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देवताओं में #वर्णाश्रम का निरूपण किस आधार से होता है ?

"ब्रह्माजी" से लेकर "पत्थर" तक की #जाती(#वर्ण)का #शंकराचार्यजी के द्वारा निरुपण

कश्यपजी और अदिति के गर्भ से देवराज इंद्र प्रकट हुए – वह ब्राह्मण थे या नहीं लेकिन वहां देवराज की जाति क्षत्रिय है , कहाँ ? वृहदारण्यक उपनिषद् – कर्म चूँकि क्षत्रिय का करते थे , रक्षा का काम , राजा का काम , राजाधिराज – अब वे खुश हो गए – आपकी व्यवस्था कितनी ऊँची है कि वह मृत्युलोक में लागू नहीं है , अब वसु हो गए वैश्य , त्वष्टा आदि अमुक अमुक देवता शुद्र में ..
भगवान् विष्णु पर कौनसी वर्णव्यवस्था लागू है ?

कोई नहीं ब्रह्माजी पर लागू नहीं है और ब्रह्माजी पर लागू है तो प्रथम ब्राह्मण ब्रह्माजी है , विष्णु भगवान् पर वर्णव्यवस्था लागू नहीं है लेकिन उनको क्षत्रिय क्यों गिनते है , रक्षा का काम करते है इसलिए अपने पर क्षत्रिय का आरोप करते है और अपने पोते की लात को भी ब्राह्मण की लात..... भृगुलाता , माने पितामह हो गए क्षत्रिय और पोता हो गया ब्राह्मण , यह तो कल्पना ही नहीं कर सकते किसी भी ढंग से कि पितामह क्षत्रिय और पोता ब्राह्मण , यह कौनसी वर्णव्यवस्था है ?

भगवान् अपने में क्षत्रियत्व का आरोप करते है , नारायण तक तो वर्णव्यवस्था है ही नहीं , तो आर्यसमाजी प्रसन्न हो जाते है , हमने कहा – मृत्युलोक में वो अवर कोटि की वर्णव्यवस्था है , स्वामी दयानंद सरस्वती ने जो वर्णव्यवस्था बताया वह तो देवलोक में चरितार्थ है , वहां कर्म से ही जाति मानी जाति है , नहीं तो किस मुँह से हम कह सकेंगे कि देवराज इंद्र क्षत्रिय है , अग्नि को , चंद्रमा को कैसे ब्राह्मण कहेंगे !

सोम का अर्थ चंद्रमा भी है , सोम का अर्थ सोमलता भी है , चंद्रमा का नाम क्यों दे दिया सोमलता को , तिथि के हिसाब से पत्ते बनते है झड़ते है , शुक्ल पक्ष , कृष्णपक्ष , कायाकल्प में भी प्रयोग होता है !

जब कोई ब्राह्मण किसी राजकुमार को राजाधिराज के पद पर अभिसिक्त करते हैं तो एक मन्त्र बोलते है , “ सोमोस्माकं ब्राह्मणानां राजा “ ए राजकुमार सावधान – आपका अभिषेक हम राजाधिराज के रूप में कर रहें है , अभिषिक्त होने के बाद हम ब्राह्मणों पर शिकंजा मत कसना – हमारे राजा का हम परिचय देते है , सुन लो - “ सोमोस्माकं ब्राह्मणानां राजा “ अत्रीनंदन जो चंद्रमा है , हम ब्राह्मणों के राजा वें है , आप नहीं , क्षत्रियों द्वारा ब्राह्मणों पर शासन नहीं –
इसमें मनोविज्ञान क्या है ?

मन के देवता सोम , चंद्रमा द्वारा हमारा मन इतना संयत है कि स्वप्न में भी कुमार्ग पर जाता नहीं , यह अर्थ हुआ , तो देवताओ में चन्द्रमा , अग्नि को ब्राह्मण बताया , अब वहां जो वर्णव्यवस्था है वह कर्म के आधार पर है , हो गया न !

एक थे कांग्रेस के राजस्थान के जौहरी , उन्होंने रत्नपरीक्षा नामक पुस्तक लिखी और जगजीवनराम बाबू को भेंट करने गए , कांग्रेसी थे कहा बाबूजी पढ़कर कोई टिपण्णी कीजिएगा , जगजीवनरामजी ने पुस्तक पढ़ी , बाद में कहा – अरे मै तो मनुष्यों में जातिपाती हटाने के लिए अभियान चला रहा हूँ , तुमने तो रत्नों की जातिपाती सिद्ध कर दी , उन्होंने कहा – बाबूजी यहाँ मै कांग्रेसी नहीं हूँ , रत्नों में जातिपाती न मानू तो रत्न निहाल नहीं करते रत्न घातक हो जाते है , ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य , शुद्र कोटि के रत्न होते है , ब्राह्मण को यदि शुद्र कोटि का रत्न दे देंगे तो ब्राह्मण ख़त्म हो जाएगा !

एक हमारे गुरुभाई बीमार पड़ गए , कोई चिकित्सक रोग न पकड़ पाए , गुरुदेव के पास लाए गए , महाराज ने कहा – कहो वेदांती क्या बात है सूखे जा रहे हो , कहा – महाराज दो चार दिन का जीवन और है , महाराज ने कहा – क्या बात है ?

कहा – कोई चिकित्सक इलाज नहीं कर पा रहा , महाराज का ध्यान उसके बाजू पर गया , कहा – ये क्या बाँध रखा है बाजू पर

कहा – महाराज जो आप अपने बाजू पर बांधे है

महाराज – अच्छा अच्छा , नक़ल है , इसे खोल दो नहीं तो मर जाओगे

उन्होंने कहा – आप ?

महाराज – हम पचा सकते है इसके तेज को तुम नहीं पचा सकते , रत्न का चमत्कार , हमने परख लिया तुम्हारे रोग का कारण रत्न है !
तो जगजीवनरामजी से कह दिया – आपकी बात नहीं मानी जाएगी यहाँ , नहीं तो हम बर्बाद हो जाएंगे , हमारा व्यापार ही रत्न का है , रत्न की जाति और मनुष्य की जाति को परख के जिस मनुष्य को जिस जाति का रत्न देना है उसी से हमारा व्यापार चलता है , तो जगजीवनरामजी ने कहा , मनुष्य में भी जाति होती है ? तो कहा जब रत्नों में जाति होती है तो मनुष्य में जाति है ही !

महाभारत में ब्रह्माजी से वर्ण व्यवस्था लागू है , विराट से , हिरण्यगर्भ से , भगवान् नारायण पर लागू नहीं है , वे ऊपर है , अरे सीधी बात कह दें – कर्म के फल के रूप में जिसको शरीर प्राप्त है , वहां से वर्णव्यवस्था है , ब्रह्माजी का जो जन्म होता है – कर्म के फलस्वरूप – कर्मोपासना के समुचित अनुष्ठान क
े फलस्वरूप ब्रह्माजी को शरीर प्राप्त होता है , इसलिए – “ कार्योपाधि रयं जीवः , कारणोंपाधी ईश्वरः “ वह प्रथम प्राणी जिसको कर्म के फलस्वरूप शरीर मिला वह वर्णव्यवस्था का उद्गमस्थान है !

इसलिए ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य व् शुद्र सबके पूर्वज ब्रह्माजी है , ब्रह्माजी सर्वजीवघनात्मक है , और नारायण का शरीर आत्मार्था सृष्टि में विद्यापाद के अंतर्गत है , न कि अविद्या जिवार्था सृष्टि के अंतर्गत , इसलिए वे ऊपर है , त्रिपादविभूति नारायणोपनिषद के अनुसार बोला रहा हूँ !

!! हर हर महादेव !!
प्रश्न : मंदिरों को धार्मिक और आध्यात्मिक संविधान के अनुसार चलाना चाहिए।
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प्रश्न : हिंदुओ के धार्मिक स्थलों पर शासन तंत्र का हस्तक्षेप आप कितना उचित मानतें हैं ?
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प्रश्न : समुद्र यात्रा से पाप कैसे बढ़ता है?
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प्रश्न : भर्तृहरिजी के मत व नासदीय सूक्त के अनुसार सृष्टि के प्रारम्भ का रहस्य ?
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प्रश्न : स्वस्थ क्रांति किसे कहते है?
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शंकराचार्य जी की वर्तमान शासनतंत्र एवं पूर्व शासनतंत्रों को चेतावनी, राजनीतिक नेता सम्भल जाएं। जो नकली शंकराचार्यों को समर्थन कर रहे है ऐसे तमाम वामपंथी एवं कथित हिंदुत्ववादी नेता सम्भल जाएं।
हिन्दू प्रजा मूर्ख नहीं है, जब पोप,दलाई लामा आदि की कोई प्रतिकृति नहीं तो हिन्दू सनातन धर्म के सर्वोच्च पद की प्रतिकृति क्यों? पूछता है सनातन समाज सब राजनीतिक पार्टियों से की आप नकली शंकराचार्य क्यों बनाते है और नकली शंकराचार्यों का समर्थन क्यों करते है?
हर हर महादेव। 💐💐
2024/09/24 10:29:57
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