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प्रश्न : पृथ्वी को अचला क्यों कहां जाता है?
( *गुजरात थॉट नामक राइटविंग "छुपे वामपंथी" धर्मविरोधी, हिन्दुओ के मुलसिद्धान्त विरोधी फेसबुक ग्रुप का करपात्रीजी महाराज पर किए आक्षेप का भ्रम निवारण* )
वक्ता : अनंत श्री विभूषित श्रीमज्जगतगुरु शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती जी महाभाग

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हर हर शंकर जय जय शंकर 💐
हर हर महादेव। 💐
- क्षेत्रज्ञ
(श्री वैदिक ब्राह्मण ग्रुप,गुजरात)
(एक भूगोल के विद्वान के द्वारा भूकम्प पर जिज्ञासा प्रकट करने पर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज के द्वारा शास्त्रोचित सनातन वैदिक धर्म सापेक्ष समाधान।)
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प्रश्न- भूकंप का रहस्य
क्या है ??
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उत्तर-
महाभारत में गंगा को भी भूधर कहा गया है।
जल से पृथ्वी की उत्पत्ति होती है, यह दार्शनिक सिद्धांत है, वैज्ञानिक सिद्धान्त है।
चंद्रमा और सूर्य का प्रभाव तिथि के अनुसार समुद्र पर पड़ता है
और जब समुद्र पर तिथि का प्रभाव पड़ता है तो भूकंप में भी तिथियों का योग हो जाता है।
पूर्णिमा हो, अमावस्या हो, चतुर्दशी हो, अष्टमी हो ।
चंद्रमा जल को प्रभावित करता है, उर जल पृथ्वी को प्रभावित करता है क्योंकि पृथ्वी का उद्गमस्थान, उपादान कारण जल है।
तो भूकंप को लेकर अब तक का अनुसंधान यह कहता है
कि
जिन तिथियों में पूर्णिमा व अमावस्या सूर्यग्रहण, चंद्रग्रहण की प्राप्ति होती है
उर जिन तिथियों में ज्वार भाटे को लेकर समुद्र प्रभावित होता है, उन तिथियों में भूकंप का योग होता है।
इस प्रकार तिथि के साथ चंद्रमा का सम्बन्ध हैं, क्योंकि काल जो हैं, काल की सिद्धि चंद्रमा से होती है, काल की सिद्धि सूर्य से होती है, काल की सिद्धि महाभारत आदि के अनुसार अग्नि से भी होती है।
ये जितने तैजस पदार्थ हैं, प्रकाशयुक्त हैं, प्रभावयुक्त हैं, ये सब काल की गणना में उपयोगी होते हैं।
तो समुद्र जब प्रभावित होता है सूर्य और चंद्र से तब भूकंप का योग लगता है।
इसीलिए तिथि के साथ भूकंप का योग बन जाता है और जल पर प्रभाव सूर्य चंद्र का तिथि के अनुसार होता है।
इस प्रकार दर्शन , विज्ञान व व्यवहार में भूकंप को लेकर एकत्व है।

रह गयी बात किस काल में, कब और किस देश मे।
इसके लिए विशेष अध्ययन की आवश्यकता होती है क्योंकि समुद्र और पर्वत यानी कि जल, पर्वत , वन इन तीनो को हमारे शास्त्रों में भूधर कहा गया है क्योंकि ये पृथ्वी को धारण करने वाले हैं।
तीनों में जब कहीं पर पर्वत में विकृति आ गयी क्योंकि पर्वत को तोड़ दिया गया उत्तराखंड में। पर्वत को तोड़ देने से वहां की भूमि का संतुलन बिगड़ गया।।कहीं वन को काट दिया गया, कहीं जल को दूषित कर दिया गया तो जहाँ वन भी हो, पर्वत भी हो और जलाशय भी हो और इन तीनों को क्षुब्ध व विकृत किया जाय तो वह क्षेत्र भूकंप से अधिक प्रभावित होगा।
जापान जो भूकंप से अधिक प्रभावित होता है, वह देश विशेष है न।
क्यों प्रभावित होता है, इस पर विचार करेंगे जल को लेकर, पर्वत को लेकर और वन को लेकर।
ये सब भूकंप में हेतु है। जल में विकृति, पर्वत में विकृति या वन में विकृति होने पर
या वह क्षेत्र जो जल से आप्लावित है, वहां पर भूकंप का अधिक प्रभाव पड़ेगा।
तो काल का भी प्रभाव पड़ता है और काल की गणना सूर्य के आधार पर चंद्रमा के आधार पर।
इसलिए सूर्य चंद्र काल को प्रभावित करते हैं। काल का ही एक अवयव तिथि भी है। तिथि के अनुसार फर पृथ्वी प्रभावित होती है।
Watch 👉https://youtu.be/6wkuLn-pZqU
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लेखन कार्य
प्रशान्त कुमार मिश्र जी
*વર્ણવ્યવસ્થા અને જાતિવ્યવસ્થા બન્ને એક જ છે*

ગુજરાત ના એક જાણીતા કથાકાર એ વારંવાર જાતિવ્યવસ્થા/વર્ણવ્યવસ્થા પર પ્રશ્નો ઉપસ્થિત કર્યા છે, એમના અમુક શિષ્યો પણ વ્યાસપીઠ પરથી તે જ સંદેશ પ્રસારિત કરે છે. જેના સમાધાન અર્થે જગતગુરૂ શંકરાચાર્ય શ્રી નિશ્ચલાનંદ સરસ્વતી મહારાજના જાતિ/વર્ણવ્યવસ્થા ની સમજણ આપતા મહત્વપૂર્ણ વિડિઓઝની લિંક આપેલ છે. જે દરેક ને વર્ણવ્યવસ્થા પર પ્રશ્ન છે એ જરૂર થી આ વિડિઓ સાંભળે.

*શંકરાચાર્ય નિશ્ચલાનંદ સરસ્વતી જી દ્વારા સમાધાન વિડિઓ લિંકસ*

૧. વર્ણ અને જાતિ અલગ છે એ ભ્રમ છે બન્ને એક જ છે.
https://youtu.be/Uks3lIJ3wR0

૨. વર્ણ અને જાતિ માં અંતર શું છે?
https://youtu.be/lctLITpRfC8

૩. જાતિ જન્મ થી કે કર્મ થી?
https://youtu.be/EB1f_nv5V-I

૪. ગીતા માં चातुर्वर्ण्य मया..... કેમ કેહવા માં આવ્યું છે?
https://youtu.be/U_2ckFp9yPk

૫. વેદોમાં શું જાતિ વ્યવસ્થા છે?
https://youtu.be/1hDTZHPe_Eo

૬. વર્ણવ્યવસ્થા, જાતિનું મહત્વ અને જાતિ વચ્ચે વૈમનસ્ય દૂર કરવાના ઉપાય.
https://youtu.be/y3_FagDjBPg

આ ઇ મેઈલ લિંક સાથે આદરણીય ભાઈશ્રી ને વંચાવી અને ઉપર ના વિડિઓ સંભળાવવા નમ્ર વિનંતી.

જય ગુરુદેવ
હર હર મહાદેવ.💐💐
संविधान कैसा होना चाहिए?

( हिंदु राष्ट्र संगोष्ठी में पुरी शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती जी महाराज के वक्तव्य का कुछ अंश ) :-

सृष्टि की संरचना के प्रयोजन को समझे बिना जो संविधान विनिर्मित होगा वह दिशाहीन किए बिना नहीं रह सकता। संविधान की आधारशिला क्या है - सृष्टि की संरचना के प्रयोजन को समझकर उस प्रयोजन की सिद्धि में सोपानकक्रम प्रस्तुत करना संविधान का मुख्य दायित्व होता है।

श्रीमद्भागवत 10.87.2 में सृष्टि की संरचना के प्रयोजन का वर्णन किया गया है -

"बुद्धीन्द्रियमनः प्राणान् जनानामसृजत् प्रभुः।
मात्रार्थं च भावार्थं च आत्मनेऽकल्पनाय च।।"

महासर्ग के प्रारंभ में सच्चिदानंद स्वरूप परमेश्वर ने आकाश, वायु, तेज, जल, पृथ्वी से मण्डित सृष्टि की संरचना की। जो प्राणी महाप्रलय के अव्यवह्यित पूर्वक क्षण पर्यंत भगवत्तत्त्व को नहीं जान पाए, जिन्हें कैवल्य मोक्ष प्राप्त हो सका। उन अकृतार्थ प्राणियों को कृतार्थ करने का अवसर प्रदान करने की भावना से सच्चिदानंद स्वरूप सर्वेश्वर ने देह, इंद्रिय, प्राण, अंतः करण से युक्त जीवों को प्रकट किया।
जीवों को धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष संज्ञक पुरुषार्थ चतुष्ट्य की सिद्धि हो सके, इस भावना से भावित होकर करुणावरूणालय सच्चिदानंद स्वरूप सर्वेश्वर ने महासर्ग के प्रारंभ में आकाश आदि से मण्डित सृष्टि की संरचना की और जीवों को देह, इंद्रिय, प्राण, अंतःकरण से युक्त जीवन प्रदान किया।

गम्भीरतापूर्वक विचार करें, जितने स्थावर, जङ्गम प्राणी हैं उनके जीवन का प्रयोजन क्या है? उस प्रयोजन की सिद्धि में जिसका उपयोग और विनियोग हो वही संविधान हो सकता है। मृत्यु का भय और मृत्युञ्जय पद प्राप्त करने की भावना, अमृत्तत्व की भावना, जड़ता, मूर्खता को दूर करने की भावना, अखण्ड विज्ञान प्राप्त करने की भावना, दुःखों से छूटने की भावना, दैहिक, दैविक, भौतिक त्रिविध तापों का भय और अखण्ड आनंद प्राप्त करने की भावना प्राणी मात्र में निःसर्गसिद्ध है। इसका मतलब प्रत्येक प्राणी जड़ता, मृत्यु, दुःख के चपेट से मुक्त होकर सत्, चित्, आनन्द होकर, ज्ञान स्वरूप होकर, अमृत स्वरूप होकर शेष रहना चाहता है। ज्ञान और कर्म को परिष्कृत कर जन्म और मृत्यु कि अनादि अजस्र परंपरा के आत्यंतिक उच्छेद में जिसका उपयोग और विनियोग हो, उसी का नाम जीवन है।

प्रत्येक अंश स्वभावतः अपने अंशी कि ओर आकृष्ट होता है। हम जितने जीव हैं वो -

ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः। (भगवद्गीता 15.7)

ईश्वर अंश जीव अविनाशी, चेतन अमल सहज सुखराशि (रामचरित मानस)

इसका मतलब जो हमारा मौलिक स्वरूप है - सच्चिदानंद, वही हमारे आकर्षण का केंद्र है। अर्थात हर प्राणी मृत्यु के चपेट से मुक्त होकर अमृत स्वरूप होकर रहना चाहता है, हर प्राणी जड़ता और मूर्खता से दूर होकर अखण्ड विज्ञान सम्पन्न होकर रहना चाहता है, हर प्राणी दुःख से मुक्त होकर अखण्ड आनन्द स्वरूप होकर रहना चाहता है।

इसका अर्थ क्या हुआ? संविधान की आधारशिला क्या होनी चाहिए? संविधान किस सूत्र के आधार पर बनना चाहिए? सबके हित में कौन सा संविधान हो सकता है? हर देश में, हर काल में, हर परिस्थिति में, हर व्यक्ति के लिए शुभप्रद, मङ्गलप्रद, संविधान कौन सा हो सकता है? स्थायी संविधान कौन हो सकता है? सबके लिए हितप्रद कौन हो सकता है? संविधान की आधारशिला मैं बताता हूँ ताकि कहीं भी भटकना सम्भव ही न हो -

प्राणियों की निःसर्गसिद्ध सार्वभौम आवश्यकता की पूर्ति संविधान के माध्यम से, जीवन के माध्यम से होनी चाहिए। प्रत्येक प्राणी मृत्यु, जड़ता, दुःख के चपेट से मुक्त होकर सत्, चित्, आनंद स्वरूप होकर, मृत्युञ्जय होकर, ज्ञानस्वरूप, आनंद स्वरूप होकर शेष रहना चाहता है।
जीवों की प्रवृत्ति और निवृत्ति का जो नियामक माने मृत्यु का भय, अमृत्तत्व की भावना; जड़ता का भय, अखण्ड विज्ञान की भावना; दुःख का भय, अखण्ड आनन्द की भावना ; इसकी पूर्ति जिसके द्वारा हो सके, अर्थात प्राणियों को जो मृत्यु, जड़ता, दुःख से अतिक्रांत जीवन की ओर जो अग्रसर कर सके वही संविधान है।

कोई कहते हैं चंद्रगुप्त मौर्य का शासन बहुत अच्छा था, हम मान लेते हैं। कोई कहते हैं शिवाजी का शासन बहुत अच्छा था, हम मान लेते हैं। कोई रहते हैं विक्रमादित्य जी का शासन बहुत अच्छा था, हम मानते हैं। कोई कहते हैं धर्मराज युधिष्ठिर ने जिस राज्य की संरचना की हमको वही धर्म राज्य चाहिए, कोई कहते हैं हमको रामराज्य चाहिए। अगर राजनेताओं से भी पूछा जाए तो कहेंगे हम रामराज्य लाएंगे। गांधीजी भी रामराज्य की चर्चा करते थे या नहीं? अब यहाँ पर बहुत ही शीतल हृदय से विचार करने की आवश्यकता है - शिवाजी ने शासन किया उस समय कौन सा संविधान था? चंद्रगुप्त मौर्य ने जो शासन किया उस समय कौन सा संविधान था? आज का संविधान था क्या? विक्रमादित्य जी ने दिव्य साम्राज्य प्रदान किया, उनके शासनकाल में सब सुखी थे तो उस समय आज का संविधान था
क्या? धर्मराज युधिष्ठिर ने जो राज्य किया, कौन सा संविधान था? भगवान राम और उनके पूर्वज अम्बरीष इत्यादि ने जो राज्य किया उस समय कौन सा संविधान था? प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री कोई भूतपूर्व हों या वर्तमान तो वे क्या कहते हैं कि 'रामराज्य हम लाएंगे'। लेकिन राम जी ने जो राज्य किया तो किस संविधान के आधार पर? अरे मनुस्मृति के आधार पर। उसी से चिढ़ है ना आजकल? राम जी के पूर्वज मनु थे या नहीं? अब प्रश्न यह उठता है कि जिस संविधान के आधार पर राम राज्य की स्थापना हुई, धर्म राज्य की स्थापना हुई तो छल, बल, डंके की चोट से उस संविधान के प्रति और उस संविधान के उपदेष्टा मनु के प्रति घोर अनास्था उत्पन्न कर दी गई है या नहीं? तो कल्याण कैसे होगा जी?

एक ओर हम कहते हैं कि रामराज्य लाएंगे तो दूसरी ओर राम जी ने जो राज्य प्रदान किया, उनके पूर्वजों ने जो राज्य प्रदान किया, जिस संविधान के क्रियान्वयन का वह फल था, उस संविधान को कोसते भी हैं। आश्चर्य की बात है जब हम रामराज्य की प्रशंसा करते हैं, धर्म राज्य की प्रशंसा करते हैं, विक्रमादित्य जी के शासनकाल की प्रशंसा करते हैं, चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल की प्रशंसा करते हैं, शिवाजी के शासन की प्रशंसा करते हैं तो स्वाभाविक रूप से प्रश्न उठता है कि उस समय संविधान कौन सा था? किस संविधान का अनुपालन करने पर इस प्रकार का उज्जवल शासन वे दे पाए?

यहां तक मैं संकेत करता हूं - किस संविधान के अनुपालन से जीवन में वह बल और वेग उत्पन्न हो सकता है जिससे कि देहत्याग के पश्चात वह स्वर्गादि उर्ध्व लोकों में गमन कर सके? किस संविधान का अनुपालन करने पर कोई ब्रह्मा हो सकता है, इंद्र हो सकता है? आज का संविधान? आज जो ब्रह्मा जी के पद पर हैं किसी कल्प में वे कभी बृहद् भारत में, सत्कुल में उनका जन्म था, वे मनुष्य थे, अश्वमेध याग में अधिकृत थे। उन्होंने अश्वमेध याग के अवांतर फल को ने चाह कर अश्वमेध याग के माध्यम से प्रजापति की विधिवत समर्चा की। आज जिसके फलस्वरूप वे ब्रह्मा हैँ। एक मनुष्य को ब्रह्मा जी का पद देने वाला कौन है जी? कौन संविधान है? आधुनिक संविधान हो सकता है क्या? इंद्र के पद को प्रदान करने वाला कौन संविधान हो सकता है? हमारे जीवन में वह बल और वेग भरने वाला कौन संविधान हो सकता है कि देह त्याग के बाद, कर्म और उपासना के स्तर से स्वर्गादि लोकों में हम जा सकें? इसका अर्थ क्या है? लौकिक उत्कर्ष, पारलौकिक उत्कर्ष और परमात्मा की प्राप्ति का मार्ग भी प्रशस्त हो जाए, अभ्युदय, निःश्रेयस दोनों फलों की सिद्धि हो जाए, ऐसा संविधान ही तो संविधान हो सकता है।

तो संविधान कौन सा उत्कृष्ट हो सकता है? श्रीमद्भागवत 10.87.2 के अनुसार

"बुद्धीन्द्रियमनः प्राणान् जनानामसृजत् प्रभुः।
मात्रार्थं च भावार्थं च आत्मनेऽकल्पनाय च।।"

महासर्ग के प्रारंभ में सच्चिदानंद स्वरूप परमेश्वर ने आकाश, वायु, तेज, जल, पृथ्वी से मण्डित सृष्टि की संरचना की। जो प्राणी महाप्रलय के अव्यवह्यित पूर्वक क्षण पर्यंत भगवत्तत्त्व को नहीं जान पाए, जिन्हें कैवल्य मोक्ष प्राप्त हो सका। उन अकृतार्थ प्राणियों को कृतार्थ करने का अवसर प्रदान करने की भावना से सच्चिदानंद स्वरूप सर्वेश्वर ने देह, इंद्रिय, प्राण, अंतः करण से युक्त जीवों को प्रकट किया।
जीवों को धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष संज्ञक पुरुषार्थ चतुष्ट्य की सिद्धि हो सके, इस भावना से भावित होकर करुणावरूणालय सच्चिदानंद स्वरूप सर्वेश्वर ने महासर्ग के प्रारंभ में आकाश आदि से मण्डित सृष्टि की संरचना की और जीवों को देह, इंद्रिय, प्राण, अंतःकरण से युक्त जीवन प्रदान किया।
तो हमने संकेत किया, इस रॉकेट, कंप्यूटर, एटम और मोबाइल के युग में भी सनातन सिद्धांत को जो नहीं मानेगा वह दिशाहीन हुए बिना नहीं रहेगा।

पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, प्रकृति और परमात्मा में सन्निहित जो सिद्धांत है, जिस सिद्धांत / संविधान के आधारपर सृष्टि की संरचना होती है, सृष्टि की रक्षा होती है/ पालन होता है, सृष्टि का संहार होता है, उसको जबतक नहीं समझेंगे तब तक जो संविधान विनिर्मित होगा वो दिशाहीन किये बिना नहीं रहेगा।

देहात्मभाव भावित संविधान न्याय दे ही नहीं सकता। क्योंकि उसमें पाप-पुण्य का उल्लेख नहीं, पूर्वजन्म-पुनर्जन्म में आस्था नहीं। वह संविधान अर्थ और काम तक ही सीमित रहेगा। और अर्थ तथा काम को इस तरह से परिभाषित करेगा जिसके गर्भ से अनर्थ और पिशाचवृत्ति निकले बिना न रहे। ऐसे संविधान का आश्रय लेकर प्रगति का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है।
संविधान की आधारशिला तब स्वस्थ मानी जाती है जब आप इस आधारशिला को मानें कि "देह के नाश से जीवात्मा का नाश नहीं होता, देह के भेद से जीवात्मा में भेद की प्राप्ति नहीं होती।"
जिस संविधान से शिक्षा, रक्षा, अर्थ, सेवा और स्वच्छता के प्रकल्प सबको संतुलित रूप में प्राप्त हो सकें वही संविधान सबके लिए सुमङ्गलकारी होता है। सृष्टि की संरचना का जो प्रयोजन है, पृथ्वी, पानी, प्रकाश, पवन ये सब जिस अधिनियम का पालन करते हैं, उन सब का अनुशीलन करके त्रिकालदर्शी महर्षियों के द्वारा जो संविधान बनाया गया है, उसके विपरीत चलने पर विप्लव ही विप्लव हो सकता है। अतः इस रॉकेट, कंप्यूटर, एटम और मोबाइल के युग में भी सनातन सिद्धांत की उपयोगिता पूर्ववत् चरितार्थ है।

सम्पूर्ण वीडियो लिंक - https://youtu.be/bPaZZYmv54w
*गावो विश्वस्य मातरम्*

बहुत लंबी पोस्ट न लिखते हुए श्रीवैदिक ब्राह्मण समूह, गुजरात की और से धर्मप्रेमी हिन्दू जनता को अपील है, गौमाता की अधिक से अधिक सेवा करें, गौमाता के लिए गौशाला में दान करें,गौमाता के माध्यम से बहुत सारे औषधीय प्रोडक्ट मिलते है उनका प्रयोग करें, गली मोहल्ले में घूम रही गौमाता को खाना खिलाने की जिम्मेदारी ले। गौसंवर्धन अधिक से अधिक करें। गौ रक्षा के लिए क्षत्रियों ब्राह्मणो अन्य ने सर कटाये है,किन्तु वहिं गौमाता के लिए १५० वर्ष से आंदोलन चल रहे है अभी तक कोई निष्कर्ष नहीं आया है। सरकार से हम निवेदन करते है। *गौमाता के लिए स्पेशल ऑर्डिनेंस लाए और गौमाता को राष्ट्रमाता घोषित किया जाए।*

गौमाता की जय हो।💐
गौहत्या बंद हो।💐
2024/09/23 00:21:32
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