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कहां सुनती है दुनियां किसी अलग विचारधारा को...
सबको चाहिए कि कोई दूसरा हो जो उनके जैसा मारा हो...

मौत की सज़ा ही आख़िर में तोहफे में मिली उन सबको...
धर्म-सियासत-जगह से फ़र्क नहीं बस आवाम नाकारा हो...!!
न चाहे कोई अगर किसी को इतना
की वफादारी न कर सके...
तो न करे ऐसा की भोले मन से
उससे बेवफ़ाई करे...

तमाम मुलाकात वादों की, यादों, जगह ठिकानों की...
न कर सके जीने का इंतजाम अगर,
तो न बनाए हालात की मौत की अगुवाई करे...!!
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ये शहर भी अब मुझसे बेवफ़ाई करता है...

साथ तो रहता है मगर साथ नहीं देता है...!!
जुल्फों से कह दो इतना ना इठलाएं...

तुम हमारी हो, गालों- होठों वगैरह से ज़रा दूरी बनाएं...!!
उसनें कभी दिल से पुकारा ही नहीं मैं क्या ही करता...

कुआं मेरे अकेले इश्क़ के भरनें से भला क्या भरता...!!
मैं क्या बताऊं कैसा रहा मेरा अब तक का सफ़र...
मैं जिंदा रहा, मुझमें बाक़ी कुछ जिंदा ना रहा मगर...

तमाम लोग मिले, तमाम किस्से हुए, तमाम नए छतों की छांव मिली...
तमाम बातें हुईं, मगर जो सब था सब गया, अब सब कुछ है खंडहर...!!
फिर से अब मेरा जी भर गया है जीनेँ से...
कोई आओ फिर लगाओ मुझे सीनें से...

दो दिलासा कि ज़रूरी हैं हंसते रहना...
बुरी लगती है अंगूठी टूटे नगीनें से...

मैं क़िस्मत में नहीं मानता था पहले...
मगर मानने लगा हूं अब चंद महीने से...

सुना था बुरा करनें पर बुरा होता है...
गलत लगी ये बात आज देखा जब खुद आईने में...!!
मशवरा समझदार लोग दें तो ज्यादा बेहतर है...

मगर मशवरा कोई ना दे तो और बेहतर है...!!
कुछ शिकयत है, होगी ही...
कुछ बगवात है, होगी ही...

कुछ कमी तो है, होगी ही...
कुछ नज़ाकत है, होगी हो...

वो न समझेंगे, होगा ही...
वो गिराएंगे, होगा ही...

तुम संभल चलना,
बाक़ी तो होगा ही...!!
कुछ ताल्लुक मेरे गमों से मेरा ऐसा है...
जो ना हो तो लगता है की दिन कैसा है...!!

जो गए वो गए अब मैं उन्हें भूल चुका हूं...
अब तो लगता है मरना जीने जैसा है...!!

तुम कब से थे जानें की चाहत में क्या पता...
हम तो खुश थे तुम नहीं ये भरम जैसा है...!!
कुछ खयाल तुम भी करते तो बेहतर होता...

हम अकेले क्या क्या कर लें...!!
क्या करें की सलामत रखें ख़ुद को...

वज़ह तो पता है हमें बरबादी की...!!
मैं चाहता हूं की वो चुन ले मुझको...

ये शर्त है पहले की उसे मैं पसंद आऊं...!!
मैनें देखा है उसको किसी और के साथ बहुत खुश...

खुदा, मैं उसके लिए खुश रहूं या ख़ुद के लिए रोऊं...!!
कुछ कहना तो था मगर वक्त ना मिला...
कुछ शिकायत थी मगर वक्त ना मिला...
कुछ इश्क़ था निभाया वक्त तक...
साथ की तलब थी मगर वक्त ना मिला...!!
सफ़र की बात थी तो साथ वालों की बात हो...

बोझा उठानें को घूमने जाना नहीं कहते...!!
झूठ, इतना झूठ की क्या कहें
   शुक्र है उसमें ईमान नहीं था...

सच शायद उस वक्त हम सुन नही पाते
  अफ़सोस उसनें समझाना भी नहीं चाहा...!!
ऐसा नहीं कि हमनें भूलनें की कोशिश नहीं की...

मगर हुआ ये कि हर बार उसकी याद आ गई...!!
कहते थे कयामत तक साथ निभाएंगे,
अरे छोड़ो यार...

कहते थे बिना देखे कैसे सो जाएंगे,
अरे छोड़ो यार...

कहते थे हाल बताया करो हर शाम अपना,
अरे छोड़ो यार...

कहते थे दिन अधूरा लगता है मेरे बग़ैर,
अरे छोड़ो यार...

कहते थे जी नहीं पाएंगे मेरे बग़ैर,
अरे छोड़ो यार...

कहते थे झूठ नहीं कहते कुछ भी
बहुत हो गया सचमुच अब छोड़ो यार...!!
2024/06/19 19:43:59
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