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मर तो अब भी रहे ही हैं मेरी रूह के क़तरे एक एक...

ऐसा न होता अगर वो हल्का हादसा न हुआ होता...!!
सुन लो वो आवाज़ अभी जब वक़्त है...

ज़हन भी मर जाता है एक वक़्त बाद...!!
उन्हें पता है चोट कहाँ और किस ज़ोर से करना है...

औरत पूरी समझदारी के साथ पैदा होती है...!!
अजब चराग़ हूँ दिन रात जलता रहता हूँ...

मैं थक गया हूँ हवा से कहो बुझाए मुझे...!!

-- बशीर बद्र
वो दिल ही क्या तेरे मिलने की जो दुआ न करे...

मैं तुझे भूल के ज़िंदा रहूं ख़ुदा न करे...!!

-- क़तील शिफ़ाई
कहाँ जाएँ कहाँ न जाएँ यार...

साथ चलो तो मर ही जाते हैं...!!
ज़िन्दगी ख़त्म जीते होते ये इत्तिला कर गई...

ज़रा तो हँस लो मैं ख़त्म होनें वाली हूँ...!!
हम तो नहीं आएंगे बाज़ इश्कबाज़ी से...

तुम नज़रंदाज़ कर सको तो करो हमको...!!
एक शाम और बिता देंगे तेरे बग़ैर...

ख़ुद से वादा है अब नहीं पिएंगे तुझे...!!
इतनीं नफ़रत करनें लगा हूँ मैं उससे...

वो हँसता भी है तो बर्दाश्त नहीं होता...!!
एक तरफ़ ख़ाब रखकर नौकरी कर रहे हैं वो...

इस भरम में जीनें वाले बहुत मिलते हैं आजकल...!!
पिलाए जाएँगे एक दिन ग़ुलामी के शरबत मुफ़्त में...

सियासत तो चाहती है कि लोग घुटनों के बल चलें...!!
जलनें दो उन्हें आज फिर इस आग में...

रोज़ रोज़ पानीं डालना अच्छा नहीं होता...!!
जिन बातों पर पहले चिढ़ आती थी हमें...

इत्तेफ़ाकन... वही समझ आनें लगी हैं अब...!!
ना-समझ होना भी क्या खूबसूरत कलाकारी है...

इश्क़ का मज़ा इसी से जिंदा रहता है आखिरी तक...!!
एक तज़ुर्बा मौत से पहले मौत के क़रीब जानें का ज़रूरी है...

शायद... ज़िंदा लोग ज़िन्दगी जीना शुरू कर दें इसी के बाद...!!
2024/09/28 22:23:05
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