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पुरी शङकराचार्य महाभाग के अमृत वचन

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गौ हत्या बंद हो ...........लेकिन हो रही है बंद क्या ?

तो क्या हमारी प्रार्थना निरर्थक जा रही है क्या ?

प्रार्थना का एक रहस्य बता दें ...प्रभुप्रदत्त – प्राप्त विवेक का समादर करो , अभिमान मत करो...... लेकिन जब कोई प्राप्त शक्ति का उपयोग नही करता और भगवान् से प्रार्थना करता है तो भगवान् बहरे हो जाते है ,.....अरे जितनी शक्ति भगवान् ने दी उसका उपयोग कर और उसका अभिमान मत कर ....जो अपूर्णता है उसके लिए भगवान् से प्रार्थना कर .........हे प्रभु यह जो शक्ति है आपसे ही मिली है ऐसी कृतज्ञता प्रकट करो तो प्रार्थना सफल होगी !

नहीं तो – बहेलिया आवेगा , जाल बिछावेगा , दाना डालेगा .....फसना मत ......
सबसे पहले यह गीत बिना तबला , हारमोनियम के किसने गाया .....नेताओ ने ....... बहेलिया आवेगा , जाल बिछावेगा , दाना डालेगा .....फसना मत .....और सबसे पहले वे फँस गए ......गोहत्या बंद के नाम पर !

हमारे गुरुदेव को गोहत्या बंद के लिए आगे करके जो साधु वेषधारी व्यक्ति आया था वही इंदिरागांधी से मिलकर हमारे महाराज आदि पर प्रहार करवाया ......अब वह करोडो पति बना हुआ है , तीन बार नाम बदल चुका है तब भी वह वृन्दावन में आए तो लगेगा इससे बड़ा गोभक्त विश्व में नही होगा !

गायो को कटवाने में जिन धनियों का हाथ है .....वही गौशाला में जाकर दो हजार का दान देकर दानवीरों में भी अपना नाम लिखवा लेते है .........आखिर प्रार्थना सुनी भी जाए तो कब .....प्राप्त शक्ति का विनियोग करते है क्या गोरक्षा के लिए ....नही न !

भगवान् राम ने सुग्रीव से कहा – देख , बाली को तो मै मारूँगा लेकिन युद्ध के लिए तो तुझे ही जाना होगा ....एक चोट तो खानी पड़ेगी ......समझ गए .....तो शंकराचार्य या अन्य कोई सातवे आसमान की छड़ी घुमा दे और आप हम आराम से पड़ें रहें और सब काम हो जाएं .......ऐसा कभी नही होता !

हमने पुरी के राजा से कह दिया – महाभारत में लिखा है ....जो क्षत्रिय युद्ध से डरता है पृथ्वी उसे निगल लेती है ......जो हिन्दू अपने आदर्श व् आस्तित्व की रक्षा के लिए कटिबद्धता का परिचय नही देता ......जहाँ समर्थ है वहां भी सहयोग नही करता और कहता है सब भगवान् करेंगे ..........तो भगवान् की दृष्टि में वह दण्ड का पात्र हो जाता है तथा भगवान् उसके इस छल को सहन नही कर पाते ........ मोहि कपट छल छिद्र न भावा .....!

दो ही बात है ......गोहत्या बंद हो , यह कहना हम कब बंद करेंगे ........एक तो गाय न रहें ....अब तो लगता है दूसरा पक्ष ज्यादा प्रबल हो रहा है ........पहला पक्ष क्या है ....गोहत्या न हो , तो हम क्यों कहे गोहत्या बंद हो ....जीवित है तभी तो कह रहे है न ..........दूसरा पक्ष इतना प्रबल लग रहा है यह जर्सी आदि रहेंगी , देशी गाय नही रहेंगी तो क्या कहेंगे गोहत्या बंद हो ?

लेकिन गोहत्या बंद हो कह भी देते है और गुप्त अथवा प्रकट हाथ भी होता ही है ........आप बुरा न माने ...इसी वृन्दावन धाम में .....एक संत के यहाँ मुह से निकल गया ......सारी गाय आपके यहाँ जर्सी है और आप भागवत की कथा कहते है ....गोविन्द जय जय , गोपाल जय जय का कीर्तन करवाते है ...क्या है यह तमाशा ....
उन्होंने बुलाना और मुह देखना ही बंद कर दिया जैसे हमने अपराध कर दिया हो .....अरे भागवत के पंडितो के यहाँ भी यह हाल होगा तो कैसे क्या होगा .....उड़ियाबाबा के ट्रस्ट में मैंने कह दिया मेरा नाम इस पर से हटा दो... क्या है यह सब ? ज्यादा दूध के नाम पर ........विदेशो में देशी नस्ल की गाय से १२० लीटर दूध लिया जा रहा है , क्या वह अनुसन्धान भारत में नही हो सकता ......गोविन्द जय जय कहेंगे और पालेंगे जर्सी ....तो क्या देशी गाय केवल काटने के लिए पैदा होती है ? इस बेईमानी से क्या दशा होगी !
इसलिए आत्मनिरीक्षण पूर्वक भगवान् से प्रार्थना करें !!

!! हर हर महादेव !!
पुरी शङकराचार्य महाभाग के अमृत वचन

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गौ हत्या बंद हो ...........लेकिन हो रही है बंद क्या ?

तो क्या हमारी प्रार्थना निरर्थक जा रही है क्या ?

प्रार्थना का एक रहस्य बता दें ...प्रभुप्रदत्त – प्राप्त विवेक का समादर करो , अभिमान मत करो...... लेकिन जब कोई प्राप्त शक्ति का उपयोग नही करता और भगवान् से प्रार्थना करता है तो भगवान् बहरे हो जाते है ,.....अरे जितनी शक्ति भगवान् ने दी उसका उपयोग कर और उसका अभिमान मत कर ....जो अपूर्णता है उसके लिए भगवान् से प्रार्थना कर .........हे प्रभु यह जो शक्ति है आपसे ही मिली है ऐसी कृतज्ञता प्रकट करो तो प्रार्थना सफल होगी !

नहीं तो – बहेलिया आवेगा , जाल बिछावेगा , दाना डालेगा .....फसना मत ......
सबसे पहले यह गीत बिना तबला , हारमोनियम के किसने गाया .....नेताओ ने ....... बहेलिया आवेगा , जाल बिछावेगा , दाना डालेगा .....फसना मत .....और सबसे पहले वे फँस गए ......गोहत्या बंद के नाम पर !

हमारे गुरुदेव को गोहत्या बंद के लिए आगे करके जो साधु वेषधारी व्यक्ति आया था वही इंदिरागांधी से मिलकर हमारे महाराज आदि पर प्रहार करवाया ......अब वह करोडो पति बना हुआ है , तीन बार नाम बदल चुका है तब भी वह वृन्दावन में आए तो लगेगा इससे बड़ा गोभक्त विश्व में नही होगा !

गायो को कटवाने में जिन धनियों का हाथ है .....वही गौशाला में जाकर दो हजार का दान देकर दानवीरों में भी अपना नाम लिखवा लेते है .........आखिर प्रार्थना सुनी भी जाए तो कब .....प्राप्त शक्ति का विनियोग करते है क्या गोरक्षा के लिए ....नही न !

भगवान् राम ने सुग्रीव से कहा – देख , बाली को तो मै मारूँगा लेकिन युद्ध के लिए तो तुझे ही जाना होगा ....एक चोट तो खानी पड़ेगी ......समझ गए .....तो शंकराचार्य या अन्य कोई सातवे आसमान की छड़ी घुमा दे और आप हम आराम से पड़ें रहें और सब काम हो जाएं .......ऐसा कभी नही होता !

हमने पुरी के राजा से कह दिया – महाभारत में लिखा है ....जो क्षत्रिय युद्ध से डरता है पृथ्वी उसे निगल लेती है ......जो हिन्दू अपने आदर्श व् आस्तित्व की रक्षा के लिए कटिबद्धता का परिचय नही देता ......जहाँ समर्थ है वहां भी सहयोग नही करता और कहता है सब भगवान् करेंगे ..........तो भगवान् की दृष्टि में वह दण्ड का पात्र हो जाता है तथा भगवान् उसके इस छल को सहन नही कर पाते ........ मोहि कपट छल छिद्र न भावा .....!

दो ही बात है ......गोहत्या बंद हो , यह कहना हम कब बंद करेंगे ........एक तो गाय न रहें ....अब तो लगता है दूसरा पक्ष ज्यादा प्रबल हो रहा है ........पहला पक्ष क्या है ....गोहत्या न हो , तो हम क्यों कहे गोहत्या बंद हो ....जीवित है तभी तो कह रहे है न ..........दूसरा पक्ष इतना प्रबल लग रहा है यह जर्सी आदि रहेंगी , देशी गाय नही रहेंगी तो क्या कहेंगे गोहत्या बंद हो ?

लेकिन गोहत्या बंद हो कह भी देते है और गुप्त अथवा प्रकट हाथ भी होता ही है ........आप बुरा न माने ...इसी वृन्दावन धाम में .....एक संत के यहाँ मुह से निकल गया ......सारी गाय आपके यहाँ जर्सी है और आप भागवत की कथा कहते है ....गोविन्द जय जय , गोपाल जय जय का कीर्तन करवाते है ...क्या है यह तमाशा ....
उन्होंने बुलाना और मुह देखना ही बंद कर दिया जैसे हमने अपराध कर दिया हो .....अरे भागवत के पंडितो के यहाँ भी यह हाल होगा तो कैसे क्या होगा .....उड़ियाबाबा के ट्रस्ट में मैंने कह दिया मेरा नाम इस पर से हटा दो... क्या है यह सब ? ज्यादा दूध के नाम पर ........विदेशो में देशी नस्ल की गाय से १२० लीटर दूध लिया जा रहा है , क्या वह अनुसन्धान भारत में नही हो सकता ......गोविन्द जय जय कहेंगे और पालेंगे जर्सी ....तो क्या देशी गाय केवल काटने के लिए पैदा होती है ? इस बेईमानी से क्या दशा होगी !
इसलिए आत्मनिरीक्षण पूर्वक भगवान् से प्रार्थना करें !!

!! हर हर महादेव !!
शिवावतार आद्यगुरु शंकराचार्यजी पर पुरी के जगद्गुरु शंकराचार्यजी का ऐतिहासिक लेख

------ पूरा अवश्य पढ़ें
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योग से ही भगवत् पाद आदि शंकराचार्य ने भारतवर्ष में चार पीठों की स्थापना की। ईसा से 507 वर्ष पहले भारत में आदि शंकराचार्य का आविर्भाव (जन्म) हुआ था।

वस्तु स्थिति यही है, हमारे सामने अकाट्य प्रमाण है, जिसके सामने सारे तर्क निष्फल हैं, कि जब आदि शंकराचार्य का आविर्भाव भारत में हुआ था तब इस्लाम और ईसाई दोनों पंथ और मत का कोई अस्तित्व नहीं था।

आज धरती पर जो भी भू-भाग है, वो उस समय सनातन संस्कृति से आच्छादित हो चुका था।

पूरे विश्व की राजधानी भारत को स्थापित करते हुए, आदि शंकराचार्य ने चारधाम पीठों की स्थापना की।

उन्होंने भले ही भारत के चार कोनों में शंकराचार्य पीठों की स्थापना की हो, लेकिन सनातन धर्म के शासन का क्षेत्र पूरे विश्व को ही माना।

बौद्ध सम्राट सुधन्वा जो कि युधिष्ठिर की वंश परंपरा के थे, बौद्ध पंडितों और भिक्षुकों के संपर्क में आकर वे बौद्ध सम्राट के रुप में ख्याति प्राप्त होकर वे शासन कर रहे थे। सनातन वैदिक आर्य हिंदु धर्म का दमन कर रहे थे।

तब आदि शंकराचार्य ने उनके हृदय को शुद्ध किया और सार्वभौमिक सनातन हिंदु धर्म मूर्ति के रूप में उन्हें फिर प्रतिष्ठित किया।

उन्हें पथभ्रष्ट होने और अन्य राजाओं पर भी शासन करने के लिए आदि शंकराचार्य ने चार दिशाओं पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण में चार धाम पीठों की स्थापना की।

इसमें से पूर्व और पश्चिम की जो पीठें हैं वे समुद्र के तट पर हैं।

भौगोलिक दृष्टि से भगवान शंकराचार्य ने बद्रीनाथ में ज्योतिर्मठ की स्थापना की, जो पर्वत माला के बीच में है। रामेश्वर के श्रंगेरी क्षेत्र जो इस समय कर्नाटक में है, वहां उन्होंने मठ की स्थापना की।

उत्तर-दक्षिण के मठ पर्वत माला के बीच हैं और पूर्व-पश्चिम के मठ समुद्र किनारे।

चारों वेद और छह प्रकार के शास्त्र या कह सकते हैं 32 प्रकार की विद्याओं के प्रभेद और 32 कलाओं के प्रभेद, सबके सब सुरक्षित रहें, इसलिए एक-एक वेद से संबद्ध करके एक-एक शंकराचार्य पीठ की स्थापना की।

जैसे ऋग्वेद से गोवर्धन पुरी मठ (जगन्नाथ पुरी), यजुर्वेद से श्रंगेरी (रामेश्वरम्), सामवेद से शारदा मठ (द्वारिका) और अथर्ववेद से संबध्द ज्योतिर्मठ (बद्रीनाथ) है।

ब्रह्मा के चार मुख हैं, पूर्व के मुख से ऋग्वेद. दक्षिण से यजुर्वेद की, पश्चिम से सामवेद और उत्तर से अथर्ववेद की उत्पत्ति हुई है। इसी आधार पर शंकराचार्य ने चार पीठों की स्थापना की और उनको चार वेदों से जोड़ा है।

संन्यासी अखाड़े और परंपरा तो भारत में पहले भी थी, लेकिन आदि शंकराचार्य ने इन दशनामी संन्यासी अखाड़ों को भौगोलिक आधार पर विभाजित किया। दशनामी अखाड़े जिनमें सन्यासियों के नाम के पीछे लगने वाले शब्द से उनकी पहचान होती है।
वन, अरण्य, पुरी, भारती, सरस्वती, गिरि, पर्वत, तीर्थ, सागर और आश्रम, ये दशनामी अखाड़ों के संन्यासियों के दस प्रकार हैं। आदि शंकराचार्य ने इनके नाम के मुताबिक ही इन्हें अलग-अलग दायित्व सौंपे।

जैसे, वन और अरण्य नाम के संन्यासियों को, जो पुरी पीठ से संबद्ध है, इन्हें आदि शंकराचार्य ने ये दायित्व दिया कि हमारे वन (बड़े जंगल) और अरण्य (छोटे जंगल) सुरक्षित रहें, वनवासी भी सुरक्षित रहें, इनमें विधर्मियों की दाल ना गले।

पुरी, भारती और सरस्वती ये श्रंगेरी मठ से जुड़े हैं, सरस्वती सन्यासियों का दायित्व है हमारे प्राचीन उच्च कोटि के शिक्षा केंद्र, अध्ययन केंद्र सुरक्षित रहें, इनमें अध्यात्म और धर्म की शिक्षा होती रहे। भारती सन्यासियों का दायित्व ये है कि मध्यम कोटि के शिक्षा केंद्र सुरक्षित रहें, यहां विधर्मियों का आतंक ना हो।

पुरी सन्यासियों का दायित्व तय किया कि हमारी प्राचीन आठ पुरियों जैसे अयोध्या, मथुरा और जगन्नाथपुरी आदि सुरक्षित रहें। तीर्थ और आश्रम नाम के संन्यासी जो द्वारिका मठ से सम्बद्ध हैं, तीर्थ सन्यासियों का दायित्व तीर्थों को सुरक्षित रखना और आश्रम सन्यासियों का काम हमारे प्राचीन आश्रमों की रक्षा करना था।

कुछ सालों पहले समुद्र के रास्ते से कुछ आतंकियों ने भारत वर्ष में घुसकर आतंक मचाया था।

ये आदि शंकराचार्य की दूरदर्शिता ही थी कि उन्होंने ज्योतिर्मठ (बद्रीनाथ) से सम्बद्ध सागर सन्यासियों को समुद्र सीमाओं की रक्षा का दायित्व दिया था।

सेतु समुद्रम के कारण हमें ईंधन प्राप्त हो रहा है, इसी से समुद्र का संतुलन है, राम सेतु के टूटने से रामेश्वर का ज्योतिर्लिंग भी डूब जाएगा।

यूपीए सरकार के समय इसे तोड़ने के प्रस्ताव भी बन रहे थे। संतों ने आगे आकर इसे रोका।
विज्ञान ज्ञान के ही अंतर्गत आता है
सनातन धर्मियों का, हमारा-आपका प्रमाद ही विश्व में जितने तन्त्र हैं उनका जीवन है। यह वाक्य कुछ रहस्यात्मक है।  फिर से सुनिए- हम न मुस्लिम तन्त्र को, न कम्युनिस्ट तन्त्र को, न क्रिश्चियन तन्त्र को, किसी तन्त्र को कोसते नहीं हम। क्यों नहीं कोसते? हम इस बात को अच्छी प्रकार समझते हैं कि धर्म को, अध्यात्म को समझने में, उसके अनुपालन में जो त्रुटि हुई, उस त्रुटि के गर्भ से ही ये सब तन्त्र उत्पन्न हुए हैं।

सनातन धर्मियों का जो प्रमाद है उसी ने समय-समय पर विभिन्न तन्त्रों को उद्भासित किया है। मैं संकेत करता हूँ - मुस्लिम तन्त्र की, क्रिश्चियन तन्त्र की, कम्युनिस्ट तन्त्र की उपयोगिता कब समझ में आई? ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, अन्त्यज... जो भी महानुभाव हैं वर्णाश्रम से सम्बद्ध, उन्होंने अपने दायित्व को ठीक से समझा नहीं, उसके पालन में जब प्रमाद हुआ तब जाकर इन तन्त्रों की उद्भावना हुई।

आज अगर उस प्रमाद का निवारण हो जाए तो विश्व में कोई तन्त्र शेष नहीं रहेगा। अपने आप लाठी, गोली के बिना ही सभी तन्त्र हमारे तन्त्र में जाकर खप जाएंगे समा जाएंगे, जैसे समुद्र में गङ्गा, यमुना इन सब जलधाराओं का अपने आप द्रुतगति से विलय हो जाता है। किसी तन्त्र को कोसने की आवश्यकता नहीं है। प्रमाणिक रीति से आत्मनिरीक्षण करने पर धर्म, अध्यात्म को समझने, उसके अनुपालन में जो प्रमाद हुआ है उसी का यह सब विस्फोटक परिणाम है।
2024/09/24 20:36:47
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