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अनंतश्री विभूषित श्री ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय गोवर्धन मठ पूरी पीठाधीश्वर स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती जी महाभाग का दीवाली संदेश।
जय गुरुदेव 💐
समयाभाव के कारण अभी कुछ दिनों से पोस्ट नहीं कर पा रहे,किन्तु प्रयास करेंगे नित्य दैनिक एक पोस्ट हो। - क्षेत्रज्ञ
श्रीमन्नारायण 💐💐
संविधान कैसा होना चाहिए?

( हिंदु राष्ट्र संगोष्ठी में पुरी शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती जी के वक्तव्य का कुछ अंश ) :-

सृष्टि की संरचना के प्रयोजन को समझे बिना जो संविधान विनिर्मित होगा वह दिशाहीन किए बिना नहीं रह सकता। संविधान की आधारशिला क्या है - सृष्टि की संरचना के प्रयोजन को समझकर उस प्रयोजन की सिद्धि में सोपानकक्रम प्रस्तुत करना संविधान का मुख्य दायित्व होता है।

श्रीमद्भागवत 10.87.2 में सृष्टि की संरचना के प्रयोजन का वर्णन किया गया है -

"बुद्धीन्द्रियमनः प्राणान् जनानामसृजत् प्रभुः।
मात्रार्थं च भावार्थं च आत्मनेऽकल्पनाय च।।"

महासर्ग के प्रारंभ में सच्चिदानंद स्वरूप परमेश्वर ने आकाश, वायु, तेज, जल, पृथ्वी से मण्डित सृष्टि की संरचना की। जो प्राणी महाप्रलय के अव्यवह्यित पूर्वक क्षण पर्यंत भगवत्तत्त्व को नहीं जान पाए, जिन्हें कैवल्य मोक्ष प्राप्त हो सका। उन अकृतार्थ प्राणियों को कृतार्थ करने का अवसर प्रदान करने की भावना से सच्चिदानंद स्वरूप सर्वेश्वर ने देह, इंद्रिय, प्राण, अंतः करण से युक्त जीवों को प्रकट किया।
जीवों को धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष संज्ञक पुरुषार्थ चतुष्ट्य की सिद्धि हो सके, इस भावना से भावित होकर करुणावरूणालय सच्चिदानंद स्वरूप सर्वेश्वर ने महासर्ग के प्रारंभ में आकाश आदि से मण्डित सृष्टि की संरचना की और जीवों को देह, इंद्रिय, प्राण, अंतःकरण से युक्त जीवन प्रदान किया।

गम्भीरतापूर्वक विचार करें, जितने स्थावर, जङ्गम प्राणी हैं उनके जीवन का प्रयोजन क्या है? उस प्रयोजन की सिद्धि में जिसका उपयोग और विनियोग हो वही संविधान हो सकता है। मृत्यु का भय और मृत्युञ्जय पद प्राप्त करने की भावना, अमृत्तत्व की भावना, जड़ता, मूर्खता को दूर करने की भावना, अखण्ड विज्ञान प्राप्त करने की भावना, दुःखों से छूटने की भावना, दैहिक, दैविक, भौतिक त्रिविध तापों का भय और अखण्ड आनंद प्राप्त करने की भावना प्राणी मात्र में निःसर्गसिद्ध है। इसका मतलब प्रत्येक प्राणी जड़ता, मृत्यु, दुःख के चपेट से मुक्त होकर सत्, चित्, आनन्द होकर, ज्ञान स्वरूप होकर, अमृत स्वरूप होकर शेष रहना चाहता है। ज्ञान और कर्म को परिष्कृत कर जन्म और मृत्यु कि अनादि अजस्र परंपरा के आत्यंतिक उच्छेद में जिसका उपयोग और विनियोग हो, उसी का नाम जीवन है।

प्रत्येक अंश स्वभावतः अपने अंशी कि ओर आकृष्ट होता है। हम जितने जीव हैं वो -

ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः। (भगवद्गीता 15.7)

ईश्वर अंश जीव अविनाशी, चेतन अमल सहज सुखराशि (रामचरित मानस)

इसका मतलब जो हमारा मौलिक स्वरूप है - सच्चिदानंद, वही हमारे आकर्षण का केंद्र है। अर्थात हर प्राणी मृत्यु के चपेट से मुक्त होकर अमृत स्वरूप होकर रहना चाहता है, हर प्राणी जड़ता और मूर्खता से दूर होकर अखण्ड विज्ञान सम्पन्न होकर रहना चाहता है, हर प्राणी दुःख से मुक्त होकर अखण्ड आनन्द स्वरूप होकर रहना चाहता है।

इसका अर्थ क्या हुआ? संविधान की आधारशिला क्या होनी चाहिए? संविधान किस सूत्र के आधार पर बनना चाहिए? सबके हित में कौन सा संविधान हो सकता है? हर देश में, हर काल में, हर परिस्थिति में, हर व्यक्ति के लिए शुभप्रद, मङ्गलप्रद, संविधान कौन सा हो सकता है? स्थायी संविधान कौन हो सकता है? सबके लिए हितप्रद कौन हो सकता है? संविधान की आधारशिला मैं बताता हूँ ताकि कहीं भी भटकना सम्भव ही न हो -

प्राणियों की निःसर्गसिद्ध सार्वभौम आवश्यकता की पूर्ति संविधान के माध्यम से, जीवन के माध्यम से होनी चाहिए। प्रत्येक प्राणी मृत्यु, जड़ता, दुःख के चपेट से मुक्त होकर सत्, चित्, आनंद स्वरूप होकर, मृत्युञ्जय होकर, ज्ञानस्वरूप, आनंद स्वरूप होकर शेष रहना चाहता है।
जीवों की प्रवृत्ति और निवृत्ति का जो नियामक माने मृत्यु का भय, अमृत्तत्व की भावना; जड़ता का भय, अखण्ड विज्ञान की भावना; दुःख का भय, अखण्ड आनन्द की भावना ; इसकी पूर्ति जिसके द्वारा हो सके, अर्थात प्राणियों को जो मृत्यु, जड़ता, दुःख से अतिक्रांत जीवन की ओर जो अग्रसर कर सके वही संविधान है।

कोई कहते हैं चंद्रगुप्त मौर्य का शासन बहुत अच्छा था, हम मान लेते हैं। कोई कहते हैं शिवाजी का शासन बहुत अच्छा था, हम मान लेते हैं। कोई रहते हैं विक्रमादित्य जी का शासन बहुत अच्छा था, हम मानते हैं। कोई कहते हैं धर्मराज युधिष्ठिर ने जिस राज्य की संरचना की हमको वही धर्म राज्य चाहिए, कोई कहते हैं हमको रामराज्य चाहिए। अगर राजनेताओं से भी पूछा जाए तो कहेंगे हम रामराज्य लाएंगे। गांधीजी भी रामराज्य की चर्चा करते थे या नहीं? अब यहाँ पर बहुत ही शीतल हृदय से विचार करने की आवश्यकता है - शिवाजी ने शासन किया उस समय कौन सा संविधान था? चंद्रगुप्त मौर्य ने जो शासन किया उस समय कौन सा संविधान था? आज का संविधान था क्या? विक्रमादित्य जी ने दिव्य साम्राज्य प्रदान किया, उनके शासनकाल में सब सुखी थे तो उस समय आज का संविधान था क्या? धर
ा का जो प्रयोजन है, पृथ्वी, पानी, प्रकाश, पवन ये सब जिस अधिनियम का पालन करते हैं, उन सब का अनुशीलन करके त्रिकालदर्शी महर्षियों के द्वारा जो संविधान बनाया गया है, उसके विपरीत चलने पर विप्लव ही विप्लव हो सकता है। अतः इस रॉकेट, कंप्यूटर, एटम और मोबाइल के युग में भी सनातन सिद्धांत की उपयोगिता पूर्ववत् चरितार्थ है।

हरे कृष्ण, हरे राम।
्मराज युधिष्ठिर ने जो राज्य किया, कौन सा संविधान था? भगवान राम और उनके पूर्वज अम्बरीष इत्यादि ने जो राज्य किया उस समय कौन सा संविधान था? प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री कोई भूतपूर्व हों या वर्तमान तो वे क्या कहते हैं कि 'रामराज्य हम लाएंगे'। लेकिन राम जी ने जो राज्य किया तो किस संविधान के आधार पर? अरे मनुस्मृति के आधार पर। उसी से चिढ़ है ना आजकल? राम जी के पूर्वज मनु थे या नहीं? अब प्रश्न यह उठता है कि जिस संविधान के आधार पर राम राज्य की स्थापना हुई, धर्म राज्य की स्थापना हुई तो छल, बल, डंके की चोट से उस संविधान के प्रति और उस संविधान के उपदेष्टा मनु के प्रति घोर अनास्था उत्पन्न कर दी गई है या नहीं? तो कल्याण कैसे होगा जी?

एक ओर हम कहते हैं कि रामराज्य लाएंगे तो दूसरी ओर राम जी ने जो राज्य प्रदान किया, उनके पूर्वजों ने जो राज्य प्रदान किया, जिस संविधान के क्रियान्वयन का वह फल था, उस संविधान को कोसते भी हैं। आश्चर्य की बात है जब हम रामराज्य की प्रशंसा करते हैं, धर्म राज्य की प्रशंसा करते हैं, विक्रमादित्य जी के शासनकाल की प्रशंसा करते हैं, चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल की प्रशंसा करते हैं, शिवाजी के शासन की प्रशंसा करते हैं तो स्वाभाविक रूप से प्रश्न उठता है कि उस समय संविधान कौन सा था? किस संविधान का अनुपालन करने पर इस प्रकार का उज्जवल शासन वे दे पाए?

यहां तक मैं संकेत करता हूं - किस संविधान के अनुपालन से जीवन में वह बल और वेग उत्पन्न हो सकता है जिससे कि देहत्याग के पश्चात वह स्वर्गादि उर्ध्व लोकों में गमन कर सके? किस संविधान का अनुपालन करने पर कोई ब्रह्मा हो सकता है, इंद्र हो सकता है? आज का संविधान? आज जो ब्रह्मा जी के पद पर हैं किसी कल्प में वे कभी बृहद् भारत में, सत्कुल में उनका जन्म था, वे मनुष्य थे, अश्वमेध याग में अधिकृत थे। उन्होंने अश्वमेध याग के अवांतर फल को ने चाह कर अश्वमेध याग के माध्यम से प्रजापति की विधिवत समर्चा की। आज जिसके फलस्वरूप वे ब्रह्मा हैँ। एक मनुष्य को ब्रह्मा जी का पद देने वाला कौन है जी? कौन संविधान है? आधुनिक संविधान हो सकता है क्या? इंद्र के पद को प्रदान करने वाला कौन संविधान हो सकता है? हमारे जीवन में वह बल और वेग भरने वाला कौन संविधान हो सकता है कि देह त्याग के बाद, कर्म और उपासना के स्तर से स्वर्गादि लोकों में हम जा सकें? इसका अर्थ क्या है? लौकिक उत्कर्ष, पारलौकिक उत्कर्ष और परमात्मा की प्राप्ति का मार्ग भी प्रशस्त हो जाए, अभ्युदय, निःश्रेयस दोनों फलों की सिद्धि हो जाए, ऐसा संविधान ही तो संविधान हो सकता है।

तो संविधान कौन सा उत्कृष्ट हो सकता है? श्रीमद्भागवत 10.87.2 के अनुसार

"बुद्धीन्द्रियमनः प्राणान् जनानामसृजत् प्रभुः।
मात्रार्थं च भावार्थं च आत्मनेऽकल्पनाय च।।"

महासर्ग के प्रारंभ में सच्चिदानंद स्वरूप परमेश्वर ने आकाश, वायु, तेज, जल, पृथ्वी से मण्डित सृष्टि की संरचना की। जो प्राणी महाप्रलय के अव्यवह्यित पूर्वक क्षण पर्यंत भगवत्तत्त्व को नहीं जान पाए, जिन्हें कैवल्य मोक्ष प्राप्त हो सका। उन अकृतार्थ प्राणियों को कृतार्थ करने का अवसर प्रदान करने की भावना से सच्चिदानंद स्वरूप सर्वेश्वर ने देह, इंद्रिय, प्राण, अंतः करण से युक्त जीवों को प्रकट किया।
जीवों को धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष संज्ञक पुरुषार्थ चतुष्ट्य की सिद्धि हो सके, इस भावना से भावित होकर करुणावरूणालय सच्चिदानंद स्वरूप सर्वेश्वर ने महासर्ग के प्रारंभ में आकाश आदि से मण्डित सृष्टि की संरचना की और जीवों को देह, इंद्रिय, प्राण, अंतःकरण से युक्त जीवन प्रदान किया।
तो हमने संकेत किया, इस रॉकेट, कंप्यूटर, एटम और मोबाइल के युग में भी सनातन सिद्धांत को जो नहीं मानेगा वह दिशाहीन हुए बिना नहीं रहेगा।

पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, प्रकृति और परमात्मा में सन्निहित जो सिद्धांत है, जिस सिद्धांत / संविधान के आधारपर सृष्टि की संरचना होती है, सृष्टि की रक्षा होती है/ पालन होता है, सृष्टि का संहार होता है, उसको जबतक नहीं समझेंगे तब तक जो संविधान विनिर्मित होगा वो दिशाहीन किये बिना नहीं रहेगा।

देहात्मभाव भावित संविधान न्याय दे ही नहीं सकता। क्योंकि उसमें पाप-पुण्य का उल्लेख नहीं, पूर्वजन्म-पुनर्जन्म में आस्था नहीं। वह संविधान अर्थ और काम तक ही सीमित रहेगा। और अर्थ तथा काम को इस तरह से परिभाषित करेगा जिसके गर्भ से अनर्थ और पिशाचवृत्ति निकले बिना न रहे। ऐसे संविधान का आश्रय लेकर प्रगति का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है।
संविधान की आधारशिला तब स्वस्थ मानी जाती है जब आप इस आधारशिला को मानें कि "देह के नाश से जीवात्मा का नाश नहीं होता, देह के भेद से जीवात्मा में भेद की प्राप्ति नहीं होती।"
जिस संविधान से शिक्षा, रक्षा, अर्थ, सेवा और स्वच्छता के प्रकल्प सबको संतुलित रूप में प्राप्त हो सकें वही संविधान सबके लिए सुमङ्गलकारी होता है। सृष्टि की संरचन
पुरी शंकराचार्य जी महाभाग का संदेश

भूगोल

चन्द्रमण्डल, सूर्यमण्डल, नक्षत्रमण्डल की शैली में भूगोल का नामान्तर भूमण्डल है। खगोल में चन्द्रमण्डल, सूर्यमण्डल, नक्षत्रमण्डल का अन्तर्भाव है। प्रचलित भाषा में मण्डल का नामान्तर घेरा है।

आत्मा की अपेक्षा बीजात्मक अव्यक्त, अव्यक्त की अपेक्षा आकाश, आकाश की अपेक्षा वायु, वायु की अपेक्षा जल तथा जल की अपेक्षा भूमि सन्निकट सविशेष है। निर्विशेषता की अवधि आत्मा चेतन होने के कारण शेषी है। अन्य सब शेष हैं।

आत्मा सनातन अव्यक्त है। उसकी शक्ति अव्यक्त का नामान्तर प्रकृति है। प्रकृति बीजात्मिका है। पञ्च ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा ग्राह्य शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध के आश्रय क्रमश: आकाश, वायु, तेज, जल, भूमि (पृथिवी) - पञ्च भूत हैं। अव्यक्त बीजशक्ति और आत्मा शक्तिसमाश्रय सिद्ध है। कारण के गुण कार्य में अनुगत होते हैं।

इस दृष्टि से पृथिवी शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध - संज्ञक पञ्च गुणसम्पन्न है। उसके कार्य पर्वत तथा वृक्षादि अतिरिक्त गुणसम्पन्न न होने के कारण पृथिवी के तारतम्यज सङ्घात हैं।

विशेषता की अवधि पृथिवी चरम तत्त्वान्तर परिणाम है। इस प्रकार तत्त्व मीमांसा की दृष्टि से आरोह क्रम से पृथिवी, जल, तेज, वायु, आकाश, अव्यक्त और आत्मा कुल सात तत्त्व सिद्ध हैं। गन्धवती पृथिवी में रस, रूप, स्पर्श और शब्द शेष चार गुणों की भी प्रतिष्ठा है।

प्रकृति का चरम कार्य होने के कारण पृथिवी फलरूपा है। इसमें कठिनता तथा धारकता स्वभावसिद्ध है। इसमें द्रवता तथा पिण्डीकरणता जल से प्राप्त है। इसमें उष्णता तथा प्रकाशनता अग्निसिद्ध है। इसमें सञ्चरणशीलता तथा व्यूहनता अर्थात् सञ्चयशीलता वायुसिद्ध है। इसमें सुषिरता तथा अवकाशप्रदता आकाशसिद्ध है। पृथिवी पित्तल (पीत) तथा कृष्णवर्णा और चतुष्कोण वज्रोपम है।

जल अर्धचन्द्राकार रजत (चाँदी) - सदृश श्वेत है। तेज ज्वालासदृश सिन्दूरवर्ण है। वायु वेदिकाकार है। आकाश अवकाशप्रद है। भूमिमें जलादि का सन्निवेश होने के कारण पर्यावरण भूगोल से सम्बद्ध है। तद्वत् चतुष्कोण तथा कृष्णवर्णादि के कारण मानचित्र की संरचना भी भूगोल से सम्बद्ध है।

वन, पर्वत, खनिजद्रव्य, नद, निर्झर तथा ज्वालामुखी का स्रोत भूमि है। इतना ही नहीं ; चतुर्दश भुवनात्मक ब्रह्माण्ड में सन्निहित समस्त स्थावर तथा जङ्गम प्राणियों के अन्नका उद्गमस्थान भी भूमि ही सिद्ध है। पोषण और आह्लाद प्रदान करने वाली सामग्री अन्न है।

पञ्च भूतात्मिका तथा पञ्चविषयात्मिका भूमि वेद, अमृत, सौन्दर्य, सिद्धि , नृत्य तथा यवादि , फलादि अन्नप्रदा सिद्ध है। धेनुरूपा भूदेवी विविध विद्या तथा कलाका उद्गम स्थान है।

🚩 ।। जय जगन्नाथ ।। हर हर महादेव ।। 🚩
#हिन्दू_किसका_नाम_है_भारत_में...? #प्रत्येक_हिंदुस्तानी_के_लिए_महान_सन्देश ।

न्याय पाने व पचाने योग्य जो न रह गया है उसका नाम हिन्दू है !
(#पुरी_शंकराचार्य_महाभाग)

महाभारत में भीष्मजी ने कहा है, काल राजा का कारण नहीं है, राजा काल का कारण होता है । जैसा शासक होता है, वैसी सृष्टि बनती है, जैसा राजा होता है, वैसी प्रजा बनती है ।

क्यों आज सब नट-नटी बने जा रहे हैं, क्यों घूसखोरी बढ़ रही है, घूसखोर बढ़ रहे हैं...? क्योकि शासन तंत्र भृष्ट है ।

66 राष्ट्र क्रिश्चियन-तंत्र के अधीन, 56 राष्ट्र मुस्लिम तंत्र के अधीन, दो बलवान राष्ट्र चीन व रूस कम्युनिस्ट तंत्र के अधीन हैं और हिन्दुओ की संस्कृति के अनुसार एक भी शासन तंत्र एक भी राष्ट्र में है क्या ?

नेपाल में है ? भूटान में है ? भारत में है ?

इसका मतलब कोई भी संस्कृति तब तक सुरक्षित नहीं रहती, जब तक उसके अनुसार संविधान व् शासन तंत्र न हो । पूरा विश्व जिसे धर्मगुरु के रूप में देखता था... वह है भारत ।

दलाई लामा जी ने कहा था कुछ वर्ष पहले, भारत व तिब्बत गुरु शिष्य हैं । शिष्य तिब्बत व गुरु भारत था, है व रहेगा । ऐसा दलाई लामाजी ने कहा था । लेकिन एक प्रश्न उठता है कि भारत को विश्वगुरु माना गया परतंत्रता के दिनों में भी, तो किसके कारण...?

आर्य समाजियों के कारण, ऐसा तो नहीं, जैन सज्जनों के कारण, ऐसा तो नही, बौद्ध सज्जनों के कारण, ऐसा तो नहीं...!?

सिख सज्जनों के कारण, ऐसा तो नहीं, सिख तो उपजे ही हिंदुओं की रक्षा के लिए...। दिशाहीन हो गए आजकल वो अलग बात है ! तो किसके कारण...?

अरे मनुवादी सनातन धर्मियो के कारण ! जिस संस्कृति की रक्षा के लिए राम कृष्ण उत्पन्न होते हैं, जिस मनुवाद को मानकर पृथ्वी टिकी है, पवन टिका है, आकाश टिका है, प्रकाश टिका है, जल टिका है, जिस मनुवादी सस्कृति को मानने वाले सत्यवादी पुरूष हुए भगवान राम, कृष्ण आदि की उत्पत्ति हुई । उस सनातन संस्कृति का आजकल विलोप हो रहा है...!

आपको और हमको अपना अस्तित्व ही चाहिए और विश्व को अपना अस्तित्व चाहिए.. जिस रास्ते पर विश्व जा रहा है, लुप्त होने की स्थिति में है...!

इसका अर्थ क्या हुआ ? अगर विश्व को जीवन चाहिए तो कम से कम भारत, नेपाल व भूटान में सनातन संस्कृति के अनुसार संविधान व शासन तंत्र रहना चाहिए ! आज हमने एक भाव व्यक्त किया, संयुक्त राष्ट्र संघ व भारतीय शासन तंत्र के प्रति ।

अजगर की जाती विलुप्त न हो, जबकि वह तो व्यक्ति को निगल भी जाता है, लेकिन विधाता की सृष्टि में अजगर की उपयोगिता वैज्ञानिक धरातल पर सिद्ध है । तभी तो अजगर का विलोप न हो, गिद्ध का विलोप न हो, सर्प का विलोप न हो, सिंह का विलोप न हो ।

यह सब प्रयास चल रहा है या नहीं...? तो क्या भारतीय संस्कृति के अनुसार शासन तंत्र का विलोप हो जाए , यह घोर अन्याय है या नहीं !

विशुद्ध राजतन्त्र, विशुद्ध शासन तंत्र जिसने विश्व को धर्म राज्य दिया रामराज्य दिया, उसके अनुसार किसी एक देश में तो शासन तंत्र रहने दो, चलने दो...।

जिसको आदर्श मानकर विश्व मौत के गर्त में जाने से बच सके ।

रामराज्य जैसा राज्य नही, रामजी जैसे राजा नहीं ।

दुर्बुद्धि इन नेताओ ने सुप्रीम कोर्ट को लिख कर दिया, राम एतिहासिक पुरुष नहीं,, अवतार नहीं, उपन्यास के पात्र हैं, ताकि रामसेतु को विखंडित करवा सके !

विश्व में मानव निर्मित 2700 वर्ष प्राचीन चीन की दीवार है, जिसे कम्युनिस्ट राष्ट्र होते हुए भी उसकी रक्षा चाहता है और यहाँ भगवान राम द्वारा निर्मित साढ़े सत्रह लाख वर्ष प्राचीन धरोहर, लहर को रोकने में समर्थ, होरियम अणु ईधन का भंडार, सीपी देने में समर्थ, वनस्पति देने में समर्थ, रक्षा के लिए कवच और जलचर जीवो का जीवन उस रामसेतु को तोड़ने का अभियान इस देश में चलाया गया ।

हम उसमे कूदे, बहुत से महानुभावों ने उसमे हिस्सा लिया । भगवत कृपा से सुब्रमण्यम स्वामी ने मेरी बात मानकर लोअर कोर्ट, हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट तक केस को ले गए और रामसेतु की रक्षा भारत में हो गयी !

एक संकेत - विश्व में ऐसा कौन सा देश है, जिसे अपना उत्कर्ष पसंद नही है । उसी का नाम भारत है ! जीव का स्वभाव होता है, आपको पडोसी का उत्कर्ष पसंद न हो समझ आता है, भाई को भाई का उत्कर्ष पसंद न हो समझ आता है, आपको अपना ही उत्कर्ष पसंद न हो ऐसा कोन सा राष्ट्र है विश्व में...भारत । जिसके राजनेताओ को भारत का उत्कर्ष पसंद नहीं... !!

हमने कहा मेधाशक्ति, रक्षाशक्ति, अर्थशक्ति, श्रमशक्ति... अरे !पुरानी भाषा में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वेश्य व शुद्र शक्ति इन चारों का दोहन व दुरूपयोग हो रहा है ! ऐसी परिस्थिति में ये कथा कीर्तन, ये वार्ता, सत्संग का क्रम कब तक चलता रहेगा...?

आज इस्लामिक राष्ट्र हैं । भारत से अलग हुए कौन पाकिस्तान व बांग्लादेश वहाँ पर ऐसा हो सकता है ! तो हमारे यहाँ ही होता रहेगा, किसने ठेका लिया है ? यह तो राजनेताओं का बांये हाथ का खेल है, कहाँ
किस तत्व को लाकर हिंदुत्व को विलुप्त कर दें ।

तो विश्व में सभी को अभयदान देते हुए मानवाधिकार की सीमा में संयुक्त राष्ट्र संघ व पुरे विश्व से अनुरोध करना चाहते हैं, अनुरोध न माने तो तो फिर हम ऋषियों की परम्परा से हैं, धर्माचार्य है ...विश्व को बता देंगे कि तुम मानने के लिए बाध्य हो ।

वो क्या है ...भारतीय संस्कृति के अनुरूप भारत का संविधान व् शासन तंत्र नहीं होगा तो हमारी संस्कृति की रक्षा नहीं होगी !

जिसे आप वरदान मान रहे है वह अभिशाप है क्या...?

वर्तमान शिक्षा पद्धति व जीविका पद्धति.. मैकाले का अभिशाप । यदि दस वर्षो तक भारत में वर्तमान शिक्षा पद्धति व जीविका पद्धति चल गयी तो भारत कुछ भी नहीं रहेगा ! इससे संयुक्त परिवार का विलोप हो जाएगा, पेट पालने के लिए मनुष्य रह जाएगा ! इसी से भारतीयों का जीवन सार्थक होगा क्या...?

श्रीमद् भगवद् गीता आदि में पतन की पराकाष्ठा का लक्षण क्या है...? वर्णसंकरता, कर्मसंकर्ता, भौतिक वादियों में विकास की पराकाष्ठा क्या है वर्णसंकरता, कर्मसंकरता, क्या मतलब हुआ किसी की बेटी ले लो, किसी को बेटी दे दो ।

डाॅक्टर इब्राहीम की थ्योरी के अनुसार भी भविष्य मानव शील से रहित हो जाएगा । आज संविधान की दृष्टि से वर्णसंकरता को उत्कर्ष माना जा रहा है !

आज के प्रवचन का सारांश क्या निकला..? सब विपरीत दिशा की ओर जा रहे है । समय की सीमा में हमने कम कहा ! भगवत कृपा से गुरुओं की कृपा से हमारे पास विशाल चिंतन है । जिससे पूरा विश्व लाभ उठा सकता है ।

,लेकिन कष्ट की बात यह है कि आज भारत व पुरे विश्व में हमारे लोगो के ज्ञान विज्ञान से लाभ उठाने की क्षमता नहीं है ।

भारत को 70 वर्षो में राजनेताओ ने यहाँ तक गिरा दिया है कि न्याय पाने व न्याय पचाने योग्य नहीं रह गया है ।

क्योंकि हिन्दुओ से उनको भय नहीं नहीं रह गया है, भाजपा की सफलता कोंग्रेस की असफलता, कोंग्रेस की सफलता भाजपा की असफलता, दोनों की असफलता मिली-जुली सरकार की सफलता, यह क्या शासन तंत्र है...?

ऐसी परिस्थिति में सज्जनों ! हमें अपने आस्तित्व व् आदर्श की रक्षा करनी है तो हमें हमारी संस्कृति के अनुसार संविधान व शासन तंत्र चाहिए, चाहिए और चाहिए...!!

ये संकल्प हर सनातनी हिंदू करे ।
शुद्ध सात्विक सनातनी हिंदुराष्ट्र का उद्घोष करे ।
आज संकल्प करेंगे तब कल समय बदलेगा ।
राजनीतिक कठपुतली न बने , हिंदू राष्ट्र की मांग करे ।

नहीं तो भविष्य में अपने ही संतानों के हत्यारे कहलाएंगे ।

सभी राजकीय पक्ष पर दबाव डाले ।

।। हर हर महादेव ।।

||श्रीपूर्वाम्नाय शंकराचार्य महाभाग:||
जय जगन्नाथ जी . पूज्य पाद जगतगुरु शंकराचार्य गोवर्धन पीठाधीश्वर महाराज जी 11 जनवरी को कोलकाता में पधार रहे हैं एवं 12 जनवरी से 15 जनवरी तक गंगासागर में दिव्य कार्यक्रम को संबोधित करेंगे , उसके लिए आज रविवार 13 December को शाम 4:00 बजे सत्संग भवन 24 दर्पनारायण टैगोर स्ट्रीट कोलकाता 7 मालापारा में पीठ परिषद आदित्य वाहिनी आनंद वाहिनी का बैठक होगी| आप सभी से आग्रह है, ज्यादा से लोगों को सूचित करें एवं समय पर उपस्थित हो. हर हर महादेव
Tour program of Jagadguru Shankaracharya Swami Nischalananda Saraswati Ji :

Puri to Prayagraj.

Dt.17.12.2020, Thursday

Venue- Shiv Ganga Ashram, Near Railway Bridge, New Jhusi, Pryagraj - 211019 (UP)

Contact Persons:
Brahmachari Prafulla Chaitanya
Mobile : 80817 48542

🚩जय जगन्नाथ🚩
(एक भूगोल के विद्वान के द्वारा भूकम्प पर जिज्ञासा प्रकट करने पर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज के द्वारा शास्त्रोचित सनातन वैदिक धर्म सापेक्ष समाधान।)
.
प्रश्न- भूकंप का रहस्य
क्या है ??
.
उत्तर-
महाभारत में गंगा को भी भूधर कहा गया है।
जल से पृथ्वी की उत्पत्ति होती है, यह दार्शनिक सिद्धांत है, वैज्ञानिक सिद्धान्त है।
चंद्रमा और सूर्य का प्रभाव तिथि के अनुसार समुद्र पर पड़ता है
और जब समुद्र पर तिथि का प्रभाव पड़ता है तो भूकंप में भी तिथियों का योग हो जाता है।
पूर्णिमा हो, अमावस्या हो, चतुर्दशी हो, अष्टमी हो ।
चंद्रमा जल को प्रभावित करता है, उर जल पृथ्वी को प्रभावित करता है क्योंकि पृथ्वी का उद्गमस्थान, उपादान कारण जल है।
तो भूकंप को लेकर अब तक का अनुसंधान यह कहता है
कि
जिन तिथियों में पूर्णिमा व अमावस्या सूर्यग्रहण, चंद्रग्रहण की प्राप्ति होती है
उर जिन तिथियों में ज्वार भाटे को लेकर समुद्र प्रभावित होता है, उन तिथियों में भूकंप का योग होता है।
इस प्रकार तिथि के साथ चंद्रमा का सम्बन्ध हैं, क्योंकि काल जो हैं, काल की सिद्धि चंद्रमा से होती है, काल की सिद्धि सूर्य से होती है, काल की सिद्धि महाभारत आदि के अनुसार अग्नि से भी होती है।
ये जितने तैजस पदार्थ हैं, प्रकाशयुक्त हैं, प्रभावयुक्त हैं, ये सब काल की गणना में उपयोगी होते हैं।
तो समुद्र जब प्रभावित होता है सूर्य और चंद्र से तब भूकंप का योग लगता है।
इसीलिए तिथि के साथ भूकंप का योग बन जाता है और जल पर प्रभाव सूर्य चंद्र का तिथि के अनुसार होता है।
इस प्रकार दर्शन , विज्ञान व व्यवहार में भूकंप को लेकर एकत्व है।

रह गयी बात किस काल में, कब और किस देश मे।
इसके लिए विशेष अध्ययन की आवश्यकता होती है क्योंकि समुद्र और पर्वत यानी कि जल, पर्वत , वन इन तीनो को हमारे शास्त्रों में भूधर कहा गया है क्योंकि ये पृथ्वी को धारण करने वाले हैं।
तीनों में जब कहीं पर पर्वत में विकृति आ गयी क्योंकि पर्वत को तोड़ दिया गया उत्तराखंड में। पर्वत को तोड़ देने से वहां की भूमि का संतुलन बिगड़ गया।।कहीं वन को काट दिया गया, कहीं जल को दूषित कर दिया गया तो जहाँ वन भी हो, पर्वत भी हो और जलाशय भी हो और इन तीनों को क्षुब्ध व विकृत किया जाय तो वह क्षेत्र भूकंप से अधिक प्रभावित होगा।
जापान जो भूकंप से अधिक प्रभावित होता है, वह देश विशेष है न।
क्यों प्रभावित होता है, इस पर विचार करेंगे जल को लेकर, पर्वत को लेकर और वन को लेकर।
ये सब भूकंप में हेतु है। जल में विकृति, पर्वत में विकृति या वन में विकृति होने पर
या वह क्षेत्र जो जल से आप्लावित है, वहां पर भूकंप का अधिक प्रभाव पड़ेगा।
तो काल का भी प्रभाव पड़ता है और काल की गणना सूर्य के आधार पर चंद्रमा के आधार पर।
इसलिए सूर्य चंद्र काल को प्रभावित करते हैं। काल का ही एक अवयव तिथि भी है। तिथि के अनुसार फर पृथ्वी प्रभावित होती है।
Watch 👉https://youtu.be/6wkuLn-pZqU
.
लेखन कार्य
प्रशान्त कुमार मिश्र जी
जीवन के जिस पड़ाव में व्यक्ति बिस्तर पकड़ लेता है उस पड़ाव में भी ऊपर से कोरोना रूपी विभीषिका और शासन तंत्र द्वारा दी जाने वाली तमाम तरह की यातनाओं को सहते हुए सनातन धर्म रक्षणार्थ व हमारे प्रशस्त मानबिन्दुओं की रक्षा के लिए देश के कोने - कोने में जाना।
खुली प्रश्नोत्तरी के माध्यम से विभिन्न प्रश्नों का दर्शन, विज्ञान और व्यवहार में सामञ्जस्य साधते हुए समाधान करना।

और तो और पूज्यचरण इस अवस्था में भी कम से कम 10 -12 घण्टा नित्य ग्रन्थ लेखन एवम् अध्ययन करते हैं। भला एक विद्यार्थी के लिए इससे बड़ी प्रेरणा की बात क्या हो सकती है।
ऐसे धर्म के साक्षात् विग्रह स्वरुप पूज्य गुरुदेव के चरणों में कोटि कोटि नमन🙏
प्रश्न : अन्तर्जातीय विवाह के दुष्परिणाम।
वक्ता : अनंतश्री जगतगुरु शंकराचार्य स्वामीश्री निश्चलानंद सरस्वती जी महाभाग।
जय गुरुदेव।।💐💐🙏🏼🙏🏼

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हर हर शंकर जय जय शंकर 💐
हर हर महादेव। 💐
- क्षेत्रज्ञ
(श्री वैदिक ब्राह्मण ग्रुप,गुजरात)
2024/09/23 16:27:56
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