमज्जगद्गुरु - शङ्कराचार्य स्वामी निश्चलानन्दसरस्वती जी*
*श्रीरामके नामपर व्यक्ति तथा समाजको उससे विमुख कर देहात्मभावभावित विनाशोन्मुख विकासको क्रियान्वित करनेका प्रकल्प कहाँ तक उचित है?*
*श्रीमज्जगद्गुरु - शङ्कराचार्य स्वामी निश्चलानन्दसरस्वती जी*
#प्रकृतिप्रदत्त
प्राप्त विभीषिकाने स्वस्थ मस्तिष्कसे विकासकी वर्तमान परिभाषा और उसके क्रियान्वयनकी भौतिकी विधापर विचार करनेकी परिस्थिति समुत्पन्न कर दी है।
प्रकृति परमेश्वरकी शक्ति है। उसकी अभिव्यक्ति आकाश, वायु, तेज, जल तथा पृथिवी उसके परिकर हैं। इनमें विकृति विप्लव है। इन्हींका सङ्घात हमारा जीवन है। बाह्य विकृति हमारे जीवनकी विकृति में हेतु है। हमारे जीवनकी विकृति बाह्य जगत् की विकृतिमें हेतु है।
प्रज्ञाशक्ति तथा प्राणशक्तिके विघातक बहिर्मुख जीवनकी संरचना विकास नहीं, विनाश है। अतःप्रज्ञाशक्ति तथा प्राणशक्तिके पोषक प्रकल्पोंका क्रियान्वयन अपेक्षित है। तदर्थ महायन्त्रोंके प्रचुर आविष्कार और प्रयोगको प्रतिबन्धित, श्रमजीवी और बुद्धिजीवीकी विभाजक रेखाको विगलित करनेकी आवश्यकता है। तद्वत् परिश्रम और परस्पर सहयोगसे सुलभ सामग्रीके बलपर कुटीर और
लघु उद्योगका क्रियान्वयन अपेक्षित है। आध्यात्मिक मनीषियोंसे परामर्श लेकर नीति तथा अध्यात्मसमन्वित शिक्षापद्धतिके माध्यम से सुसंस्कृत, सुशिक्षित, सुरक्षित, सम्पन्न, सेवापरायण, स्वस्थ तथा सर्वहितप्रद व्यक्ति और समाजकी संरचनाका मार्ग प्रशस्त करना आवश्यक है।
जय गुरुदेव
प्राप्त विभीषिकाने स्वस्थ मस्तिष्कसे विकासकी वर्तमान परिभाषा और उसके क्रियान्वयनकी भौतिकी विधापर विचार करनेकी परिस्थिति समुत्पन्न कर दी है।
प्रकृति परमेश्वरकी शक्ति है। उसकी अभिव्यक्ति आकाश, वायु, तेज, जल तथा पृथिवी उसके परिकर हैं। इनमें विकृति विप्लव है। इन्हींका सङ्घात हमारा जीवन है। बाह्य विकृति हमारे जीवनकी विकृति में हेतु है। हमारे जीवनकी विकृति बाह्य जगत् की विकृतिमें हेतु है।
प्रज्ञाशक्ति तथा प्राणशक्तिके विघातक बहिर्मुख जीवनकी संरचना विकास नहीं, विनाश है। अतःप्रज्ञाशक्ति तथा प्राणशक्तिके पोषक प्रकल्पोंका क्रियान्वयन अपेक्षित है। तदर्थ महायन्त्रोंके प्रचुर आविष्कार और प्रयोगको प्रतिबन्धित, श्रमजीवी और बुद्धिजीवीकी विभाजक रेखाको विगलित करनेकी आवश्यकता है। तद्वत् परिश्रम और परस्पर सहयोगसे सुलभ सामग्रीके बलपर कुटीर और
लघु उद्योगका क्रियान्वयन अपेक्षित है। आध्यात्मिक मनीषियोंसे परामर्श लेकर नीति तथा अध्यात्मसमन्वित शिक्षापद्धतिके माध्यम से सुसंस्कृत, सुशिक्षित, सुरक्षित, सम्पन्न, सेवापरायण, स्वस्थ तथा सर्वहितप्रद व्यक्ति और समाजकी संरचनाका मार्ग प्रशस्त करना आवश्यक है।
जय गुरुदेव
आकाश का बीज ह है। अनुस्वार घटित ह को हं कहते हैं। वायु का बीज यं है। अनुस्वार घटित य को यं कहते हैं।
भगवान शिव के डमरू से निकले हुए जो 2 सूत्र हैं इनको याद करना चाहिए।
'हयवरट्', 'लण्'।
'हयवरट्' में 'ह', 'लण्' में 'ण' इत् संज्ञक हैं। बाकी जो अक्षर बचते हैं ह, य, व, र, ल- यह पंच भूतों के बीज मंत्र हैं। पांचो भूत हमारे लिए सुमंगल हों, शोधित हों; पुण्य दिव्य गंध, रस, रूप, स्पर्श और शब्द से युक्त हों। यद्यपि पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश के शोधन का प्रकल्प सनातन विधा से कालक्रम से यह राजनेता लोग अपना सकते हैं लेकिन हम व्यक्तिगत जीवन में सुख शांति के लिए नित्य ही 14 बार 'हयवरट् - लण्','हयवरट् - लण्' भगवान शिव के अनुग्रह से प्राप्त पांचों भूतों के विजाक्षर का जप करें, हमारे लिए पुरी पृथिवी, अंतरीक्ष भी सुमंगल हो।
आप महानुभावों ने भारत के माननीय प्रधानमंत्री के अनुरोध को हृदय से अपनत्व पूर्वक, आस्था पूर्वक अपनाया। मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री जो भी हों सामाजिक संगठन हों, राष्ट्र के हित में अगर उनके द्वारा कोई कार्य किया जाता है तो हम उदारता पूर्वक उसका सम्मान करते हैं, उसे अपनाते हैं। भगवत कृपा से सब सुमंगल हो। नारायण
भगवान शिव के डमरू से निकले हुए जो 2 सूत्र हैं इनको याद करना चाहिए।
'हयवरट्', 'लण्'।
'हयवरट्' में 'ह', 'लण्' में 'ण' इत् संज्ञक हैं। बाकी जो अक्षर बचते हैं ह, य, व, र, ल- यह पंच भूतों के बीज मंत्र हैं। पांचो भूत हमारे लिए सुमंगल हों, शोधित हों; पुण्य दिव्य गंध, रस, रूप, स्पर्श और शब्द से युक्त हों। यद्यपि पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश के शोधन का प्रकल्प सनातन विधा से कालक्रम से यह राजनेता लोग अपना सकते हैं लेकिन हम व्यक्तिगत जीवन में सुख शांति के लिए नित्य ही 14 बार 'हयवरट् - लण्','हयवरट् - लण्' भगवान शिव के अनुग्रह से प्राप्त पांचों भूतों के विजाक्षर का जप करें, हमारे लिए पुरी पृथिवी, अंतरीक्ष भी सुमंगल हो।
आप महानुभावों ने भारत के माननीय प्रधानमंत्री के अनुरोध को हृदय से अपनत्व पूर्वक, आस्था पूर्वक अपनाया। मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री जो भी हों सामाजिक संगठन हों, राष्ट्र के हित में अगर उनके द्वारा कोई कार्य किया जाता है तो हम उदारता पूर्वक उसका सम्मान करते हैं, उसे अपनाते हैं। भगवत कृपा से सब सुमंगल हो। नारायण
जगतगुरु शंकराचार्य श्री निश्चलानंद सरस्वती महाभाग के अमृत वचन
प्रश्न : गरीबों को दूध देने के बजाय शिवलिंग पर क्यों डाला जाता है ? वक्ता : अनंतश्री जगतगुरु शंकराचार्य स्वामीश्री निश्चलानंद सरस्वती जी महाभाग। जय गुरुदेव।।💐💐🙏🏼🙏🏼 श्री वैदिक ब्राह्मण टेलीग्राम प्रकल्प धर्मसम्राट श्री करपात्री जी महाराज चैनल : https://www.tg-me.com/kapatriji…
जय जगन्नाथ जी
भगवान गणेशजी की आरती करते हुए पुरी पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाराज जी ।
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भगवान गणेशजी की आरती करते हुए पुरी पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाराज जी ।
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क्या आप दूरदर्शी हैं?
माना कि विविध प्रान्तोंमें तथा केन्द्रमें आपका शासन है। पूरे देशमें अन्य
राजनैतिक दल भी चर्चित सन्दर्भमें आपके प्रशंसक हैं। यहाँ तक कि विश्वस्तरपर भी आप तदर्थ प्रशंसाके पात्र हैं। परन्तु विचारणीय विषय यह है कि काम-राग-समन्वित बलको प्रबल मानकर सनातन देवीदेवताओंकी समर्चा तथा प्रतिष्ठाकी सनातन विधाके विध्वंसमें आपकी प्रीति तथा प्रवृत्ति प्रशंसकोंके सहित आपके लिए तथा देश और विदेशके लिए क्या सुमङ्गल सिद्ध होगी? ध्यान रखिये , जिस सनातन सिद्धान्तके
अनुसार जगत् की उत्पत्ति, स्थिति, संहृति सम्भव है ; उससे खिलवाड़ सर्वथा अमङ्गल ही है। बन सके तो आप मुझ हितैषी और हितज्ञकी बात पर
अवश्य ध्यान दें।
श्रीमज्जगद्गुरु-शङ्कराचार्य स्वामी निश्चलानन्दसरस्वती
माना कि विविध प्रान्तोंमें तथा केन्द्रमें आपका शासन है। पूरे देशमें अन्य
राजनैतिक दल भी चर्चित सन्दर्भमें आपके प्रशंसक हैं। यहाँ तक कि विश्वस्तरपर भी आप तदर्थ प्रशंसाके पात्र हैं। परन्तु विचारणीय विषय यह है कि काम-राग-समन्वित बलको प्रबल मानकर सनातन देवीदेवताओंकी समर्चा तथा प्रतिष्ठाकी सनातन विधाके विध्वंसमें आपकी प्रीति तथा प्रवृत्ति प्रशंसकोंके सहित आपके लिए तथा देश और विदेशके लिए क्या सुमङ्गल सिद्ध होगी? ध्यान रखिये , जिस सनातन सिद्धान्तके
अनुसार जगत् की उत्पत्ति, स्थिति, संहृति सम्भव है ; उससे खिलवाड़ सर्वथा अमङ्गल ही है। बन सके तो आप मुझ हितैषी और हितज्ञकी बात पर
अवश्य ध्यान दें।
श्रीमज्जगद्गुरु-शङ्कराचार्य स्वामी निश्चलानन्दसरस्वती