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यही एक तमाशा बाक़ी रह गया है आख़िरकार,

कि मेरी सांसे जिस्म में आनें से इनकार कर दें...!!
साथ की चाहत थी अब नहीं रह गई बिल्कुल भी,

अब वो शख़्स हमें यादों में चाहिए हकीकत में नहीं...!!
अब कोई गुंजाइश नहीं कि कौन अगर कैसा होता तो क्या होता,

सीधा मसअला ये हुआ कि अब कुछ रहा नहीं न हो पाएगा...!!
मैं मांगता रहता हूं तुम्हें हर दुआ में रोज़,

गर तुम मेरे नहीं हुए तो ख़ुदा की मर्ज़ी होगी...!!
मेरा काम है सोचना मैं सोचता हूं,

ये तो क़िस्मत होगी तू मेरा हो न हो...!!
करके तबाह हमको इसका गुमान है उन्हें,

हमें मौत आ जाए बस दुआ करें आप...!!!
काश कि उम्र उसी को कह सकते,
जितना उसके संग बिताया था...!!
एक तरफ इश्क़ की बहुत बड़ी बातें हैं,
एक तरफ़ चुपचाप बैठा असल इश्क़ है,

तुम बताओ क्या करना है,
मैं बातें भी कर सकता हूं इश्क़ के साथ साथ...!!
तमाम तस्वीरें थीं तुम्हारी
सब में तुम अच्छी थी,

ये ना पूछा करो,
किसमें सबसे अच्छी थी,
कभी तो लौट कर आएंगी ये की गई गलतियां तुम्हारी,

दुआ-ओ-इबादत से सबकुछ नहीं मिल जाता है...!!
अजीब अजीब हादसे हुए हैं मेरे साथ भी,

अकेला था सामने आईना रख के रो लिया...!!
ऐसा है आज के लिए बस करता हूं,
तुम्हारी तस्वीर मुझे देखते देखते तक गई होगी..!!

नहीं मेरा मन तो नहीं है जानें देने का लेकिन,
रात हो गई है तुम्हारी आंख लग गई होगी...!!
ये बेरंग जिस्म ये तड़प इसकी,

कितने अभागे हैं ख़ुदा को न जानने वाले...!!
अब के बादल नहीं आएंगे नहीं बिल्कुल नहीं,

मैं इंतेज़ार में बैठा रहा की उसके साथ भीगूँगा..!!
मै कमरे के बाहर भी एक दुनियां है,
सुना है वो दुनियां बहुत अच्छी है,

मै चाहता तो हूं दहलीज़ पार कर जाऊं,
मगर देखा है वो दुनियां नहीं अच्छी है....!!
डूब गई मेरी उम्मीदें सूरज के साथ साथ,

मगर ऐसा है कि सवेरा कल फिर से हो जाएगा..!!
बहुत दिन हुए होंगे मैं जगा एक रोज़,
अब उसके बाद मुझे कुछ याद नहीं है,
शायद सोते सोते सब भूल जाता हो,
अपना अस्तित्व, अपनी ज़रूरत, औरों से संबंध,
या शायद मैं अभी जागा हूं एक नशे की नींद से
पहले का सब बनावटी था ऊपरी था छल था स्वप्न वाला कल था
मगर अब जैसे भोर वाला सूरज लाल और दिन वाला पीला
रात का अंधेरा काला और उसमें चाँद की चांदनी सफ़ेद,
सितारे वगैरह सब दिखाई पड़ते हैं,

महसूस होती है हवा, झरनें, रास्ते, गलियां और घर की चौखट,

महसूस होता है आदमी का छोटा कद उसकी ओछी बातें ताक़त दिखानें की नाकाम कोशिश हर बात का झूठ ईश्वर और स्वयं को जानने का अहंकार,

मगर सब ख़्वाब है, आँखें खुलते ही समाप्त हो जाएगी कहानी,
और रह जाएगी पछतावे की बेरंग खाली कोठरी जहां अकेलेपन का सागर खोखलेपन की हवा के साथ भ्रमण पर होंगे,

तब वक्त हंसेगा एक तीखी हँसी और कहेगा क्यों न उस वक्त समझा तू, क्यों ना जागा मेरे झकझोरने पर,... क्यों...?
2024/11/16 10:56:53
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