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हमसे बेहतर कौन समझेगा रंग बदलती दुनियां को...

हम बेचारे इश्क के मारे होकर भी देखो जिंदा हैं...!!
ये सब्र ही तो नहीं आता हमें बताओ क्या करें...
टूट का चाहा था अब चाह कर टूटना है क्या करें...

हमें नहीं जानना क्या हुआ होगा कैसा कुछ भी...
मसअला यूं है की जिया नहीं जा रहा क्या करें...!!
ज़ख्म दिखाई न दे तो घबराना कैसा...
हार गए फिर से तो पछताना कैसा...

मजिलें ज़िद्दी हैं खेलती हैं हमसे अक्सर...
गर दौड़ में शामिल हो तो लौट जाना कैसा...!!
हमनें तमाशे की नीयत से तो नहीं पूछा था नाम उनका...
मगर उनकी अदाकारी से हमें हैरत बहुत जरूर हुई...

ये हक़ नहीं था उनको कि हमें बेइज्जत कर दें लेकिन...
उस वाकए से शायरो में हमारी इज्जत बहुत जरूर हुई...!!
तुम पूछते हो कि हम अपनें बारे में बात क्यों नहीं करते...
क्या कहें किससे कहें सब जानते हैं कि हम कुछ नहीं कहते...

जिससे कहनी थी उससे तो हर एक बात बताई थी हमनें...
मगर हादसा यूं हुआ कि वो शायद ऊब गया तमाशा सुनते सुनते...!!
मैं कितना भी कहूं वो मानती ही नहीं... मैं उसके सामने सच में कुछ भी नहीं...

मेरी वजह से वो परेशान होती है... चुभती है बात की उसकी कोई गलती भी नहीं...!!
अपना ही नुकसान कर बैठे खामखा कई दफा...
हम जानते थे वो गणित में कमज़ोर है पहले से...

सारा फलसफा धरा रह गया बंद किताबों में...
मिले तभी से जान गए कि वो चोर है पहले से...!!
जाओ, तुम खुश रहो कोई मलाल न रखो कि कोई पागल था...
जाओ, हम खुदा से लड़ेंगे तुमसे क्या कहें कि कोई घायल था...

जाओ, न मुड़ना न हाल की चिंता करना...
जाओ, मगर बच्चों को बताना कि एक पहचाना शायर था...!!
कुछ मलाल ये रहा कि तुम देर से मिले...
कुछ मलाल ये कि पहले क्यों न मिले...

अब जो वक्त गुजरता है तेरे साए में तो सुकून आता है...
कुछ मलाल ये है की ये वक्त अब गुजरता क्यों है...!!
नहीं बताता अगर कोई तो ही अच्छा होता...
हम भरम में जीते जाते तो ही अच्छा होता...

अनजान थे तमाम चीजों से क्या बुराई थी उसमें...
वक्त रहते अभी सब भूल जाते तो ही अच्छा होता...!!
जो लौटे हैं तेरी चौखट तो महकनें लगे हैं...
यार पूछ रहे राज की क्यों चहकनें लगे हैं...

वो तो हमारे यार हैं जानते हैं सब कुछ ये लोग...
वो चिढ़ा रहे हमें और हम हैं कि शरमाने में लगे हैं...!!
हमसे पूछा न करो कि कैसा है हाल चाल...

इस बार के लिए मान लो कि अच्छा तो नहीं है...!!
बताया हाल भी नहीं जा रहा...
छुपाया हाल भी नहीं जा रहा...

ये किराए का कमरा ये अनजान सी जगह...
पराया शहर तो है ही कोई अपनाया भी नहीं जा रहा...!!
छोटी सी कामयाबी और दिखावा बहुत बड़ा...

इससे अहंकार और भरम दिखाई देते हैं कमाई नहीं...!!
तुम, तुम कौन जो देख रहे हो मुझे कब से,
तुम, तुम कौन, बगावत हो क्या,
नहीं, शायद, कैदखाने की खिड़की हो,
या शायद, कुर्सी पर बैठे लोकतंत्र के रक्षक हो,

तुम, तुम कौन, जो आजादी देकर बोलने नहीं देते,
तुम, कहीं अमरता के अहंकार में डूबे हंटर वाले पिसाच तो नहीं,
नहीं, शायद, अपनें आप को बुरा मानते मानते बुरे बन गए हो तुम,
या शायद, अच्छे हो पर अपरिचित हो, अपनी पहचान से,

तुम, तुम अजीब हो, नयापन है तुम्हारे भीतर या उनको मार डाला?
तुम, तुम अलग थे, बेहतर थे, सुंदर थे,
हां मगर, सबसे मुकाबला क्यों करना है तुम्हें?
तुम सबके साथ रहकर खुद से बेहतर बन सकते हो,
देर नहीं हुई है,

मगर तुम, तुम हो कौन?

अजीब है, आईने में मुझ जैसे दिखते हो,
मगर....

शायद मैं नहीं हूं तुम... मगर....!!
रस्म आदायगी ही चलती रही तमाम उम्र हमारे साथ...

किसी को बुरा न लग जाए यही सोचकर मुस्कुराते रहे...!!
2024/06/29 18:59:22
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