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धर्म के मार्ग पर चल के जो अर्थ मिलता है उसका उपयोग और विनियोग अनर्थ में नहीँ होता।।
वक्ता : अनंतश्री जगतगुरु शंकराचार्य स्वामीश्री निश्चलानंद सरस्वती जी महाभाग।
जय गुरुदेव।।
हर हर महादेव। 💐💐
श्रीमज्जगद्गुरु-शङ्कराचार्य स्वामी निश्चलानन्दसरस्वती @govardhanmath महाराजके सान्निध्यमें १४ जुन से १८ जुन २०२० पर्यन्त सायं ६.३० से रात्रि ८.०० बजे तक विडिओ कान्फरेन्सके माध्यमसे वैज्ञानिक-संगोष्ठी समायोजित है।
जय जगन्नाथ 🚩
#पुरी_पीठाधीश्वर_जगतगुरु_शंकराचार्य_जी_का_७७वां_प्राकट्य_महोत्सव_राष्ट्रोत्कर्ष_दिवस_19_जून_2020_को

सनातन धर्म ध्वजा के परम संवाहक विश्व के महान विभूति अनंत श्री विभूषित गोवर्धन मठ पुरी पीठ के वे श्रीमद जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज के ७७वे प्राकट्य महोत्सव 19 जून को राष्ट्रोत्कर्ष दिवस के रूप में मंगलमय वातावरण में देशभर के विभिन्न प्रांतों में उत्सव पूर्वक मनाया जायेगा। कोरोनावायरस संकट की परिस्थिति में विशाल धर्मसभा सम्मेलन आदि कार्यक्रम संभव नहीं होने पर गोवर्धन पीठ पुरी में आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक संगोष्ठी का भव्यतम कार्यक्रम 14 से 19 जून को पूज्य पाद श्री शंकराचार्य महा भाग के पावन सानिध्य में निर्धारित किया गया है। सौभाग्य का विषय है। ऐसे महान विभूति के प्राकट्य महोत्सव के अवसर पर सोशल मीडिया गोवर्धन पीठ पुरी से संचालित यूट्यूब फेसबुक से आप सायंकाल 6:30 स 8:00 बजे रात्रि तक जगतगुरु शंकराचार्य जी का दर्शन एवं अद्भुत अमृतवाणी में मार्गदर्शन युक्त पावन संदेश आशीर्वचन श्रवण कर लॉकडाउन की स्थिति में अपने घर में ही सपरिवार सत्संग लाभ प्राप्त कर जीवन को धन्य बनाए।
ऐसे दिव्य पावन कार्यक्रम के माध्यम से सनातन धर्म संस्कृति का महत्व तथा रस रहस्य को दर्शन अध्यात्म एवं विज्ञान के दृष्टिकोण से समझने का महत्वपूर्ण संदेश विश्व हित की भावना से प्रसारित होगा। अतः आप सब सपरिवार ऐसे कल्याणकारी प्रवचनो को अवश्य श्रवण कर राष्ट्रोत्कर्ष अभियान से जोड़ने का प्रयास करें। आषाढ़ कृष्ण त्रयोदशी 19 जून को है। सर्वहित कल्याण की भावना से श्री रुद्राभिषेक शिव पूजन आराधना, सुंदरकांड पाठ, हनुमान चालीसा पाठ आदि के साथ गुरुदेव भगवान के द्वारा प्रदत संदेश के अनुसार पाठ जप वृक्षारोपण आदि के साथ विभिन्न सेवा प्रकल्प के माध्यम से कई कार्यक्रम सादगी पूर्ण वातावरण में अपने अपने घरों में सोशल डिस्टेंशिंग के नियमो का पालन करते हुए मनाए तथा सब मिलकर दिव्य आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त कर कोरोना वायरस संकट निवारण हेतु प्रार्थना प्रस्तुत करें।
*#पुरिपीठाधीश्वर_शंकराचार्य_स्वामी_निश्चलानन्द_सरस्वती_महाराज_जी#* का *#संक्षिप्त_परिचय#*
विश्वका हृदयस्वरूप इस देवभूमि भारत में श्रीमन्नारायण से प्रस्फुटित गुरुपरम्परा के दशवें स्थान पर ईसा पूर्व ५०७ यानी २५०७ वर्ष पहले एक ऐसे महान् विभूतिका प्राकट्य हुआ था जिन्होंने पूरे विश्वको अपने तेज ज्ञान के प्रकाशसे प्रकाशित किया तथा मूर्तिभञ्जकों द्वारा निरन्तर प्रहार झेल रही सनातन परम्पराको पुनर्जागृत किया । वह महान् विभूति कोई और नहीं बल्कि शिवावतार साक्षात् शंकर आद्य शङ्कराचार्य के रूप विख्यात साक्षात् शिवस्वरूप आचार्य शङ्कर थे । शिवावतार पूज्यपाद आद्य शङ्कराचार्य महाभाग ने अपने तेज ज्ञान-विज्ञान के प्रभावसे बौद्धगुरुओं तथा वैदिक कर्मकांड, विकृत तन्त्र शास्त्र और कापालिकों आदि विद्वानोंसे शास्त्रार्थ कर सनातन वैदिक आर्य धर्मकी दार्शनिक, वैज्ञानिक एवं व्यावहारिक धरातलपर सर्वोत्कृष्टता सिद्ध कर सनातन धर्म का विजय ध्वज फहराया । इसी सनातन धर्म व संस्कृति की रक्षा में चार वेदो के आधार पर सर्वोच्च आचार्य जगतगुरु पीठ स्थापित किया , उन्होंने पुरीमें ऋग्वेदसे सम्बद्ध पूर्वाम्नाय गोवर्द्धनमठ, दक्षिणमें यजुर्वेदसे सम्बद्ध दक्षिणाम्नाय शृङ्गेरी मठ, पश्चिममें सामवेदसे सम्बद्ध पश्चिमाम्नाय शारदामठ और उत्तरमें अथर्ववेदसे सम्बद्ध उत्तराम्नाय ज्योतिर्मठकी स्थापना की । उन्होंने चारों मठोंमें एक-एक शङ्कराचार्यको पदस्थापित किया ।

पूर्वाम्नाय गोबर्द्धनमठ पुरीके प्रथम शङ्कराचार्यके रूपमें आद्यशङ्कराचार्य महाभागने अपने प्रथम शिष्य पद्मपादाचार्य को अभिषिक्त किया । पुरी मठके वर्तमान श्रीमज्जगद्गुरु शङ्कराचार्य अनन्तश्री विभूषित स्वामी निश्चलानन्दसरस्वती महाभाग इस मठ की शङ्कराचार्य परम्परा के १४५ वें स्थान पर प्रतिष्ठित है । इस प्रकार वे श्रीमन्नारायण से प्रारम्भ गुरुपरम्परामें श्रीमन्नारायणके बाद १५५वें स्थान पर हैं ।

बिहारराज्यके मिथिलांचल स्थित तत्कालीन दरभङ्गा (वर्तमानमें मधुवनी) जिलान्तर्गत हरिपुर बक्सीटोल नामक ग्राममें आषाढ कृष्ण त्रयोदशी, बुधवार, रोहिणीनक्षत्र पाम सम्वत् २००० तदनुसार 30 जून 1943 ई.को श्रोत्रियकुलभूषण दरभङ्गा नरेशके राजपण्डित श्रीलालवंशी झा जी और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती गीता देवीको एक पुत्ररत्न प्राप्त हुआ जिनका नाम नीलाम्बर झा रखा गया । वही नीलाम्बर झा वर्तमान पुरीपीठाधीश्वर अनन्तश्रीविभूषित श्रीमज्जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी निश्चलानन्दसरस्वती महाभागके नामसे ख्यापित हैं ।

बालक नीलाम्बर में बाल्यकालसे ही अनेक विलक्षणताएँ दिखने लगीं । सोते हुए में विचित्र दृश्यका दर्शन होना, यह भाव उत्पन्न होना कि मैं मरनेव
ाला नहीं हूँ आदि आदि । मात्र ढाई वर्षकी आयुमें ही उन्हें भगवान् श्रीकृष्णके दर्शन प्राप्त हुए । वे पढ़ाईमें कुशाग्र बुद्धिके तो थे ही, साथ ही कबड्डी, कुश्ती, तैराकी तथा फुटबॉल आदि खेलोंमें भी वे अत्यन्त निपुण थे । १६ वर्षकी अवस्थामें आप संग्रहणी रोगसे ग्रसित हो गये । रोग निरन्तर बढ़ता गया । जीवनसे निराश होकर एक दिन वे अपने पिताके समाधिस्थल पर गये और विधिवत् दण्डवत किया । तत्पश्चात् वहाँ की मिट्टीका एक कण मुँहमें डाला और पिताजीसे प्रार्थना की कि या तो यह शरीर इसी समय स्वस्थ हो जाये या शव हो जाये । अचानक एक चमत्कार हुआ। किसी अदृश्य दिव्यशक्तिने आपको वेगपूर्वक उठा दिया । तत्काल आपका ध्यान नभोमंडलकी ओर गया जहाँ बड़ा ही विचित्र दृश्य दिखलायी पड़ा । नभोमण्डलमें पृथ्वीसे लगभग 10 किलोमिटरकी ऊँचाई पर वृत्ताकार पद्मासन पर बैठे, श्वेतवस्त्र और पगड़ी धारण किये दस हजार पितरोंने आपको दर्शन दिया और आपको उन सबोंकी अन्तर्निहित वाणी सुनाई दी कि संग्रहणी रोग दूर हो गया, अब घर लौट जाओ और निर्भय विचरण करो ।

आपकी प्रारम्भिक शिक्षा गांवमें हुई । उच्चविद्यालयकी शिक्षा अपने अग्रज श्री श्रीदेव झा के संरक्षणमें दिल्लीके तिबिया कॉलेजमें प्रारम्भ की । वहाँ आप कई सामाजिक, धार्मिक एवं शैक्षणिक संस्थाओंसे भी जुड़े । यह घटना उस समयकी जब आप दसवीं कक्षा विज्ञानके छात्र थे । जिस भवनमें आपका निवास था उसके पासमें ही दशहरेके अवसरपर रामलीलाका मंचन आयोजित था । एक रात्रि आप भवनकी छत पर टहलते हुए रामलीलाके मंचनका संवाद सुन रहे थे । प्रभु श्रीरामके वनवास जानेकी लीलाका प्रसङ्ग सूनते ही आपके मनमें यह प्रबल भाव उत्पन्न हुआ कि जब मेरे प्रभु भगवान् श्रीरामका वनवास हो गया तब मेरे यहाँ बने रहनेका कोई औचित्य नहीं है । मनमें प्रबल वैराग्य उत्पन्न हुआ और आप चुपचाप पैदल ही काशीके लिये प्रस्थान कर दिये ।

यात्राके ाढमसे आप नैमिषारण्य पहुँचे जहाँ परमपूज्य दंडीस्वामी श्रीनारदानन्द सरस्वतीजी महाराजके सम्पर्कमें आनेका संयोग सधा । पूज्य स्वामीजीने आपका नाम ध्रुवचैतन्य रखा । कालान्तरमें आप सर्वभूतहृदय धर्मसम्राट स्वामी करपात्रीजी महाभागके सम्पर्क आये । उनके द्वारा चलाये गये गोरक्षा अभियानमें भी आपने सािढय भूमिका निभायी । उस अभियानके अन्तर्गत 7 नवम्बर 1966 को दिल्लीमें आयोजित विशाल सम्मेलनमें भी आप शामिल हुए जिसमें पुलिसद्वारा छोड़े गये अश्रुगैसके कारण आप मूर्छित भी हो गये थे । 9 नवम्बर को आपको बन्दी वना कर 52 दिनों तक दिल्लीके तिहाड़ जेलमें रखा गया । वैशाख कृष्ण एकादशी, गुरुवार, पामसंवत् 2031 तदनुसार 18 अप्रेल 1974को हरिद्वारमें पूज्यपाद धर्मसम्राट स्वामी हरिहरानन्द सरस्वती जी महाराज (धर्मसम्राट् करपात्रीजी महाराज)के चिन्मय करकमलोंसे आपका सन्न्यास सम्पन्न हुआ । सन्यासके बाद उन्होंने आपका नाम निश्चलानन्द सरस्वती रखा और अब आप इसी नामसे पूरे विश्वमें जाने जाते हैं ।

पुरी मठके तत्कालीन पूर्वाचार्य पूज्यपाद श्रीमज्जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी निरञ्जनदेव तीर्थजी महाराजने माघ शुक्ल षष्ठी तदनुसार 9 फरवरी 1992को अपने करकमलोंसे आपको पुरीपीठके 1१४५वें श्री मज्जगद्गुरु शङ्कराचार्यके पदपर अभिषिक्त किया । इस महिमामय पद पर प्रतिष्ठित होनेके बाद आपने पदका उपभोक्ता न बनकर पदके उत्तरदायित्वका सम्यक् निर्वहन करनेका निर्णय लिया । सनातन धर्म तथा उसके प्रामाणिक मानबिन्दुओंकी रक्षा, राष्ट्रकी अखण्डता तथा विश्वकल्याणके लिये संघर्ष करनेका व्रत लिया ।

धर्मसम्राट श्रीकरपात्री महाराजके कृपापात्र शिष्य एवं पुरीमठके पूर्वाचार्य स्वामी श्रीनिरञ्जनदेवतीर्थजी महाराज द्वारा श्रीमज्जगद्गुरु शङ्कराचार्य पदपर अभिषिक्त स्वामी श्रीनिश्चलानन्दसरस्वतीजी महाराजने विश्वकल्याण एवं राष्ट्रप्रेमकी भावनासे भावित होकर व्यासपीठ एवं शासनतत्रका शोधन करने तथा कालान्तरसे विकृत एवं विलुप्त हो चुके ज्ञान-विज्ञानको परिमार्जित करने एवं पूर्ण शुद्धताके साथ पुन उद्भासित करनेका अपना लक्ष्य बनाया ।

अपने लक्ष्यकी सिद्धिके लिये महाराज श्रीने ‘पीठपरिषद'के अन्तर्गत ‘आदित्यवाहिनी', ‘आनन्दवाहिनी', ‘हिन्दुराष्ट्रसंघ', ‘राष्ट्रोत्कर्ष अभियान', ‘सनातन सन्तसमिति' जैसे संस्थाओंकी भी स्थापना की जिसका उद्देश्य है अन्योंके हितका ध्यान रखते हुए हिन्दुओंके अस्तित्व और आदर्शकी रक्षा, तथा देशकी सुरक्षा और अखण्डता । आपने समस्त प्रामाणिक एवं प्रमुख सनातन धर्माचार्योंको एक मंच पर लोनका भी अभियान चलाया । शिवावतार भगवत्पाद आदिशङ्कराचार्य महाभागके धर्मनियत्रित, पक्षपातविहीन, शोषणविनिर्मुक्त, सर्वहितप्रद सनातन शासनतत्रकी स्थापनाके लक्ष्यको साकार करनेके लिये पूज्यपाद द्वारा निरन्तर किये जा रहे प्रयासोंके अनेक उदाहरण भरे पड़े हैं । उनके जीवनका अनुशीलन करने पर स्वत स्पष्ट हो जाता
है कि उनका एक-एक कार्य अद्वितीय एवं राष्ट्रप्रेमका जीता-जागता प्रमाण है ।

श्रीरामजन्मभूमि पर भव्य राममन्दिर निर्माणके लिये राष्ट्रीय स्तरपर जो अभियान चला उसमें महाराजश्रीकी प्रमुख भूमिका रही । अयोध्यामें श्रीरामजन्मभूमि स्थलपर मन्दिर और मस्जिद दोनोंका निर्माण नहीं होने देनेका श्रेय एकमात्र पुरी पीठाधीश्वर श्रीमज्जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्दजी महाभागको ही जाता है । श्रीरामजन्मभूमि स्थलपर ही राममन्दिर और मस्जिद दोनोंका निर्माण करानेके लिये भारतके तत्कालीन प्रधानमत्री नरसिंह राव द्वारा गठित रामालय द्रष्ट पर महाराज श्रीके अतिरिक्त शङ्कराचार्योंने सहमति प्रदान करते हुए हस्ताक्षर कर दिया था । किन्तु विविध प्रकारके प्रलोभन तथा भय दिये जाने पर भी महाराज श्रीने हस्ताक्षर नहीं किया क्योंकि उनके चिन्तनके अनुसार वह राष्ट्रहित, धर्महित एवं चिरकालिक शान्तिके उद्देश्यके विपरीत था । महाराज श्रीने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि भारतमें कहीं भी बाबरके नामपर प्रतीकके रूपमें मस्जिदका निर्माण नहीं होगा। महाराज श्रीकी दूरदर्शिता एवं भयमुक्त निर्णयके कारण आज रामलला भले ही तंबूमें हैं लेकिन वहाँ मस्जिद बनानेकी प्रयास तो अबतक सफल नहीं पाया ।

जब भारत सरकारने भगवान् श्रीरामद्वारा निर्मित रामसेतुको तोड़नेका काम प्रारम्भ किया तो महाराज श्रीने स्पष्ट शब्दोंमें कहा कि जब रामसेतु टूट ही जायेगा तब यह शरीर रहकर क्या करेगा । उन्होंने रामसेतुकी रक्षा की भावनासे तीर्थराज प्रयाग और दिल्लीमें प्रचण्ड ाढान्तिको जन्म दिया । कालका पीठ दिल्लीमें, बैंगलोरमें तथा महाराष्ट्रके पण्डरपुरमें आयोजित कार्पामोंमें चतुष्पीठके मान्य शङ्कराचार्य सहित अन्य धर्माचार्यों तथा भक्तोंने भाग लिया तथा समर्थन प्रदान किया । महाराज श्रीने चीनकी सीमासे लेकर रामेश्वरम् तक की यात्रा की तथा रामेश्वरम्में 150 भक्तोंके साथ रामसेतुकी रक्षा हेतु अभियान चलाया और प्रार्थना की । उन्होंने इस सन्दर्भमें श्रीलंकाकी सरकार तथा संयुक्त राष्ट्रसंघसे भी सम्पर्क साधा था । सुब्रमण्यम् स्वामीको इस अभियानसे जोड़कर कानूनी स्तरपर भी अभियान चलाया । परिणाम यह हुआ कि अभी रामसेतु सुरक्षित है ।

विश्वमें व्याप्त आर्थिक विपन्नता तथा अराजकताके निवारणमें भी पुरी पीठाधीश्वरका योगदान अद्भुत है । 5 मई 1999को दिल्लीमें केण्टरबरी चर्च, इंग्लैण्ड और विश्वबैक द्वारा स्थापित वर्ल्ड फेथ डेवलपमेंट डायलौगकी प्रतिनिधि भेण्डिटिण्डलेने सन्ध्या 6से 8 बजे तक संसारमें व्याप्त आर्थिक विपन्नता और अराजकता आदिके निवारण विषयपर मार्गदर्शन लिया और महाराजश्री द्वारा बतलाये गये समाधानको अन्यत्र दुर्लभ बतलाते हुए आत्मविभोर होकर रोने लगी । यूनाइटेड नेशन वर्ल्ड पीस समिटमें महाराजश्रीने अपना सन्देश पुरी नरेश गजपति दिव्यसिंह देवजीके माध्यमसे अमेरिका भेजवाये थे जिसे सुनकर वहाँ उपस्थिति सभी देशोंके प्रतिनिधि अत्यन्त प्रभावित हुए ।

हिन्दुओंके प्रमुख मानबिन्दुओंकी रक्षाके लिये महाराजश्री निरन्तर प्रयत्नशील रहते हैं । माँ गङ्गाको प्रदुषणमुक्त, अविरल तथा स्वच्छ बनाने और इसकी रक्षा करने लिये महाराज श्रीने काशीमें ‘गङ्गा बचाओ' सङ्गोष्ठीकी थी जिसमें सात राज्योंके प्रतिनिधि शामिल हुए थे । इतना ही नहीं, गङ्गाको प्रदुषणमुक्त रखनेके उद्देश्यसे विश्वप्रसिद्ध पर्यावरण विशेषज्ञ जी.डी. अग्रवालको भी पूज्यपादने मार्गदर्शन दिया था ।

महाराज श्रीके मार्गदर्शनमें पुरीमठ द्वारा 22 प्रकारकी निशुल्क सेवाएँ सञ्चालित होती है जिसमें गोवर्द्धनगोशाला, औषधालय, मन्दिर, आवास, भोजनालय, वाचनालय, पुस्तकालय, समुद्र आरती, बच्चोंके लिये यज्ञोपवीतसे लेकर वेदविद्यालय तककी शिक्षा आदि प्रमुख है । इसके साथ ही वृन्दावन, काशी और प्रयागस्थित आश्रमोंमें भी भक्तोंको निशुल्क सेवाएँ उपलब्ध करायी जाती हैं।

पूज्यपाद श्री आदिशङ्कराचार्यके पदचिह्नों पर चलनेवाले पुरीके वर्तमान शङ्कराचार्य एक ऐसे आचार्य है जो सनातन मानबिन्दुओंकी रक्षाके लिये रात-दिन लगातार चिन्तन करते हैं तथा अपने चिन्तनके कार्यान्वयनके लिये बोटी-बोटी जलाते हुए अथक प्रयास करते रहते हैं । वे किसी व्यक्ति विशेषके पद, धन या ख्यातिके प्रभावमें आकर उसके निमत्रणको स्वीकार नहीं करते हैं, बल्कि समष्टिके कल्याणकी भावनासे सार्वजनिक रूपसे आयोजित कार्पामोंमें आमत्रित किये जाने पर भारत, नेपाल एवं भूटानकी सीमामें ग्रामीण तथा वनवासी क्षेत्रों सहित कहींभी जानेमें जरा भी नहीं हिचकते हैं । वर्ष 2016में वे सालके 365 दिनोंमें 248 दिन प्रवासमें रहे थे ।

राष्ट्रकी सुरक्षाके लिये भी पूज्यपाद अत्यन्त चिन्तित और प्रयत्नशील रहते है । देशके सैनिकोंका मनोबल बढ़ानेके लिये वे रजौरीमें जाकर ब्रिगेडियर रैंकके पदाधिकारियोंको सम्बोधित क
िये । जिस दिन भारतीय सेनाद्वारा भारत-पाक सीमा पर सर्जिकल स्ट्राइक किया जा रहा था उस दिन भी महाराज श्री बटालामें सैन्य पदाधिकारियों तथा सैनिकोंको सम्बोधित कर रहे थे । गोधराकाण्डसे आप सभी लोग परिचित हैं । इस घटनाके बाद सुरक्षाकी दृष्टिसे वहाँ नहीं जानेकी सलाह दिये जानेके बाद भी अपनी सुरक्षाकी जरा भी चिन्ता नहीं कर महाराज श्री उस जलती हुई ट्रेनको देखने वहाँ गये थे ।

लोगोंमें वैचारिक ाढान्ति लानेके उद्देश्यसे विगत कई वर्षोंसे महाराजश्री देशके प्रमुख वैज्ञानिक, तकनीकी, व्यावसायिक एवं अन्य विविध शिक्षण संस्थानों तथा अनुसन्धान केन्द्राsंमें विभिन्न विषयों पर प्रवचन और मार्गदर्शन कर रहे है । वेदविहीन विज्ञानके अन्धानुकरण तथा विकासके नाम पर विनाशके कगारपर पहुँच गये विश्वको वेदविज्ञान तथा वास्तव विकासके स्वरूपसे अवगत करानेके लिये इन विषयों पर महाराज श्रीके प्रवचन और मार्गदर्शनकी सर्वत्र प्रशंसा तो हो ही रही है, कहींसे भी किसी तरहकी नकारात्मक आलोचना नहीं निकल रही है ।

18 जनवरी 2016को चान्दीपुर, बालेश्वर, ओडिशा स्थित डी.आर.डी.ओ.में जहाँ मिसाइलका निर्माण एवं परीक्षण होता है और ‘मिसाइल मैन'के नामसे प्रसिद्ध पूर्वराष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुलकालाम जहाँके अध्यक्ष पदपर रह चुके थे, महाराजश्रीका वेद और विज्ञान विषय पर दिव्य प्रवचन हुआ । कार्पाममें उपस्थिति 165 वैज्ञानिक एवं अन्यान्य लोग महाराजश्रीके मिसाइल सहित अन्य दिव्यास्त्रोंसे सम्बन्धित वैज्ञानिक प्रवचन सुनकर आश्चर्यचकित हो गये । इस अवसर पर महाराजश्रीने यह भी आगाह किया कि वे जिन गूढ़ वैज्ञानिक-तकनीकि तथ्यों पर प्रकाश डालते हैं उनको समझने और आत्मसात करनेके लिये जिस मेधाशक्ति सम्पन्न एवं जिज्ञासु व्यक्ति की आवश्यकता है वैसे व्यक्ति अभी भारतमें प्रलक्षित नहीं हो रहे हैं, किन्तु विदेशी लोग कुछ-न-कुछ लाभ अवश्य उठा लिया करते हैं।

डी.आर.डी.ओ. में महाराजश्रीके उक्त मंगलमय पदार्पण और प्रवचनके लगभग डेढ़ वर्ष बाद एक वैज्ञानिक दीक्षान्त समारोहको सम्बोधित करनेके ाढममें वहाँके डाइरेक्टर विनयकुमार दासने यह रहस्योद्घाटन किया कि डी.आर.डी.ओ. में पुरीके शङ्कराचार्यके पदार्पणके बादसे उस समयतक एक भी मिसाइल परीक्षण असफल नहीं हुआ ।

25 नवम्बर 2016को अहमदाबादस्थित इसरोके चेयरमैन डॉ. कीरण कुमारकी उपस्थितिमें वहाँके हजारों वैज्ञानिकोंके बीच महाराजश्रीने विज्ञान विषयक सम्बोधन किया । इसके कुछ महीनों बाद ही इसरो द्वारा 104 उपग्रहोंका एक साथ सफल परीक्षण किया जो विश्वमें एक रेकर्ड बना ।

24 नवम्बर 2016 को ही सन्ध्यामें भारतके प्रमुख प्रबन्धन संस्थान इण्डियन इंस्टीच्युट ऑफ मैनेजमेंट (आई.आई.एम) अहमदाबादके प्राध्यापकों तथा अनुसन्धानकर्ताओंके बीच प्रबन्धन विषयपर सारगर्भित प्रवचन हुआ।

3 दिसम्बर 1016 को चार्टर्ड एकाउण्टेण्टस एसोसिएशन ऑफ इण्डिया, वेस्टर्न रीजन, मुम्बईके सदस्योंको दिव्य मार्गदर्शन दिया । नैशनल थर्मल पावर कारपोरेशन के पदाधिकारियोंको भी महाराजश्रीने उनके विषयके अनुरूप मार्गदर्शन दिया । जूनागढ़ कृषि विश्वविद्यालय, गुजरात एवं महाराणाप्रताप कृषि विश्वविद्यालय, उदयपुर, राजस्थानके कृषि वैज्ञानिकोंको भी कृषिविज्ञान पर संबोधित किये । इसके अतिरिक्त डी.ए. पाटिल युनिवर्सिटी, पुणे ; लखनऊ युनिवरर्सिटी, लखनऊ ; पिपुल्स युनिवरर्सिटी, भोपाल ; आई.ई.एस. कॉलेज भोपाल ; आई.टी.एम. युनिवरर्सिटी, ग्वालियर ; शिवाजी युनिवरर्सिटी, ग्वालियर ; महर्षि अरविन्दकॉलेज, जयपुर ; महिला महाविद्यालय जमशेदपुर Lovely Professional University Jalandhar सहित देशके अन्यान्य प्रमुख विद्यालयों, इंजीनियरिंग कॉलेजों, विश्वविद्यालयोंमें महाराजश्री वैज्ञानिक, तकनीकि गणित-योग आदि विषयोंपर प्रवचन एवं मार्गदर्शन कर चुके हैं ।

6 फरवरी 2017को झारखंडके जमशेदपुर स्थित एम.जी.एम. मेडिकल कॉलेजमें लगभग 300 डाक्टरों एवं चिकित्सा विज्ञानके छात्रों के बीच चिकित्सा विज्ञान एवं आध्यात्म विज्ञान पर पूज्यपादने बड़ा ही अद्भुत प्रवचन दिया । स्थिति यह बनी कि सनातन विज्ञानमें अन्तर्निहित चिकित्सा विज्ञानकी गहराई पर उपस्थित चिकित्सकगण विस्मित हो गये एवं भाव व्यक्त किये कि जहाँ आधुनिक चिकित्सा विज्ञानका अन्त होता है वहाँसे सनातन चिकित्सा विज्ञानका प्रारम्भ होता है।

26 मई 2017को इण्डियन इन्स्टीच्युट ऑफ टेकनोलौजी, बनारस हिन्दु युनिवर्सिटीमें इंजीनियरिंगके प्राध्यापकों, आविष्कारकर्त्ताओं एवं वैज्ञानिकोंके बीच महाराजश्रीका ‘महायत्रोंकी आधारशीला एवं उसके प्रचुर प्रयोगसे प्राप्त विभीषिका' विषयपर सारगर्भित प्रवचन हुआ ।

15 जून 2017को एसियाके सबसे बड़े हाईकोर्टके रूपमें प्रसिद्ध इलाहाबाद हाईकोर्टके बार काउनसिलमें जहाँ पूर्वप्रधानमत्री
इन्दिरा गांधीको प्रधानमत्री रहते हुए भी सम्बोधन करनेकी अनुमति नहीं मिली थी, न्याय तथा ‘भारतकी दशा और अपेक्षित दिशा' पर न्यायाधीशों एवं अधिवक्ताओंका मार्गदर्शन किया जो इलाहाबादमें विशेष चर्चाका विषय बन गया था । महाराजश्रीके प्रवचनसे प्रभावित होकर न्यायधीशों एवं अधिवक्ताओंका एक शिष्टमंडल दूसरे दिन महाराजश्रीका दर्शन करनेके लिये आया था तथा उनमेंसे कुछ लोगोंने महाराजश्रीसे विधिवत् दीक्षा भी ली थी।

महिलाओंके मानबिन्दुओंकी रक्षा एवं महिला सशक्तिकरणसे सम्बन्धित विषयोंपर महाराजश्रीने बनारसमें तथा राष्ट्रीय-माहेश्वरी-महिला-संघकी महिलाओंको पुरीमें सम्बोधित करते हुए सनातन परम्परामें महिलाओंके गौरवमय चतुर्दिक् महत्त्वको उद्भासित किया । साथ ही इस तथ्यकी ओर ध्यान आकर्षित किया कि जीवनके कुछ क्षेत्रोंमें नारियोंका अधिकार नहीं होना या प्रतिबन्ध होना भेद-भावमूलक या विद्वेषमूलक नहीं है बल्कि उनकी सुरक्षा और शील रक्षाके लिए है ।

महाराजश्री विज्ञानके पक्षधर हैं । उनका मानना है कि वैज्ञानिक, आध्यात्मिक और व्यावहारिक तीनों धरातलोंपर जो सही साबित हो वही अनुकरणीय है । आज विश्वमें विकास की ह़ेडमची है । लेकिन वेद-विहीन विज्ञानके अंधाधुन्ध अनुकरण और विकासके वास्तविक स्वरूपको वहीं समझ पानेके कारण पूरा विश्व विकासके नामपर विनाशके कगारपर पहुँच चुका है । इस तथ्यको ध्यानमें रखते हुए पुरी शङ्कराचार्य महाराज वेद-विहीन विज्ञानकी जगह वेद-सम्मत, शास्त्र-सम्मत, ज्ञान-विज्ञानके प्रचार-प्रसार और प्रयोगपर बल दे रहे हैं । विज्ञान और तकनीकके क्षेत्रमें ऐसा वैचारिक परिवर्तन लानेके उद्देश्यसे शङ्कराचार्यमहाराज विभिन्न वैज्ञानिक, तकनीकि संस्थानों सहित अन्य शिक्षणसंस्थानों विश्वविद्यालयों, प्राद्यौगिकी संस्थानों आदिमें दिव्यप्रवचनोंके द्वारा अपेक्षित मार्गदर्शन कर रहे हैं ।

14 सितम्बर 2017 को सन्ध्या 6 बजेसे 8 बजे तक इन्डियन इनस्टीच्युट और टेकनोलोजी कानपुरमें वेदविहीन विज्ञानके विनाशकारी परिणाम तथा वेदसम्मत विज्ञानके द्वारा वास्तविक विकासपर महाराजश्रीका दिव्य प्रवचन हुआ ।

30 नवम्बर 2017 डॉ. राजारमन्ना परमाणु अनुसन्धान केन्द्र, इन्दौरमें महाराजश्रीने परमाणु वैज्ञानिकोंके बीच परमाणु विषयक दिव्य मार्गदर्शन दिया ।

5 दिसम्बर 2017 को भाभा एटोमिक रिसर्च सेन्टर, मुम्बईमें भी अणु एवं परमाणु विषयपर महाराजश्रीका प्रवचन हुआ ।

इन्डियन इन्स्टीच्युट ऑफ साइन्स बेंगलूरके नैशनल इन्स्टीच्युट ऑफ एडवान्स्ड स्टडीजमें आधुनिक विज्ञान एवं प्राचीन भारतीय बौद्धिक क्षमता (Indian Institute of science Bengaluru.National institute of advance study) विषयपर सारगर्भित प्रवचन एवं मार्गदर्शन हुआ ।

14 दिसम्बर 2017 को डी.आर.डी.ओ. (अ.R.अ.ध्), चेन्नईमें जहाँ आयुध एवं टैंकका निर्माण होता है, महाराजश्रीने आयुध अस्त्रपर आयुध वैज्ञानिकों और इंजीनियरोंको सम्बोधित किया ।

23 दिसम्बर 2017को नई-दिल्ली स्थित एम्स (AIIMS New Delhi )में चिकित्सा विज्ञान (Medical Science ) पर प्रवचन हुआ ।

16 फरवरी 2018 को आई.आई.टी. (Roorki.) पटनामें प्रवचन हुआ ।

6 मार्च 2018 को सन्ध्या 4 बजेसे 6 बजे तक सुप्रीम कोर्टके इंडियन लॉ इन्स्टीच्युटमें सुप्रीमकोर्ट बार एसोसिएसन द्वारा आयोजित सभामें सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया सहित न्यायाधीशों एवं अधिवक्ताओंके बीच महाराजश्रीने देशके वर्तमान संविधान एवं भारतका सनातन संविधानपर सारगर्भित प्रवचन किया ।

9 अप्रेल 2018 को जोधपुरमें राजस्थान बार एसोसिएसन् द्वारा आयोजित सभामें भी न्यायाधीशों एवं अधिवक्ताओंका मार्गदर्शन किया ।

11 अप्रेल 2018 को संपूर्णानन्द मेडिकल कॉलेजमें डॉक्टरों एवं मेडिकलके छात्रोंको चिकित्सा विज्ञान पर मार्गदर्शन दिया ।

16 मई 2018 को नेपालमें काठमांडू स्थित त्रिभुवन विश्वविद्यालयमें प्रवचन किया जिससे भारी संख्यामें नेपालके लोग लाभान्वित हुए ।

24 मई 2018 को सन्ध्या 4से 6 बजे भारतके एक प्रमुख प्रबंधन संस्थान आई.आई.एम. कोलकतामें प्रबन्धनके प्राध्यापकों एवं छात्रोंको सम्बोधित किया ।

13 जून 2018 को दिनके 11.30 बजेसे 1.30 बजे तक उत्तराखण्ड स्थित प्रसिद्ध इंजीनियरिंग संस्थान आई.आई.टी., रुडकीमें इंजीनियरिंगके प्राध्यापकों, अनुसन्धानकर्ताओं, व्याख्याताओं एवं छात्रोंका मार्गदर्शन किया ।

इस प्रकार महाराजश्री राष्ट्ररक्षा, धर्मरक्षा, राष्ट्रोत्कर्ष, प्राचीन एवं आधुनिक विज्ञान तथा तकनीक, सुरक्षा, वाणिज्य, संस्कृति, विकृत ज्ञान-विज्ञानका संशोधन तथा कापामसे लुप्त ज्ञान-विज्ञानको पुन उद्भाषित करने, विश्वशान्ति, विश्वबन्धुत्
2024/09/23 22:30:45
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