गुलाब की खुशबू भी फीकी लगती है,
कौन सी खूशबू मुझमें बसा गए हो तुम...!!
जिंदगी है क्या तेरी चाहत के सिवा,
ये कैसा ख्वाब आंखों में दिखा गए हो तुम...!!!💓
#RoseDay🌹
कौन सी खूशबू मुझमें बसा गए हो तुम...!!
जिंदगी है क्या तेरी चाहत के सिवा,
ये कैसा ख्वाब आंखों में दिखा गए हो तुम...!!!💓
#RoseDay🌹
This media is not supported in your browser
VIEW IN TELEGRAM
प्रियंका विश्नोई बहुत ईमानदार, परिश्रमी और लगनशील प्रशासनिक अधिकारी थी, बहुत कठिन परिश्रम के बाद में RAS अधिकारी बनी थी । तथा इतने बड़े पद पर रहते हुए भी राजस्थान की विशाल परंपरा और परिधान से स्वयं को सुशोभित करती थी समय से पूर्व ही वह हम सबको छोड़कर चली गई है बहुत ही दुखद और विषम परिस्थिति है । ऐसी वीरांगना तथा भारतीय नारी के चरणों में शत-शत नमन है ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें तथा उन्हें परमधाम प्रदान करें।🙏🙏
कैंडल मार्च आज निकल जाएगा।
स्थान: वर्धमान मॉल नेहरू विहार से दृष्टि ऑफिस मुखर्जीनगर(जहां शव मिला था वहां) तक
समय: 5-6pm के बीच पहुंच जाना है
आज सभी की जरूरत है मित्रों अपने सहपाठी भाई को न्याय दिलाने के लिए।
ज्यादा से ज्यादा संख्या में पहुंच कर अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें
ज्यादा से ज्यादा शेयर करें जिससे आवाज को और बुलंद किया जा सकेगा।
#justiceForDeepak
स्थान: वर्धमान मॉल नेहरू विहार से दृष्टि ऑफिस मुखर्जीनगर(जहां शव मिला था वहां) तक
समय: 5-6pm के बीच पहुंच जाना है
आज सभी की जरूरत है मित्रों अपने सहपाठी भाई को न्याय दिलाने के लिए।
ज्यादा से ज्यादा संख्या में पहुंच कर अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें
ज्यादा से ज्यादा शेयर करें जिससे आवाज को और बुलंद किया जा सकेगा।
#justiceForDeepak
Please open Telegram to view this post
VIEW IN TELEGRAM
आयोग के अतिरिक्त अभी केवल एक इंसान है जो बता सकता है कि paper कब होगा, वो है...
पढ़ लो नालायकों ... 27 December को हो गया तो पछताओगे, जो एक एक दिन ख़राब कर रहे हो 😛... देखने चले आए कौन बता सकता है 😀
"लोगों को आपकी तकलीफ़ों से कोई फर्क नहीं पड़ता, और ये सच है। दुनिया आपको तभी याद रखेगी, जब आप अपने सपनों को सच कर दिखाएँगे। रोना बंद कीजिए, शिकायतें छोड़िए, और काम में लग जाइए। मुश्किलें हर किसी के हिस्से में होती हैं, पर जीत उन्हीं की होती है, जो हार नहीं मानते।"
श्राद्ध खाने नहीं आऊंगा
"अरे! भाई बुढापे का कोई ईलाज नहीं होता . अस्सी पार चुके हैं . अब बस सेवा कीजिये ." डाक्टर पिता जी को देखते हुए बोला .
"डाक्टर साहब ! कोई तो तरीका होगा . साइंस ने बहुत तरक्की कर ली है ."
"शंकर बाबू ! मैं अपनी तरफ से दुआ ही कर सकता हूँ . बस आप इन्हें खुश रखिये . इस से बेहतर और कोई दवा नहीं है और इन्हें लिक्विड पिलाते रहिये जो इन्हें पसंद है ." डाक्टर अपना बैग सम्हालते हुए मुस्कुराया और बाहर निकल गया .
शंकर पिता को लेकर बहुत चिंतित था . उसे लगता ही नहीं था कि पिता के बिना भी कोई जीवन हो सकता है . माँ के जाने के बाद अब एकमात्र आशीर्वाद उन्ही का बचा था . उसे अपने बचपन और जवानी के सारे दिन याद आ रहे थे . कैसे पिता हर रोज कुछ न कुछ लेकर ही घर घुसते थे . बाहर हलकी-हलकी बारिश हो रही थी . ऐसा लगता था जैसे आसमान भी रो रहा हो . शंकर ने खुद को किसी तरह समेटा और पत्नी से बोला -
"सुशीला ! आज सबके लिए मूंग दाल के पकौड़े , हरी चटनी बनाओ . मैं बाहर से जलेबी लेकर आता हूँ ."
पत्नी ने दाल पहले ही भिगो रखी थी . वह भी अपने काम में लग गई . कुछ ही देर में रसोई से खुशबू आने लगी पकौड़ों की . शंकर भी जलेबियाँ ले आया था . वह जलेबी रसोई में रख पिता के पास बैठ गया . उनका हाथ अपने हाथ में लिया और उन्हें निहारते हुए बोला -
"बाबा ! आज आपकी पसंद की चीज लाया हूँ . थोड़ी जलेबी खायेंगे ."
पिता ने आँखे झपकाईं और हल्का सा मुस्कुरा दिए . वह अस्फुट आवाज में बोले -
"पकौड़े बन रहे हैं क्या ?"
"हाँ, बाबा ! आपकी पसंद की हर चीज अब मेरी भी पसंद है . अरे! सुषमा जरा पकौड़े और जलेबी तो लाओ ." शंकर ने आवाज लगाईं .
"लीजिये बाबू जी एक और . " उसने पकौड़ा हाथ में देते हुए कहा.
"बस ....अब पूरा हो गया . पेट भर गया . जरा सी जलेबी दे ." पिता बोले .
शंकर ने जलेबी का एक टुकड़ा हाथ में लेकर मुँह में डाल दिया . पिता उसे प्यार से देखते रहे .
"शंकर ! सदा खुश रहो बेटा. मेरा दाना पानी अब पूरा हुआ ." पिता बोले.
"बाबा ! आपको तो सेंचुरी लगानी है . आप मेरे तेंदुलकर हो ." आँखों में आंसू बहने लगे थे .
वह मुस्कुराए और बोले - "तेरी माँ पेवेलियन में इंतज़ार कर रही है . अगला मैच खेलना है . तेरा पोता बनकर आऊंगा , तब खूब खाऊंगा बेटा ."
पिता उसे देखते रहे . शंकर ने प्लेट उठाकर एक तरफ रख दी . मगर पिता उसे लगातार देखे जा रहे थे . आँख भी नहीं झपक रही थी . शंकर समझ गया कि यात्रा पूर्ण हुई .
तभी उसे ख्याल आया , पिता कहा करते थे -
"श्राद्ध खाने नहीं आऊंगा कौआ बनकर , जो खिलाना है अभी खिला दे ."
माँ बाप का सम्मान करें और उन्हें जीते जी खुश रखे।
"अरे! भाई बुढापे का कोई ईलाज नहीं होता . अस्सी पार चुके हैं . अब बस सेवा कीजिये ." डाक्टर पिता जी को देखते हुए बोला .
"डाक्टर साहब ! कोई तो तरीका होगा . साइंस ने बहुत तरक्की कर ली है ."
"शंकर बाबू ! मैं अपनी तरफ से दुआ ही कर सकता हूँ . बस आप इन्हें खुश रखिये . इस से बेहतर और कोई दवा नहीं है और इन्हें लिक्विड पिलाते रहिये जो इन्हें पसंद है ." डाक्टर अपना बैग सम्हालते हुए मुस्कुराया और बाहर निकल गया .
शंकर पिता को लेकर बहुत चिंतित था . उसे लगता ही नहीं था कि पिता के बिना भी कोई जीवन हो सकता है . माँ के जाने के बाद अब एकमात्र आशीर्वाद उन्ही का बचा था . उसे अपने बचपन और जवानी के सारे दिन याद आ रहे थे . कैसे पिता हर रोज कुछ न कुछ लेकर ही घर घुसते थे . बाहर हलकी-हलकी बारिश हो रही थी . ऐसा लगता था जैसे आसमान भी रो रहा हो . शंकर ने खुद को किसी तरह समेटा और पत्नी से बोला -
"सुशीला ! आज सबके लिए मूंग दाल के पकौड़े , हरी चटनी बनाओ . मैं बाहर से जलेबी लेकर आता हूँ ."
पत्नी ने दाल पहले ही भिगो रखी थी . वह भी अपने काम में लग गई . कुछ ही देर में रसोई से खुशबू आने लगी पकौड़ों की . शंकर भी जलेबियाँ ले आया था . वह जलेबी रसोई में रख पिता के पास बैठ गया . उनका हाथ अपने हाथ में लिया और उन्हें निहारते हुए बोला -
"बाबा ! आज आपकी पसंद की चीज लाया हूँ . थोड़ी जलेबी खायेंगे ."
पिता ने आँखे झपकाईं और हल्का सा मुस्कुरा दिए . वह अस्फुट आवाज में बोले -
"पकौड़े बन रहे हैं क्या ?"
"हाँ, बाबा ! आपकी पसंद की हर चीज अब मेरी भी पसंद है . अरे! सुषमा जरा पकौड़े और जलेबी तो लाओ ." शंकर ने आवाज लगाईं .
"लीजिये बाबू जी एक और . " उसने पकौड़ा हाथ में देते हुए कहा.
"बस ....अब पूरा हो गया . पेट भर गया . जरा सी जलेबी दे ." पिता बोले .
शंकर ने जलेबी का एक टुकड़ा हाथ में लेकर मुँह में डाल दिया . पिता उसे प्यार से देखते रहे .
"शंकर ! सदा खुश रहो बेटा. मेरा दाना पानी अब पूरा हुआ ." पिता बोले.
"बाबा ! आपको तो सेंचुरी लगानी है . आप मेरे तेंदुलकर हो ." आँखों में आंसू बहने लगे थे .
वह मुस्कुराए और बोले - "तेरी माँ पेवेलियन में इंतज़ार कर रही है . अगला मैच खेलना है . तेरा पोता बनकर आऊंगा , तब खूब खाऊंगा बेटा ."
पिता उसे देखते रहे . शंकर ने प्लेट उठाकर एक तरफ रख दी . मगर पिता उसे लगातार देखे जा रहे थे . आँख भी नहीं झपक रही थी . शंकर समझ गया कि यात्रा पूर्ण हुई .
तभी उसे ख्याल आया , पिता कहा करते थे -
"श्राद्ध खाने नहीं आऊंगा कौआ बनकर , जो खिलाना है अभी खिला दे ."
माँ बाप का सम्मान करें और उन्हें जीते जी खुश रखे।
*जहाँ इज्जत ना मिले वहाँ कभी जाना नही चाहिये -–चाणक्य*
*तो क्या बन्दा शाम को अपने घर भी न जाये..!!??*शादीशुदा आदमी।
😂😂😝🙊🙊😝😂😂
*तो क्या बन्दा शाम को अपने घर भी न जाये..!!??*
😂😂😝🙊🙊😝😂😂
“इस कदर वाकिफ है मेरी कलम मेरे जज़्बातों से, अगर मैं इश्क़ लिखना भी चाहूं तो इंक़लाब लिख जाता हूं।” - भगत सिंह
मां भारती के वीर सपूत , महान क्रांतिकारी , युवाओं के प्ररेणा स्रोत अमर बलिदानी भगतसिंह की जयंती पर सादर नमन प्रणाम....!
#bhagatsinghjayanti
मां भारती के वीर सपूत , महान क्रांतिकारी , युवाओं के प्ररेणा स्रोत अमर बलिदानी भगतसिंह की जयंती पर सादर नमन प्रणाम....!
#bhagatsinghjayanti
हवाई जहाज़ के टायर की तरह दोनों पैर धीरे - धीरे बाहर आने लगें तो...!!
/
:
\
तो समझ जाना एक्टिवा 🛵 वाली मैडम ब्रेक लगाने वाली हैं...!!!
😜 😜😂 😂 😝 🙊 🙊 😝 😂
/
:
\
तो समझ जाना एक्टिवा 🛵 वाली मैडम ब्रेक लगाने वाली हैं...!!!
😜 😜😂 😂 😝 🙊 🙊 😝 😂