कुछ एहसासों को बयां करने के लिए अल्फ़ाज़ नही मिलते और ना ही बिन कहे कोई अपने समझने वाले।😑
एक दिन हम मर जाएंगे, अपनी अपनी चुप्पियां लेकर ,और हमारा आखिरी ख्याल होगा:"हमें बोलना चाहिए था....!
मुँह में धुँआ आँख में पानी लेकर अपनी रामकहानी बैठा है टूटी खटिया पर ओढ़े हुए लिहाफ़ दिसम्बर
सुनो एक बार के लिये ही सही तुम समेट लो मुझे ख़ुद में
महसूस करना है मुझे तुम्हारी देह का ताप
और उस ताप में जल करना है शीतल तुम्हें
रखने दो मुझे अपने सीने पर सर
और सुननें दो मेरे नाम की गूंज उसमें
सुनो एक बार जी लो संग मेरे कुछ लम्हें
अपनी मसरूफ़ ज़िन्दगी के ...!!
महसूस करना है मुझे तुम्हारी देह का ताप
और उस ताप में जल करना है शीतल तुम्हें
रखने दो मुझे अपने सीने पर सर
और सुननें दो मेरे नाम की गूंज उसमें
सुनो एक बार जी लो संग मेरे कुछ लम्हें
अपनी मसरूफ़ ज़िन्दगी के ...!!
अक्सर ही रात और मैं
एक दूसरे का खालीपन निहारते हैं
फिर ऊब कर
मैं उसमें शब्द भरता हूँ
और वो मुझमें आंसू...🖤🖤
एक दूसरे का खालीपन निहारते हैं
फिर ऊब कर
मैं उसमें शब्द भरता हूँ
और वो मुझमें आंसू...🖤🖤
जीस दिन सोचते है पूरी बात करेंगे
झगड़ा भी कहता है हम भी आज ही करेंगे 💔
झगड़ा भी कहता है हम भी आज ही करेंगे 💔
जिनके मतलब पूरे होते गए ..
वो दूर होते गए और हम उनकी नज़र में
बुरे बनते गए...💔
वो दूर होते गए और हम उनकी नज़र में
बुरे बनते गए...💔
नए दौर में है साहब लेकिन इसका मतलब यें नहीं कि रिश्तों को कपड़ों के तरह बदलते रहें,,,,,
यें नहीं एक रूठे नाराज़गी रहें हम कहीं और रिश्ता निभाएं,,,
उसकी जगह वहीं रहें गी जो पहले थीं
नए दौर के ज़रूर है पर रिश्ते निभाने के मामले में हम पुराने दौर के ही हैं,,,,!!!!
यें नहीं एक रूठे नाराज़गी रहें हम कहीं और रिश्ता निभाएं,,,
उसकी जगह वहीं रहें गी जो पहले थीं
नए दौर के ज़रूर है पर रिश्ते निभाने के मामले में हम पुराने दौर के ही हैं,,,,!!!!
कुछ लोग दिल में वो जगह बना लेते हैं,,,,
या यूं कहें कि हम उन्हें इजाज़त दें देते हैं,,,
फ़िर चाहे उनसे बात हों या न हों,,,
चाहें कितनी भी नाराज़गी हों,,,
फ़िर भी आप ख़ुद से न जुदा कर पाते हैं न ही उनकी जगह किसी और को दें पाते हैं,,,,
ऐसे में ख़ुद को हम असमर्थ समझते हैं,,,
या यूं कहें कि हम उन्हें इजाज़त दें देते हैं,,,
फ़िर चाहे उनसे बात हों या न हों,,,
चाहें कितनी भी नाराज़गी हों,,,
फ़िर भी आप ख़ुद से न जुदा कर पाते हैं न ही उनकी जगह किसी और को दें पाते हैं,,,,
ऐसे में ख़ुद को हम असमर्थ समझते हैं,,,