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*माँ भगवती की कृपा दृष्टि से श्रीवैदिक ब्राह्मण ग्रुप गुजरात का एक और सफल कदम*

श्री वैदिक ब्राह्मण ग्रुप, गुजरात पिछले ३ वर्षो से सनातन सेवा एवं उत्थान के लिए कार्यरत है,परम गुरुदेव चारों मठ के जगतगुरु शंकराचार्य महाभाग एवं हंमारे गुरुदेव प्रातःस्मरणीय दंडीस्वामी श्री सदानंद सरस्वती महाराज की चरणपादुका को हृदय में रखकर नई कड़ी का आरंभ हम कुटुंब एप से करने जा रहे है, जहां नित्य पोस्ट एवं डिस्कशन हेतु जुडिए, श्री वैदिक ब्राह्मण ग्रुप,गुजरात व्हाट्सएप ग्रुप की तरह ही कुटुंब एप पर अब वैदिक धर्म का प्रचार किया जाएगा ताकि अधिक से अधिक लोग लाभान्वित हो पोस्ट देख सके कमेंट कर सके एवं अपने प्रतिभाव भी दे सके, यह एप बिल्कुल भी आपको परेशान करने वाला नहीं रहेगा, यह एप में एडमिन कंट्रोल है अतः आपको अधिक संदेश या नोटिफिकेशन भी नहीं आएंगे।

आप हमसे जुड़ सकते है और यह लिंक अधिक से अधिक शेयर करते रहिए नित्य पञ्चाङ्ग, गीता, संस्कृति, संस्कार आदि सभी प्रकार के मुद्दे पर पोस्टिंग किया जाएगा।

*ग्रुप लिंक का लॉन्च आदरणीय आचार्यजी श्री राजेश शास्त्री जी के आशीर्वाद से सम्पन्न हो रहा है जिनके आशीर्वाद से श्रीवैदिक ब्राह्मण ग्रुप नई ऊंचाई तक पहुंचे यह माँ भगवती से प्रार्थना है।*

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जय माँ भगवती 💐🙏🏾
श्रीमन्नारायण 💐🙏🏾
अनन्त श्री विभूषित श्री ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय गोवर्धनमठ पुरीपीठाधीश्वर श्रीमज्जगदगुरू शंकराचार्य भगवान के अमृतवचन :-

भौतिकतावाद की निरर्थकता :-

भौतिकता की धारा में बहने वाला जितन‍ा विश्व है उनको हम संकेत करते हैं । आपके पास क्या कोई एेसी विधा है कि प्रवृत्ति के गर्भ से आप निवृत्ति निकाल सकें ? आजकल है क्या ? कोई भौतिकवादी हृदय पर हाथ रख कर बता दे कि उसने जो प्रवृत्ति को ‍आरंभ किया उसक‍‍ा पर्यवसान निवृत्ति में हो सकत‍ा है ? मनुजी की एक बात को भी काटकर सुरक्षित नहीं रह सकते । " निवृत्तिस्तु महाफला: "मनुस्मृति का उदघोष है । एक वचन मैंने पढ़ा था " महायंत्र प्रवर्तनम" अर्थात उत्पातक है , विश्व का अगर विनाश करन‍ा हो तो महायंत्रो का प्रचुर आविष्कार और उपयोग किजिये ।

हम संकेत करते हैं जितने प्रवृत्तिवादी हैं , एक भी भौतिकवादी है क्या वो बता सकते हैं की जो प्रवृत्ति उन्होंने प्रारम्भ की है उसके गर्भ से निवृत्ति निकल सकती है ? जिस गति का पर्यवसान स्थिति में न हो गन्तव्य तक पहुंचाने में जो गति समर्थ ना हो उस गति की सार्थकता मानी जायेगी या निर्थकता ? आज जिस ढंग से प्रवृत्ति को अपनाते हैं व्यक्ति उस प्रवृत्ति के गर्भ से कभी एक अरब वर्ष में भी निवृत्ति निकल सकती है क्या ? तो प्रवृत्ति व्यर्थ गई या नहीं ? पूरे विश्व को विकास के नाम पर क्या किया जा रहा है निरर्थक सिद्ध किया जा रहा है जितने मनुष्य हैं सब के जीवन को व्यर्थ सिद्ध करने वाला भौतिकवाद है।

भौतिकवादियों को तो पञ्चभूतों का भी ज्ञान नहीं होता । कोई भी भौतिकवादी क्या यह कह सकता है की उनकी प्रवृत्ति के गर्भ से निवृत्ति निकल आयेगी ? अगर प्रवृत्ति का पर्यवसान निवृत्ति में नहीं है तो उसकी सार्थकता कैसे मानी जायेगी ?

" निवृत्तिस्तु महाफला:" अगर मुझसे पूछें की समग्र वैदिक वांगमय का अनुशीलन करके एक वाक्य में उसका सारांश क्या निकला जा सकता है तो मैं यही कहूंगा डण्के की चोट से आह्लादपूर्वक - "प्रवृत्ति का पर्यवसान निवृत्ति में हो तब प्रवृत्ति की सार्थकता है ओर निवृत्ति का पर्यवसान निर्वृति ( परमानन्द स्वरुपा मुक्ति की समुपलब्धि ) में हो तब निवृत्ति की सार्थकता है " । पूरे वैदिक वांगमय का सारांश गुरुओं की कृपा से मैंने आपको एक वाक्य में बता दिया ।

पूरा विश्व जितने मनुष्य हैं अपवाद को छोड़ दिजिये जो भौतिकता की धारा में बहते हैं उनका जीवन इसिलिये व्यर्थ क्योंकि उनकी प्रवृत्ति के गर्भ से एक अरब कल्प में भी कभी निवृत्ति नहीं निकल सकती है तो सारी प्रवृत्ति व्यर्थ हो गई य‍ा नहीं । इसका मतलब जीवन के साथ खिलवाड़ विज्ञान के नाम पर विकास के नाम पर । वेद विहिन विज्ञान के द्वारा जीवन कभी भी सार्थक नहीं हो सकता ।

भौतिकवादियों पर पहला प्रहार क्या है -

१. ) " तुम प्रवृत्ति अपनाते जाओ तुम्हारी प्रवृत्ति के गर्भ से कभी निवृत्ति नहीं निकलेगी अत: तुम्हारा पूरा जीवन व्यर्थ । जो करना था वो कर नहीं पाये । "

भौतिकतावादियों पर दूसरा प्रहार क्या है-

२.) " प्रवृत्ति के बाद आप कहेंगें " प्राप्ति " - बंटोरते जाओ , बंटोरते जाओ सिकंदर के समान कब्रिस्तान खुदवा खुदवा के हीरे जवाहरात इक्क्ठे करते जाओ लेकिन अंत में "हाय जो पाना था वो पा ना सका " , प्राप्ति का कभी अंत नहीं होता ।"

३.) तीसरा भौतिकतावादियों के लिये अभिशाप क्या है -

" विश्व में जितने विश्वविद्यालय हैं सबके विद्या और कला को एक जन्म में प्राप्त कर लो कोई , फिर भी हृदय पर हाथ रखकर यह नहीं कह सकता है कि जो जानना था जान चुका मेरा कुछ जानना शेष नहीं है "।

अत: भौतिकतावादी ये कभी नहीं कह पायेगा की जो करना था कर चुका मेरा कुछ करना शेष नहीं है, जो पाना था पा चुका मेरा कुछ पाना शेष नहीं है , जो जानना था जान चुका मेरा कुछ जानना शेष नहीं है ।

लेकिन आध्यात्म निष्ठ क्या कह सकता है कि " आध्यात्मविद्या को अपना लिजिये तो इसी जन्म में करना , पाना , जानना है वो पूरा हो जायेगा " । इसीलिये हमने संकेत किया सज्जनों प्रवृत्ति को निवृत्ति बनाने कि विधा ही भौतिकवादियों के पास नहीं है ।

हर हर महादेव
*मै राष्ट्र को धोखा नही दे सकता , माता- पिता- गुरु और पीठ को कलंकित नही कर सकता, मै पूज्य स्वामी श्री करपात्री जी महाराज का कृपा पात्र शिष्य हूँ......* 🚩

*********************
*नक्षत्र न्यूज़ टी.वी.चेनल द्वारा पुरी शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानंद सरस्वती जी महाराज के इंटरव्यू के मुख्य अंश :*

*पत्रकार : स्वामीजी एक सवाल उठा था कि पी.वी. नरसिम्हाराव के समय में कि उन्होंने आपको मारने के लिए सुनियोजित षड्यंत्र बनाया और उसी समय जो सहयोग नरसिम्हा राव का राम मन्दिर को लेकर था उसमे आपने सहयोग नही किया.... इसको लेकर क्या विवाद है ....... ?*

🚩 *शंकराचार्य जी : ऐसा है वस्तु स्थिति यह है कि जब श्री अयोध्या में जिसको उस समय प्रायः बाबरी मस्जिद कहा जाता था और मैंने सबसे पहले कहा कि मंदिर के उसमे लक्षण है ...गुम्बद है , मीनारे नही है ...इसका मतलब वह मंदिर ही है उसे लांछित मंदिर या विवादस्पद ढांचा कहना चाहिए न कि बाबरी मस्जिद,*

*जब ढांचा विद्यमान था रामलला उसी मंदिर में प्रतिष्ठित थे और मै शंकराचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया जा चूका था तब नरसिम्हा राव जी के दो दूत .... माध्यम मेरे पास वृन्दावन में आए और लगभग ढाई घंटे तक उनमे से एक लगातार बोलते रहे और लगभग ढाई घंटो में उन्होंने इस प्रकार का भाव प्रकट किया जिससे मै लोटपोट हो जाऊ ...... प्रलोभन के वशीभूत हो जाऊ .....तब मैंने देखा की वो थक गए है तब मैंने उनसे कहा कि आप क्या चाहते है ........उन्होंने कहा नरसिम्हा राव जी का आपके लिए सन्देश है की आपके प्रति ६५ करोड़ रूपए आप लीजिए और एक सेकेटरी ,सचिव आपको सरकार की और से दिया जाएगा उन रुपयों का उपयोग अयोध्या में मंदिर बनाने में हो ......*

🚩 *.......पर मैंने कहा जब विवादस्पद ढांचा वहा पर विद्यमान है और वस्तुतः रामलला का जन्म स्थल स्कन्द पुराण के अनुसार वही सिद्ध होता है स्कन्द पुराण में जो राम जन्म भूमि का चित्रण किया गया है उसके आधार पर वही स्थल है जहा उस समय वह ढांचा था ऐसी परिस्थिति में आप मंदिर अतिरिक्त कही बनाएँगे या वही बनाएँगे.... तो उसे हम बाबरी मस्जिद ही कहेंगे क्या .......? यह मै नरसिम्हा राव जी से उत्तर चाहता हूँ .......एकांत की बात है और आप सार्वजानिक रूप से पूछ रहें है*

*.........तो उन माध्यमो ने मुझ से कहा ....कि नरसिम्हा राव जी को यह पता था कि आप यह प्रश्न कर सकते है तो उन्होंने धेर्य पूर्वक कहा है की चूँकि आप किसी राजनैतिक दल के नही है आप श्री राम मंदिर के नाम पर खड़े होंगे तो मुस्लिम तंत्र जिसे मैंने अनुकूल कर रखा है वो भी राम मंदिर के पक्ष में हो सकता है अतः उस ढांचे को आर्थात जिसे बाबरी मस्जिद कहा जाता है हटाकर के वही राम मंदिर बने ऐसी हमारी भावना है ...उसमे आप खड़े हो जाइए ! उसके बाद मैंने कहा मुझे पता है कि यह राजनैतिक चाल है ......मंदिर, मस्जिद साथ में बनाने की योजना है .....उसमे मै निमित्त नही हो सकता ....न्याय का मै पक्षधर हूँ बाबर बहुत बाद में हुए ...रामलला लाखो वर्ष पुराने है और वे करोडो अरबो प्राणियों की आस्था के केंद्र है .....वहा पर मै मंदिर ही देखना चाहता हूँ और कुछ नही !*

*इसके बाद कालांतर में ढाचा टुटा जैसा की आप लोगो को पता है ........तब फिर उनके दूत आए..... मै संक्षेप में ही कहना चाहता हूँ .....क्योकि आपने कहा मारने की योजना ....मरवाने की योजना नरसिम्हा राव ने की तो स्पष्टीकरण की आवश्यकता है कि वस्तु स्थिति क्या है ! लगभग १०-२० बार उनके माध्यम मेरे पास भेजे गए ....पुरी में वृन्दावन में एवं अन्य स्थलों पर आते रहे .......*

*अंतिम चरण में यह हुआ की नरसिम्हा राव ने एक वैष्णव संत को मेरे पास वृन्दावन में भेजा ५-१० कार भी भेजी मुझे दिल्ली लाने के लिए अन्य शंकराचार्य मेरे अतिरिक्त प्रमाणिक शंकराचार्य सब उन दिनों दिल्ली में थे नरसिम्हा राव जी की प्रेरणा से ......और मुझसे कहा गया कि नरसिम्हा राव जी यह चाहते है की आप वहा पर आवें और मिलकर के राम मंदिर बनाने के ऊपर विचार करें ......और यदि आप ...... रामालय ट्रस्ट उस समय बन चूका था नरसिम्हा राव जी की प्रेरणा से उसमे मान्य श्रंगेरी , द्वारका व् जोशी मठ के शंकराचार्य के अतिरिक्त बहुत से वैष्णवाचार्यो ने भी हस्ताक्षर किया था .........मैंने मना कर दिया था।*

*मुझसे वह वैष्णव संत जी ने कहा की नरसिम्हा राव जी का यह सन्देश है मानते है या नही .... मैंने कहा मै राष्ट्र को धोखा नही दे सकता , माता-पिता-गुरु और पीठ को कलंकित नही कर सकता मै पूज्य स्वामी श्री करपात्री जी महाराज का कृपा पात्र शिष्य हूँ ......मंदिर, मस्जिद दोनों एक साथ बने मै इसका पक्षधर कभी नही हो सकता हस्ताक्षर बिलकुल नही कर सकता और शासन तंत्र आपके हाथ में है ....आप जो बनाना चाहते है बनाइए मै रोकने के लिए नही जाता लेकिन मै हस्ताक्षर कथमपि नही करना चाहता*

*.......उसके बाद मुझसे यह कहा गया की यदि आप हस्ताक्षर करते ह
ै तो सोने चांदी से आपका मठ भर दिया जाएगा और आप हस्ताक्षर नही करते है तो धन , मान , और प्राण आपके संकट में पड़ जाएँगे और शासन तंत्र कुछ भी आपके प्रति कदम उठा सकता है !*

*मैंने इसका उत्तर दिया कि यदि नरसिम्हा राव जी का यही भाव है तो .......वे पूरी शक्ति लगाकर धन तो मेरे पास है नही, हाँ मान अवश्य है और प्राण भी है जीवित व्यक्ति हूँ इसलिए प्राण और प्रतिष्ठा को नष्ट करने में पूरी शक्ति लगा दें मै उनके विरोध में एक शब्द भी नही बोलूँगा और देखता हूँ विजय किसकी होती है ........यह घटना है !*

*उसके बाद बहुत सा प्रयास किया गया .....मुझे श्रंगेरी बुलाया गया श्रंगेरी के मान्य शंकराचार्य ने , जोशी मठ और द्वारका मठ के शंकराचार्य को भी बुलाया ....... कांची जो की प्रतिष्ठित मठ है वहा के आचार्य को भी बुलाया गया अंत में बहुत प्रयास किया गया और यहाँ पर गोवर्धन मठ में श्रंगेरी के शंकराचार्य इस मठ में एक सौ शिष्यों के साथ तीन दिनों तक विद्यमान रहे ....मुझसे अनुरोध करते रहे प्रेमपूर्वक की आप हस्ताक्षर कर दीजिए .......मैंने कहा संभव नही .....यह घटना है....*

*.... उसके बाद जो प्रक्रिया हुई उससे बिलकुल स्पष्ट हो गया की इस पीठ को नष्ट करने के लिए और मुझे हर तरह से संकट में डालने का केन्द्रीय शासन तंत्र की और से प्रयास हुआ !*

*उसी सन्दर्भ में प्रयाग में कुम्भ के अवसर पर जब मै प्रयाग से आ गया.... पुरी की और था .....अन्यत्र मेरी यात्रा का कार्यक्रम बन गया था ......... रात्रि के बारह बजे चन्द्र स्वामी के शिविर में अयोध्या में हनुमान गढ़ी के जो महंत जी है मान्य ज्ञानदास जी .....उन्होंने अपने एक युवक ....लांछित , अवांछित शिष्य को वैष्णव तिलक मिटाकर के पुरी के शंकराचार्य के रूप में ख्यापित किया और दुसरे दिन ही विश्वस्तर पर उस व्यक्ति को पुरी के शंकराचार्य के रूप में प्रतिष्ठित व् ख्यापित किया गया*

*.....उसके बाद म.प्र. उस समय छतीसगढ़ सहित था के मुख्यमंत्री ........जो भी रहे हो पता तो चल ही जाएगा ..... उनके द्वारा और कांग्रेस के यूथ प्रेसिडेंट बिट्टा के द्वारा और नरसिम्हा राव के एक आदमी जो कि आईएस अफसर व् आध्यात्मिक सलाहकार शर्मा जी के द्वारा विश्वस्तर पर उस व्यक्ति को पुरी के शंकराचार्य के रूप में ख्यापित किया ...।*

*उस व्यक्ति के द्वारा मेरे अपहरण का पुरा प्रयास भी किया गया यहाँ के फोन पर भी अभद्र चुनोतिया दी गयी ....... उस के बाद से अब तक नरसिम्हा राव के न रहने पर भी उस व्यक्ति को लांछित व्यक्ति को विश्वस्तर पर आज भी पुरी के शंकराचार्य के रूप में ख्यापित किया जा रहा है ......*

*आर्थिक द्रष्टि से भी वह व्यक्ति करोडो रूपए कमा रहा है साथ ही विश्वस्तर का षड्यंत्र है ........हुर्रियत के नेता उसके अनुगामी ......और पोषक है ......यह बात विश्वस्तर पर विदित है*

*.....उल्फा जो की प्रतिबंधित है उसके सरगना उसके शिष्य है और आसाम के मुख्यमंत्री उसके शिष्य है वो उसके पक्ष में पुरी में पत्रकार वार्ता कर चुके है ....इतना दुस्साहस एक मुख्यमंत्री के द्वारा किया गया है एक कांग्रेसी मुख्यमंत्री के द्वारा .....इतना ही नही मै एक संकेत करना चाहता हूँ ....... क्रिश्चियन तंत्र पुरा उसके साथ सहयोग के समान प्रस्तुत है और मओवादियो को भी उसने अपने अनुकूल कर रखा है !*

*एक और संकेत .......देखीए माघ माह में मै प्रयाग में था ........गोवर्धन मठ पुरी के वरिष्ठ शंकराचार्य के नाम से उसका बोर्ड लगा था .......मेरे पास कमिश्नर इलाहाबाद प्रयाग , मेला अधिकारी , उप मेला अधिकारी तीनो एक साथ आए*

*........मैंने कहा यह सब क्या हो रहा है .......तो उन्होंने कहा की आप असली है हम जानते है लेकिन हमारी लाचारी है शासन तंत्र के आगे झुके है ........इसका मतलब यही हुआ ......इसी प्रकार वहा के एक संसद मेरे पास आए मैंने उनसे कहा की आप लोगो के शासनकाल में यह क्या हो रहा है ...लेकिन उन्होंने भी लाचारी व्यक्त की ..........और एक आजम खां नामक सपा के मंत्री कुम्भ मेला प्रभारी .......उस व्यक्ति के यहाँ जाकर भोजन करते थे और सौ से अधिक मुस्लिम सज्जन ..प्रतिष्ठित कहे या अराजक कहे उन व्यक्तियों के बिच बुलाकर उसके साथ गोष्ठी करते थे .......इस प्रकार इस पीठ को लज्जित करने का , तिरस्कृत करने का पूरा प्रयास किया जा रहा है !*

*मै जब रामजन्म भूमि आदि पर कुछ बोलता हूँ तो केंद्रीय व् प्रांतीय शासन तंत्र द्वारा मेरा वह वक्तव्य प्रतिबंधित कर दिया जाता है और वह धर्म के विरुद्ध , राष्ट्र के विरुद्ध जब बोलता है तो पुरे विश्व में उसका प्रसारण किया जाता है ........इस यातना पूर्ण परिस्थिति में मै अपने पद के दायित्व का निर्वाह कर रहा हूँ !*

*पत्रकार : स्वामी जी आप क्या मानते है एक नकली शंकराचार्य घूम रहा है , जैसा आप बोल रहे है तो सरकार कोई अंकुश नही लगा रही या कोई साजिश है ....?*

🚩 *शंकराचार्य जी : जब सरकार के द्वारा खड़ा किया गया
है तो सरकार क्यों उसके ऊपर नियंत्रण करे और सबसे बड़ी बात यह है की रामालय ट्रस्ट में मैंने हस्ताक्षर नही किया और मैंने कहा की मै अपने विवेक का परिचय देता हूँ ....आप शंकराचार्यों को हस्ताक्षर करने का भाव आया आपने हस्ताक्षर किया मैं आपका विरोध नही करता लेकिन आप नरसिम्हा राव के द्वारा हमारे मठ पर या हम पर कोई अवांछित कदम न उठाए यह आपका पवित्र दायित्व होता है ....*

*लेकिन उन शंकराचार्यों ने मिलकर के मुझे तिरस्कृत करने का अभियान चलाया ऐसी परिस्थिति में यह एक विश्व्सतारिय षड्यंत्र समझना चाहिए ......अगर उन शंकराचार्यों का हाथ नही था तो वो आज तक बोलते क्यों नही उसके विरोध में......जब वह नकली होकर के कांग्रेस का प्रचार कर रहा है तो जो मान्य जोशी , द्वारका और श्रंगेरी पीठ के शंकराचार्य अपने को ख्यापित करते है वे क्यों नही कहते की इस अराजक तत्व का निग्रह करना चाहिए !*

*एक पुलिस इन्स्पेक्टर भी नकली होकर के एक या दो दिन से अधिक नही घूम सकता*

*.....आपको मालूम है सोनिया जी और आडवाणी जी के दामाद नकली हो कर घूम रहे थे दोनों अरेस्ट कर लिए गए ......यह वह भारत है जहा नेताओ के दामाद नकली होकर घुमे तो अरेस्ट कर लिए जाते है ....... और शंकराचार्य का पद जो की पोप जी से व् दलाई लामा जी के पद से भी ऊँचा और प्राचीन है ....... लेकिन एक व्यक्ति पुरी का नकली शंकराचार्य बन पुरे विश्व से धन लुट रहा है ......अराजकता का परिचय दे रहा है ....उस पर ऊँगली उठाने वाला माई का लाल भारत में परिलक्षित न होता हो इससे अधिक देश का विनाश क्या होगा ......... यह देश कितना पतित हो चूका है इसका प्रमाण इससे अधिक क्या होगा*

*........जब कोई नकली पोप नही , कोई नकली दलाई लामा नही , लेकिन पुरी पीठ जो सबसे मान्य है क्योकि मै कहना चाहता हूँ ....कि भगवान शंकराचार्य जी के प्रथम शिष्य श्री पद्मपादाचार्य जी उनका यह स्थान है ....इतना ही नही आपको पता होगा की वैदिक मेथेमेटिक्स यहाँ के १४३ वे शंकराचार्य श्री भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज ने विश्व को दिया और आपको संभवतः पता न हो ....*

*भगवान की कृपा से ९ ग्रन्थ मेरे गणित पर है शून्य व् एक को लेकर ......लगभग ९०० पृष्ठों की सामग्री मैंने गणित पर विश्व को दी है ......ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी , केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी ,दक्षिण कोरिया , पश्चिम कोरिया के व्यक्ति गणित की पहेली सुलझाने मेरे पास आते है .........५ मई १९९९ को विश्व बैंक के अध्यक्ष ने एक अंग्रेज महिला को प्रतिनिधि बनाकर भेजा और विश्व बैंक की जितनी समस्या थी उनका समाधान मुझसे करवाया .... जब मैंने समाधान कर दिया तो वह महिला फुट-फुट कर रोने लगी कि भारत को क्या हो गया है कि आप जैसी मेधाशक्ति का उपयोग करके वह विश्व गुरु नही बनना चाहता .... उस महिला का नाम मेरे ग्रंथो में लिखा हुआ है।*

*..... और जो यह सयुक्त राष्ट्र संघ है उसने भी हमसे मार्गदर्शन प्राप्त किया तो जिस व्यक्ति की विश्वस्तर पर ख्याति हो उस व्यक्ति को इतनी यातना दी जाती हो और कोई भी शासन तंत्र ऐसे अराजक तत्व के आगे मुह न खोलता हो ......कोई अपने दायित्व का निर्वाह न करता हो इससे सिद्ध है कि भारत घोर परतंत्र है.... घोर परतंत्र है !*

*....मुगलों के शासन काल में भी , क्रिश्चियनो के शासन काल में भी नकली शंकराचार्य नही था ......आज मान्य पीठो को तिरस्कृत करने के लिए नकली शंकराचार्य बनाए जाते है और असली शंकराचार्य जो अपने को मानते है व् कहते है वह किसी राजनैतिक दल का प्रचार करने के लिए ताल ठोककर सामने आते है...... इससे अधिक देश का पतन क्या हो सकता है !!*

🚩 जय जगन्नाथ 🚩 हर हर महादेव 🚩
#राम_मंदिर_षडयंत्र #ध्यानपूर्वक_पढ़ें

जगतगुरु शंकराचार्य पुरीपीठाधीश्वर स्वामी निश्चलानंदसरस्वती जी महाराज :
पत्रकार : स्वामीजी एक सवाल उठा था पी.वी.नरसिम्हाराव के समय में कि उन्होंने आपको मारने के लिए सुनियोजित षड्यंत्र बनाया और उसी समय जो सहयोग नरसिम्हा राव का राम मन्दिर को लेकर था उसमे आपने सहयोग नही किया , इसको लेकर क्या विवाद है ?

शंकराचार्य जी : ऐसा है वस्तु स्थिति यह है की जब श्री अयोध्या में जिसको उस समय प्रायः बाबरी मस्जिद कहा जाता था और मैंने सबसे पहले कहा की मंदिर के उसमे लक्षण है , गुम्बद है , मीनारे नही है , इसका मतलब वह मंदिर ही है उसे लांछित मंदिर या विवादस्पद ढांचा कहना चाहिए न कि बाबरी मस्जिद जब ढांचा विद्यमान था रामलला उसी मंदिर में प्रतिष्ठित थे और मै शंकराचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया जा चूका था
तब नरसिम्हा राव जी के दो दूत , माध्यम मेरे पास वृन्दावन में आए और लगभग ढाई घंटे तक उनमे से एक लगातार बोलते रहे और लगभग ढाई घंटो में उन्होंने इस प्रकार का भाव प्रकट किया जिससे मै लोटपोट हो जाऊ , प्रलोभन के वशीभूत हो जाऊ , तब मैंने देखा की वो थक गए है तब मैंने उनसे कहा कि आप क्या चाहते है , उन्होंने कहा नरसिम्हा राव जी का आपके लिए सन्देश है की आपके प्रति ६५ करोड़ रूपए आप लीजिए और एक सेकेटरी ,सचिव आपको सरकार की और से दिया जाएगा उन रुपयों का उपयोग अयोध्या में मंदिर बनाने में हो
पर मैंने कहा जब विवादस्पद ढांचा वहा पर विद्यमान है और वस्तुतः रामलला का जन्म स्थल स्कन्द पूरण के अनुसार वही सिद्ध होता है स्कन्द पूरण में जो राम जन्म भूमि का चित्रण किया गया है उसके आधार पर वही स्थल है जहा उस समय वह ढांचा था ऐसी परिस्थिति में आप मंदिर अतिरिक्त कही बनाएँगे या वही बनाएँगे ,
तो उसे हम बाबरी मस्जिद ही कहेंगे क्या ?
यह मै नरसिम्हा राव जी से उत्तर चाहता हूँ , एकांत की बात है और आप सार्वजानिक रूप से पूछ रहें है

तो उन माध्यमो ने मुझ से कहा , कि नरसिम्हा राव जी को यह पता था की आप यह प्रशन कर सकते है तो उन्होंने धेर्य पूर्वक कहा है की चूँकि आप किसी राजनैतिक दल के नही है आप श्री राम मंदिर के नाम पर खड़े होंगे तो मुस्लिम तंत्र जिसे मैंने अनुकूल कर रखा है वो भी राम मंदिर के पक्ष में हो सकता है अतः उस ढांचे को आर्थात जिसे बाबरी मस्जिद कहा जाता है हटाकर के वही राम मंदिर बने ऐसी हमारी भावना है , उसमे आप खड़े हो जाइए ! उसके बाद मैंने कहा मुझे पता है कि यह राजनैतिक चाल है मंदिर,मस्जिद साथ में बनाने की योजना है , उसमे मै निमित्त नही हो सकता , न्याय का ,मै पक्षधर हूँ बाबर बहुत बाद में हुए रामलला लाखो वर्ष पुराने है और वे करोडो अरबो प्राणियों की आस्था के केंद्र है , वहा पर मै मंदिर ही देखना चाहता हूँ और कुछ नही !

इसके बाद कालांतर में ढाचा टुटा जैसा की आप लोगो को पता है तब फिर उनके दूत आए , मै संक्षेप में ही कहना चाहता हूँ , क्योकि आपने कहा मारने की योजना , मरवाने की योजना नरसिम्हा राव ने की तो स्पष्टीकरण की आवश्यकता है की वस्तु स्थिति क्या है !
लगभग १०-२० बार उनके माध्यम मेरे पास भेजे गए , पुरी में वृन्दावन में एवं अन्य स्थलों पर आते रहे , अंतिम चरण में यह हुआ की नरसिम्हा राव ने एक वैष्णव संत को मेरे पास वृन्दावन में भेजा ५-१० कार भी भेजी मुझे दिल्ली लाने के लिए अन्य शंकराचार्य मेरे अतिरिक्त प्रमाणिक शंकराचार्य सब उन दिनों दिल्ली में थे नरसिम्हा राव जी की प्रेरणा से , और मुझसे कहा गया कि नरसिम्हा राव जी यह चाहते है की आप वहा पर आवें और मिलकर के राम मंदिर बनाने के ऊपर विचार करें और यदि आप रामालय ट्रस्ट उस समय बन चूका था नरसिम्हा राव जी की प्रेरणा से उसमे मान्य श्रंगेरी , द्वारका , व् जोशी मठ के शंकराचार्य के अतिरिक्त बहुत से वैष्णवाचार्यो ने भी हस्ताक्षर किया था
मैंने मना कर दिया था
मुझसे वह वैष्णव संत जी ने कहा की नरसिम्हा राव जी का यह सन्देश है मानते है या नही ....
मैंने कहा मै राष्ट्र को धोखा नही दे सकता ,माता-पिता-गुरु और पीठ को कलंकित नही कर सकता मै पूज्य स्वामी श्री करपात्री जी महाराज का कृपा पात्र शिष्य हूँ , मंदिर, मस्जिद दोनों एक साथ बने मै इसका पक्षधर कभी नही हो सकता हस्ताक्षर बिलकुल नही कर सकता और शासन तंत्र आपके हाथ में है , आप जो बनाना चाहते है बनाइए मै रोकने के लिए नही जाता लेकिन मै हस्ताक्षर कथमपि नही करना चाहता

उसके बाद मुझसे यह कहा गया की यदि आप हस्ताक्षर करते है तो सोने चांदी से आपका मठ भर दिया जाएगा और आप हस्ताक्षर नही करते है तो धन , मान , और प्राण आपके संकट में पड़ जाएँगे और शासन तंत्र कुछ भी आपके प्रति कदम उठा सकता है !

मैंने इसका उत्तर दिया कि यदि नरसिम्हा राव जी का यही भाव है तो वे पूरी शक्ति लगाकर धन तो मेरे पास है नही हाँ मान अवश्य है और प्राण भी है जीवित व्यक्ति हूँ इसलिए प्राण और प्रतिष्ठा को नष्ट करने में पूरी श
क्ति लगा दें मै उनके विरोध में एक शब्द भी नही बोलूँगा और देखता हूँ विजय किसकी होती है , यह घटना है !

उसके बाद बहुत सा प्रयास किया गया , मुझे श्रंगेरी बुलाया गया श्रंगेरी के मान्य शंकराचार्य ने , जोशी मठ और द्वारका मठ के शंकराचार्य को भी बुलाया , कांची जो की प्रतिष्ठित मठ है वहा के आचार्य को भी बुलाया गया अंत में बहुत प्रयास किया गया और यहाँ पर गोवर्धन मठ में श्रंगेरी के शंकराचार्य इस मठ में एक सौ शिष्यों के साथ तीन दिनों तक विद्यमान रहे , मुझसे अनुरोध करते रहे प्रेमपूर्वक की आप हस्ताक्षर कर दीजिए , मैंने कहा संभव नही यह घटना है....

उसके बाद जो प्रक्रिया हुई उससे बिलकुल स्पष्ट हो गया की इस पीठ को नष्ट करने के लिए और मुझे हर तरह से संकट में डालने का केन्द्रीय शासन तंत्र की और से प्रयास हुआ !
उसी सन्दर्भ में प्रयाग में कुम्भ के अवसर पर जब मै प्रयाग से आ गया , पुरी की और था , अन्यत्र मेरी यात्रा का कार्यक्रम बन गया था , रात्रि के बारह बजे चन्द्र स्वामी के शिविर में अयोध्या में हनुमान गढ़ी के जो महंत जी है मान्य ज्ञानदास जी उन्होंने अपने एक युवक लांछित , अवांछित शिष्य को वैष्णव तिलक मिटाकर के पुरी के शंकराचार्य के रूप में ख्यापित किया और दुसरे दिन ही विश्वस्तर पर उस व्यक्ति को पुरी के शंकराचार्य के रूप में प्रतिष्ठित व् ख्यापित किया गया

उसके बाद म.प्र.उस समय छतीसगढ़ सहित था के मुख्यमंत्री , जो भी रहे हो पता तो चल ही जाएगा , उनके द्वारा और कांग्रेस के यूथ प्रेसिडेंट बिट्टा के द्वारा और नरसिम्हा राव के एक आदमी जो की आईएस अफसर व् आध्यात्मिक सलाहकार शर्मा जी के द्वारा विश्वस्तर पर उस व्यक्ति को पूरी के शंकराचार्य के रूप में ख्यापित किया !
उस व्यक्ति के द्वारा मेरे अपहरण का पूरा प्रयास भी किया गया यहाँ के फोन पर भी अभद्र चुनोतिया दी गयी , उस के बाद से अब तक नरसिम्हा राव के न रहने पर भी उस व्यक्ति को लांछित व्यक्ति को विश्वस्तर पर आज भी पुरी के शंकराचार्य के रूप में ख्यापित किया जा रहा है , आर्थिक दृष्टि से भी वह व्यक्ति करोडो रूपए कमा रहा है साथ ही विश्वस्तर का षड्यंत्र है , हुर्रियत के नेता उसके अनुगामी और पोषक है , यह बात विश्वस्तर पर विदित है

उल्फा जो की प्रतिबंधित है उसके सरगना उसके शिष्य है और आसाम के मुख्यमंत्री उसके शिष्य है वो उसके पक्ष में पुरी में पत्रकार वार्ता कर चुके है , इतना दुस्साहस एक मुख्यमंत्री के द्वारा किया गया है एक कांग्रेसी मुख्यमंत्री के द्वारा , इतना ही नही मै एक संकेत करना चाहता हूँ , क्रिश्चियन तंत्र पूरा उसके साथ सहयोग के समान प्रस्तुत है और मओवादियो को भी उसने अपने अनुकूल कर रखा है !
एक और संकेत , देखीए माघ माह में मै प्रयाग में था , गोवर्धन मठ पुरी के वरिष्ठ शंकराचार्य के नाम से उसका बोर्ड लगा था , मेरे पास कमिश्नर इलाहाबाद प्रयाग , मेला अधिकारी , उप मेला अधिकारी तीनो एक साथ आए

मैंने कहा यह सब क्या हो रहा है , तो उन्होंने कहा की आप असली है हम जानते है लेकिन हमारी लाचारी है शासन तंत्र के आगे झुके है , इसका मतलब यही हुआ , इसी प्रकार वहा के एक संसद मेरे पास आए मैंने उनसे कहा की आप लोगो के शासनकाल में यह क्या हो रहा है , लेकिन उन्होंने भी लाचारी व्यक्त की , और एक आजम खां नामक सपा के मंत्री कुम्भ मेला प्रभारी , उस व्यक्ति के यहाँ जाकर भोजन करते थे और सौ से अधिक मुस्लिम सज्जन ..प्रतिष्ठित कहे या अराजक कहे उन व्यक्तियों के बिच बुलाकर उसके साथ गोष्ठी करते थे , इस प्रकार इस पीठ को लज्जित करने का , तिरस्कृत करने का पूरा प्रयास किया जा रहा है !

मै जब रामजन्म भूमि आदि पर कुछ बोलता हूँ तो केंद्रीय व् प्रांतीय शासन तंत्र द्वारा मेरा वह वक्तव्य प्रतिबंधित कर दिया जाता है और वह धर्म के विरुद्ध , राष्ट्र के विरुद्ध जब बोलता है तो पुरे विश्व में उसका प्रसारण किया जाता है , इस यातना पूर्ण परिस्थिति में मै अपने पद के दायित्व का निर्वाह कर रहा हूँ !

पत्रकार : स्वामी जी आप क्या मानते है एक नकली शंकराचार्य घूम रहा है , जैसा आप बोल रहे है तो सरकार कोई अंकुश नही लगा रही या कोई साजिश है ??

शंकराचार्य जी : जब सरकार के द्वारा खड़ा किया गया है तो सरकार क्यों उसके ऊपर नियंत्रण करे और सबसे बड़ी बात यह है की रामालय ट्रस्ट में मैंने हस्ताक्षर नही किया और मैंने कहा की मै अपने विवेक का परिचय देता हूँ , आप शंकराचार्यों को हस्ताक्षर करने का भाव आया आपने हस्ताक्षर किया मैं आपका विरोध नही करता लेकिन आप नरसिम्हा राव के द्वारा हमारे मठ पर या हम पर कोई अवांछित कदम न उठाए यह आपका पवित्र दायित्व होता है , लेकिन उन शंकराचार्यों ने मिलकर के मुझे तिरस्कृत करने का अभियान चलाया ऐसी परिस्थिति में यह एक विश्व्सतारिय षड्यंत्र समझना चाहिए , अगर उन शंकराचार्यों का हाथ नही था तो वो आज तक बोलते क्यों नही उसके विरोध में , जब वह नकली होकर के कांग्रेस क
ा प्रचार कर रहा है तो जो मान्य जोशी , द्वारका , और श्रंगेरी पीठ के शंकराचार्य अपने को ख्यापित करते है वे क्यों नही कहते की इस अराजक तत्व का निग्रह करना चाहिए !
एक पुलिस इन्स्पेक्टर भी नकली होकर के एक या दो दिन से अधिक नही घूम सकता
आपको मालूम है सोनिया जी और आडवाणी जी के दामाद नकली हो कर घूम रहे थे दोनों अरेस्ट कर लिए गए , यह वह भारत है जहा नेताओ के दामाद नकली होकर घुमे तो अरेस्ट कर लिए जाते है और शंकराचार्य का पद जो की पोप जी से व् दलाई लामा जी के पद से भी ऊँचा और प्राचीन है , लेकिन एक व्यक्ति पुरी का नकली शंकराचार्य बन पुरे विश्व से धन लुट रहा है , .अराजकता का परिचय दे रहा है , उस पर ऊँगली उठाने वाला माई का लाल भारत में परिलक्षित न होता हो इससे अधिक देश का विनाश क्या होगा
यह देश कितना पतित हो चूका है इसका प्रमाण इससे अधिक क्या होगा

जब कोई नकली पोप नही , कोई नकली दलाई लामा नही , लेकिन पुरी पीठ जो सबसे मान्य है क्योकि मै कहना चाहता हूँ , कि भगवान शंकराचार्य जी के प्रथम शिष्य श्री पद्मपादाचार्य जी उनका यह स्थान है , इतना ही नही आपको पता होगा की वैदिक मेथेमेटिक्स यहाँ के १४३ वे शंकराचार्य श्री भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज ने विश्व को दिया और आपको संभवतः पता न हो ,
भगवान की कृपा से ९ ग्रन्थ मेरे गणित पर है शून्य व् एक को लेकर लगभग ९०० पृष्ठों की सामग्री मैंने गणित पर विश्व को दी है ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी , केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी ,दक्षिण कोरिया , पश्चिम कोरिया के व्यक्ति गणित की पहेली सुलझाने मेरे पास आते है , ५ मई १९९९ को विश्व बैंक के अध्यक्ष ने एक अंग्रेज महिला को प्रतिनिधि बनाकर भेजा और विश्व बैंक की जितनी समस्या थी उनका समाधान मुझसे करवाया , जब मैंने समाधान कर दिया तो वह महिला फुट-फुट कर रोने लगी कि भारत को क्या हो गया है कि आप जैसी मेधाशक्ति का उपयोग करके वह विश्व गुरु नही बनना चाहता , उस महिला का नाम मेरे ग्रंथो में लिखा हुआ है

और जो यह सयुक्त राष्ट्र संघ है उसने भी हमसे मार्गदर्शन प्राप्त किया तो जिस व्यक्ति की विश्वस्तर पर ख्याति हो उस व्यक्ति को इतनी यातना दी जाती हो और कोई भी शासन तंत्र ऐसे अराजक तत्व के आगे मुह न खोलता हो , कोई अपने दायित्व का निर्वाह न करता हो इससे सिद्ध है कि भारत घोर परतंत्र है , घोर परतंत्र है !

मुगलों के शासन काल में भी , क्रिश्चियनो के शासन काल में भी नकली शंकराचार्य नही था , आज मान्य पीठो को तिरस्कृत करने के लिए नकली शंकराचार्य बनाए जाते है और असली शंकराचार्य जो अपने को मानते है व् कहते है वह किसी राजनैतिक दल का प्रचार करने के लिए ताल ठोककर सामने आते है
इससे अधिक देश का पतन क्या हो सकता है !!

!!हर हर महादेव !!
शिवावतार आद्यगुरु शंकराचार्यजी पर पुरी के जगद्गुरु शंकराचार्यजी का ऐतिहासिक लेख

------ पूरा अवश्य पढ़ें
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योग से ही भगवत् पाद आदि शंकराचार्य ने भारतवर्ष में चार पीठों की स्थापना की। ईसा से 507 वर्ष पहले भारत में आदि शंकराचार्य का आविर्भाव (जन्म) हुआ था।

वस्तु स्थिति यही है, हमारे सामने अकाट्य प्रमाण है, जिसके सामने सारे तर्क निष्फल हैं, कि जब आदि शंकराचार्य का आविर्भाव भारत में हुआ था तब इस्लाम और ईसाई दोनों पंथ और मत का कोई अस्तित्व नहीं था।

आज धरती पर जो भी भू-भाग है, वो उस समय सनातन संस्कृति से आच्छादित हो चुका था।

पूरे विश्व की राजधानी भारत को स्थापित करते हुए, आदि शंकराचार्य ने चारधाम पीठों की स्थापना की।

उन्होंने भले ही भारत के चार कोनों में शंकराचार्य पीठों की स्थापना की हो, लेकिन सनातन धर्म के शासन का क्षेत्र पूरे विश्व को ही माना।

बौद्ध सम्राट सुधन्वा जो कि युधिष्ठिर की वंश परंपरा के थे, बौद्ध पंडितों और भिक्षुकों के संपर्क में आकर वे बौद्ध सम्राट के रुप में ख्याति प्राप्त होकर वे शासन कर रहे थे। सनातन वैदिक आर्य हिंदु धर्म का दमन कर रहे थे।

तब आदि शंकराचार्य ने उनके हृदय को शुद्ध किया और सार्वभौमिक सनातन हिंदु धर्म मूर्ति के रूप में उन्हें फिर प्रतिष्ठित किया।

उन्हें पथभ्रष्ट होने और अन्य राजाओं पर भी शासन करने के लिए आदि शंकराचार्य ने चार दिशाओं पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण में चार धाम पीठों की स्थापना की।

इसमें से पूर्व और पश्चिम की जो पीठें हैं वे समुद्र के तट पर हैं।

भौगोलिक दृष्टि से भगवान शंकराचार्य ने बद्रीनाथ में ज्योतिर्मठ की स्थापना की, जो पर्वत माला के बीच में है। रामेश्वर के श्रंगेरी क्षेत्र जो इस समय कर्नाटक में है, वहां उन्होंने मठ की स्थापना की।

उत्तर-दक्षिण के मठ पर्वत माला के बीच हैं और पूर्व-पश्चिम के मठ समुद्र किनारे।

चारों वेद और छह प्रकार के शास्त्र या कह सकते हैं 32 प्रकार की विद्याओं के प्रभेद और 32 कलाओं के प्रभेद, सबके सब सुरक्षित रहें, इसलिए एक-एक वेद से संबद्ध करके एक-एक शंकराचार्य पीठ की स्थापना की।

जैसे ऋग्वेद से गोवर्धन पुरी मठ (जगन्नाथ पुरी), यजुर्वेद से श्रंगेरी (रामेश्वरम्), सामवेद से शारदा मठ (द्वारिका) और अथर्ववेद से संबध्द ज्योतिर्मठ (बद्रीनाथ) है।

ब्रह्मा के चार मुख हैं, पूर्व के मुख से ऋग्वेद. दक्षिण से यजुर्वेद की, पश्चिम से सामवेद और उत्तर से अथर्ववेद की उत्पत्ति हुई है। इसी आधार पर शंकराचार्य ने चार पीठों की स्थापना की और उनको चार वेदों से जोड़ा है।

संन्यासी अखाड़े और परंपरा तो भारत में पहले भी थी, लेकिन आदि शंकराचार्य ने इन दशनामी संन्यासी अखाड़ों को भौगोलिक आधार पर विभाजित किया। दशनामी अखाड़े जिनमें सन्यासियों के नाम के पीछे लगने वाले शब्द से उनकी पहचान होती है।
वन, अरण्य, पुरी, भारती, सरस्वती, गिरि, पर्वत, तीर्थ, सागर और आश्रम, ये दशनामी अखाड़ों के संन्यासियों के दस प्रकार हैं। आदि शंकराचार्य ने इनके नाम के मुताबिक ही इन्हें अलग-अलग दायित्व सौंपे।

जैसे, वन और अरण्य नाम के संन्यासियों को, जो पुरी पीठ से संबद्ध है, इन्हें आदि शंकराचार्य ने ये दायित्व दिया कि हमारे वन (बड़े जंगल) और अरण्य (छोटे जंगल) सुरक्षित रहें, वनवासी भी सुरक्षित रहें, इनमें विधर्मियों की दाल ना गले।

पुरी, भारती और सरस्वती ये श्रंगेरी मठ से जुड़े हैं, सरस्वती सन्यासियों का दायित्व है हमारे प्राचीन उच्च कोटि के शिक्षा केंद्र, अध्ययन केंद्र सुरक्षित रहें, इनमें अध्यात्म और धर्म की शिक्षा होती रहे। भारती सन्यासियों का दायित्व ये है कि मध्यम कोटि के शिक्षा केंद्र सुरक्षित रहें, यहां विधर्मियों का आतंक ना हो।

पुरी सन्यासियों का दायित्व तय किया कि हमारी प्राचीन आठ पुरियों जैसे अयोध्या, मथुरा और जगन्नाथपुरी आदि सुरक्षित रहें। तीर्थ और आश्रम नाम के संन्यासी जो द्वारिका मठ से सम्बद्ध हैं, तीर्थ सन्यासियों का दायित्व तीर्थों को सुरक्षित रखना और आश्रम सन्यासियों का काम हमारे प्राचीन आश्रमों की रक्षा करना था।

कुछ सालों पहले समुद्र के रास्ते से कुछ आतंकियों ने भारत वर्ष में घुसकर आतंक मचाया था।

ये आदि शंकराचार्य की दूरदर्शिता ही थी कि उन्होंने ज्योतिर्मठ (बद्रीनाथ) से सम्बद्ध सागर सन्यासियों को समुद्र सीमाओं की रक्षा का दायित्व दिया था।

सेतु समुद्रम के कारण हमें ईंधन प्राप्त हो रहा है, इसी से समुद्र का संतुलन है, राम सेतु के टूटने से रामेश्वर का ज्योतिर्लिंग भी डूब जाएगा।

यूपीए सरकार के समय इसे तोड़ने के प्रस्ताव भी बन रहे थे। संतों ने आगे आकर इसे रोका।
पुरी शङकराचार्य महाभाग के अमृत वचन

**********************

गौ हत्या बंद हो ...........लेकिन हो रही है बंद क्या ?

तो क्या हमारी प्रार्थना निरर्थक जा रही है क्या ?

प्रार्थना का एक रहस्य बता दें ...प्रभुप्रदत्त – प्राप्त विवेक का समादर करो , अभिमान मत करो...... लेकिन जब कोई प्राप्त शक्ति का उपयोग नही करता और भगवान् से प्रार्थना करता है तो भगवान् बहरे हो जाते है ,.....अरे जितनी शक्ति भगवान् ने दी उसका उपयोग कर और उसका अभिमान मत कर ....जो अपूर्णता है उसके लिए भगवान् से प्रार्थना कर .........हे प्रभु यह जो शक्ति है आपसे ही मिली है ऐसी कृतज्ञता प्रकट करो तो प्रार्थना सफल होगी !

नहीं तो – बहेलिया आवेगा , जाल बिछावेगा , दाना डालेगा .....फसना मत ......
सबसे पहले यह गीत बिना तबला , हारमोनियम के किसने गाया .....नेताओ ने ....... बहेलिया आवेगा , जाल बिछावेगा , दाना डालेगा .....फसना मत .....और सबसे पहले वे फँस गए ......गोहत्या बंद के नाम पर !

हमारे गुरुदेव को गोहत्या बंद के लिए आगे करके जो साधु वेषधारी व्यक्ति आया था वही इंदिरागांधी से मिलकर हमारे महाराज आदि पर प्रहार करवाया ......अब वह करोडो पति बना हुआ है , तीन बार नाम बदल चुका है तब भी वह वृन्दावन में आए तो लगेगा इससे बड़ा गोभक्त विश्व में नही होगा !

गायो को कटवाने में जिन धनियों का हाथ है .....वही गौशाला में जाकर दो हजार का दान देकर दानवीरों में भी अपना नाम लिखवा लेते है .........आखिर प्रार्थना सुनी भी जाए तो कब .....प्राप्त शक्ति का विनियोग करते है क्या गोरक्षा के लिए ....नही न !

भगवान् राम ने सुग्रीव से कहा – देख , बाली को तो मै मारूँगा लेकिन युद्ध के लिए तो तुझे ही जाना होगा ....एक चोट तो खानी पड़ेगी ......समझ गए .....तो शंकराचार्य या अन्य कोई सातवे आसमान की छड़ी घुमा दे और आप हम आराम से पड़ें रहें और सब काम हो जाएं .......ऐसा कभी नही होता !

हमने पुरी के राजा से कह दिया – महाभारत में लिखा है ....जो क्षत्रिय युद्ध से डरता है पृथ्वी उसे निगल लेती है ......जो हिन्दू अपने आदर्श व् आस्तित्व की रक्षा के लिए कटिबद्धता का परिचय नही देता ......जहाँ समर्थ है वहां भी सहयोग नही करता और कहता है सब भगवान् करेंगे ..........तो भगवान् की दृष्टि में वह दण्ड का पात्र हो जाता है तथा भगवान् उसके इस छल को सहन नही कर पाते ........ मोहि कपट छल छिद्र न भावा .....!

दो ही बात है ......गोहत्या बंद हो , यह कहना हम कब बंद करेंगे ........एक तो गाय न रहें ....अब तो लगता है दूसरा पक्ष ज्यादा प्रबल हो रहा है ........पहला पक्ष क्या है ....गोहत्या न हो , तो हम क्यों कहे गोहत्या बंद हो ....जीवित है तभी तो कह रहे है न ..........दूसरा पक्ष इतना प्रबल लग रहा है यह जर्सी आदि रहेंगी , देशी गाय नही रहेंगी तो क्या कहेंगे गोहत्या बंद हो ?

लेकिन गोहत्या बंद हो कह भी देते है और गुप्त अथवा प्रकट हाथ भी होता ही है ........आप बुरा न माने ...इसी वृन्दावन धाम में .....एक संत के यहाँ मुह से निकल गया ......सारी गाय आपके यहाँ जर्सी है और आप भागवत की कथा कहते है ....गोविन्द जय जय , गोपाल जय जय का कीर्तन करवाते है ...क्या है यह तमाशा ....
उन्होंने बुलाना और मुह देखना ही बंद कर दिया जैसे हमने अपराध कर दिया हो .....अरे भागवत के पंडितो के यहाँ भी यह हाल होगा तो कैसे क्या होगा .....उड़ियाबाबा के ट्रस्ट में मैंने कह दिया मेरा नाम इस पर से हटा दो... क्या है यह सब ? ज्यादा दूध के नाम पर ........विदेशो में देशी नस्ल की गाय से १२० लीटर दूध लिया जा रहा है , क्या वह अनुसन्धान भारत में नही हो सकता ......गोविन्द जय जय कहेंगे और पालेंगे जर्सी ....तो क्या देशी गाय केवल काटने के लिए पैदा होती है ? इस बेईमानी से क्या दशा होगी !
इसलिए आत्मनिरीक्षण पूर्वक भगवान् से प्रार्थना करें !!

!! हर हर महादेव !!
पुरी शङकराचार्य महाभाग के अमृत वचन

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गौ हत्या बंद हो ...........लेकिन हो रही है बंद क्या ?

तो क्या हमारी प्रार्थना निरर्थक जा रही है क्या ?

प्रार्थना का एक रहस्य बता दें ...प्रभुप्रदत्त – प्राप्त विवेक का समादर करो , अभिमान मत करो...... लेकिन जब कोई प्राप्त शक्ति का उपयोग नही करता और भगवान् से प्रार्थना करता है तो भगवान् बहरे हो जाते है ,.....अरे जितनी शक्ति भगवान् ने दी उसका उपयोग कर और उसका अभिमान मत कर ....जो अपूर्णता है उसके लिए भगवान् से प्रार्थना कर .........हे प्रभु यह जो शक्ति है आपसे ही मिली है ऐसी कृतज्ञता प्रकट करो तो प्रार्थना सफल होगी !

नहीं तो – बहेलिया आवेगा , जाल बिछावेगा , दाना डालेगा .....फसना मत ......
सबसे पहले यह गीत बिना तबला , हारमोनियम के किसने गाया .....नेताओ ने ....... बहेलिया आवेगा , जाल बिछावेगा , दाना डालेगा .....फसना मत .....और सबसे पहले वे फँस गए ......गोहत्या बंद के नाम पर !

हमारे गुरुदेव को गोहत्या बंद के लिए आगे करके जो साधु वेषधारी व्यक्ति आया था वही इंदिरागांधी से मिलकर हमारे महाराज आदि पर प्रहार करवाया ......अब वह करोडो पति बना हुआ है , तीन बार नाम बदल चुका है तब भी वह वृन्दावन में आए तो लगेगा इससे बड़ा गोभक्त विश्व में नही होगा !

गायो को कटवाने में जिन धनियों का हाथ है .....वही गौशाला में जाकर दो हजार का दान देकर दानवीरों में भी अपना नाम लिखवा लेते है .........आखिर प्रार्थना सुनी भी जाए तो कब .....प्राप्त शक्ति का विनियोग करते है क्या गोरक्षा के लिए ....नही न !

भगवान् राम ने सुग्रीव से कहा – देख , बाली को तो मै मारूँगा लेकिन युद्ध के लिए तो तुझे ही जाना होगा ....एक चोट तो खानी पड़ेगी ......समझ गए .....तो शंकराचार्य या अन्य कोई सातवे आसमान की छड़ी घुमा दे और आप हम आराम से पड़ें रहें और सब काम हो जाएं .......ऐसा कभी नही होता !

हमने पुरी के राजा से कह दिया – महाभारत में लिखा है ....जो क्षत्रिय युद्ध से डरता है पृथ्वी उसे निगल लेती है ......जो हिन्दू अपने आदर्श व् आस्तित्व की रक्षा के लिए कटिबद्धता का परिचय नही देता ......जहाँ समर्थ है वहां भी सहयोग नही करता और कहता है सब भगवान् करेंगे ..........तो भगवान् की दृष्टि में वह दण्ड का पात्र हो जाता है तथा भगवान् उसके इस छल को सहन नही कर पाते ........ मोहि कपट छल छिद्र न भावा .....!

दो ही बात है ......गोहत्या बंद हो , यह कहना हम कब बंद करेंगे ........एक तो गाय न रहें ....अब तो लगता है दूसरा पक्ष ज्यादा प्रबल हो रहा है ........पहला पक्ष क्या है ....गोहत्या न हो , तो हम क्यों कहे गोहत्या बंद हो ....जीवित है तभी तो कह रहे है न ..........दूसरा पक्ष इतना प्रबल लग रहा है यह जर्सी आदि रहेंगी , देशी गाय नही रहेंगी तो क्या कहेंगे गोहत्या बंद हो ?

लेकिन गोहत्या बंद हो कह भी देते है और गुप्त अथवा प्रकट हाथ भी होता ही है ........आप बुरा न माने ...इसी वृन्दावन धाम में .....एक संत के यहाँ मुह से निकल गया ......सारी गाय आपके यहाँ जर्सी है और आप भागवत की कथा कहते है ....गोविन्द जय जय , गोपाल जय जय का कीर्तन करवाते है ...क्या है यह तमाशा ....
उन्होंने बुलाना और मुह देखना ही बंद कर दिया जैसे हमने अपराध कर दिया हो .....अरे भागवत के पंडितो के यहाँ भी यह हाल होगा तो कैसे क्या होगा .....उड़ियाबाबा के ट्रस्ट में मैंने कह दिया मेरा नाम इस पर से हटा दो... क्या है यह सब ? ज्यादा दूध के नाम पर ........विदेशो में देशी नस्ल की गाय से १२० लीटर दूध लिया जा रहा है , क्या वह अनुसन्धान भारत में नही हो सकता ......गोविन्द जय जय कहेंगे और पालेंगे जर्सी ....तो क्या देशी गाय केवल काटने के लिए पैदा होती है ? इस बेईमानी से क्या दशा होगी !
इसलिए आत्मनिरीक्षण पूर्वक भगवान् से प्रार्थना करें !!

!! हर हर महादेव !!
2024/09/23 06:32:06
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